सोमवार, 30 मार्च 2020

लंबी रात

- गणेश पाण्डेय

यह एक असाधारण 
और काली लंबी रात है
मेरे सिर पर काले छाते की तरह
तनी हुई है जैसे गर्दन पर चाकू

कहीं कोई दूर-दूर तक आवाज़ नहीं है
न किसी गाड़ी की न किसी आदमी की
न किसी कुत्ते और बिल्ली के रोने की
सबके सब पेड़-पत्ते फूल-पत्तियां 
सब चुप हैं कुछ नहीं सूझ रहा है किसी को
मैं ख़ुद नहीं कर रहा हूं किसी से कोई बात

रात के ग्यारह बज रहे होंगे
लगता है कि एक से ऊपर बज गये होंगे
शायद सब सो गये होंगे 
शायद सब मेरी तरह जाग रहे होंगे
बजते हुए इस वक़्त को सुन रहे होंगे
शायद वक़्त की आवाज़ में
किसी पायल की आवाज़ शामिल होगी
छम-छम छम-छम 
कुछ चूड़ियों की आवाज़ के साथ
एक खनकती हुई हंसी शामिल होगी
पता नहीं यह किसी 
औरत की आवाज़ होगी 
या किसी और की

मुझे डर लग रहा है बाहर सड़क पर
कोई औरत जैसी चीज़ सफेद लिबास में
ज़रूर टहल रही होगी 
मौत होगी
शहर-शहर घर-घर घूम-घूम कर 
रोशनदान से खिड़की की दरार से
दरवाज़े के नीचे से झांक रही होगी
आदमी की मौजूदगी

बल्ब बुझने की वजह से
जहां कुछ नहीं दिखता होगा
वहां अपनी गजभर लम्बी नाक से
सूंघ-सूंघ कर पता कर रही होगी
आदमी की मामूली से मामूली गंध 
सूप जैसे लम्बे कानों से सुन रही होगी
आदमी की सांसों की मद्धिम से मद्धिम
आवाज़

ओह जैसे ही 
दरवाज़ा खुलेगा घुस जाएगी
शायद रात के सन्नाटे की वजह से
शायद पैंसठ का होने की वजह से
शायद दिनभर टीवी देखने की वजह से
इस तरह के ख़याल आ रहे हैं
कि हर जगह ऐसी कोई डरावनी चीज़ है 
जो आदमियों के प्राण हर लेगी

मैं पत्नी को सोते हुए देखता हूं
तो सोते हुए अपने घर को देखता हूं
घर की एक-एक चीज़ को सोते हुए पाता हूं
लेकिन ख़ुद नहीं सो पाता हूं
देश और दुनिया की सड़कों पर
गज़ब का सन्नाटा देखता हूं
मेरे बार-बार करवट बदलने से
पत्नी जग जाती हैं पूछती हैं-
क्या हुआ नींद क्यों नहीं आ रही है
बच्चों के लिए परेशान हैं क्या
मेरे हां कहते ही उठकर बैठ जाती हैं
मैं भी बैठ जाता हूं

मुझे लगता है
पृथ्वी पर जितने भी पति होंगे
पत्नियों के साथ उठकर बैठ गये होंगे
और अपने बच्चों के बारे में
और मुल्क़ के हालात के बारे में
बात कर रहे होंगे सोच रहे होंगे

कुछ लोग 
उन लोगों के बारे में सोच रहे होंगे
जो अपने बच्चों और वतन से दूर होंगे
शायद जहाज रेल बस के इंकार के बाद
इस वक़्त पैदल चल चुके होंगे
रात के दो बज गये होंगे

मां और बाबूजी 
हैजा और प्लेग की महामारी के बारे में
जब हम सभी छोटे थे बताते थे
लेकिन हमने तो ख़ुद अपनी आंखों से
पहले जापानी बुख़ार से
यूपी बिहार और नेपाल की तराई के 
पचास हज़ार से ज़्यादा बच्चों को
अपनी मांओं की गोद सूनी करके 
असमय जाते देखा है

और अब 
चीनी बुख़ार की काली छाया से
बूढ़ों और बच्चों को जाते देख रहे हैं
चीन से फैले कोरोना वायरस ने
पृथ्वी के जीवन का रस निचोड़ लिया है

दुनिया का हर देश भयभीत है 
दुनिया की आंखों से नींद ग़ायब है
पत्नी कहती हैं
बच्चों से सोने के पहले बात हुई थी
सब ठीक है एहतितात कर रहे हैं
कोई बाहर नहीं जाएगा
ऑफिस का काम घर से होगा
आप भी अब सो जाइए

मेरी नींद छुट्टी पर है
नहीं- नहीं मेरी नींद बहुत डरी हुई है
और आंखें जाग रही हैं नौकरी पर हैं
आकर टीवी के कमरे में बैठ जाता हूं
टीवी पर एक भयावह दृश्य है
इक्कीस दिन के लॉक डाउन में
आनंदविहार बस अड्डे पर यूपी बिहार
झारखंड अपने गांव जाने वाले 
दिहाड़ी मज़दूरों की
बीस-पच्चीस हज़ार की भीड़ 
एक-दूसरे से चिपकी हुई गुंथी हुई

एक के पास भी 
छिपा हुआ वायरस हुआ तो तो तो
तो कई प्रदेश श्मशान में बदल जाएंगे
कहां है दिल्ली सरकार कहां है केंद्र
कहां है मज़बूत सरकारों का प्रबंध
ओह कितना कमज़ोर है
और सबसे बड़ी बात जनता ख़ुद 
मौत के मुंह में क्यों जाना चाहेगी
ज़रूर कोई बड़ी मजबूरी होगी
चाहे हुआ होगा कुछ उसके साथ
बुरा

टीवी बंद करके बिस्तर पर लौटता हूं
तो दिन में दिल्ली के डिप्टी सीएम का
बयान याद आता है-
हमने स्कूलों में शेल्टर होम बनाए हैं 
पूरा इंतजाम है रहने खाने का
लेकिन कोई अपने घर जाना चाहेगा 
तो हम ज़बरदस्ती कैसे रोक सकते हैं
और दिल्ली सरकार की बसों से
भीड़ को आनंदविहार ले जाया जाता है

केंद्र कुछ कहता है
राज्य सरकारें कुछ करती हैं
यहां की सरकारों के अहमकों को
दूसरे देश के राजनेताओं के बारे में
पता नहीं कि उनका टेस्ट पाजिटिव आया है
एक देश की राजकुमारी गुजर गयी है
वायरस के साथ की गयी राजनीति
महंगी पड़ेगी राजनेताओं 
सब मारे जाओगे मौत किसी को 
ऊंची कुर्सी की वजह से छोड़ नहीं देगी

दूसरे देश कोरोना से लड़ने के लिए
कार और दूसरी चीज़ें बनाने वाली
फैक्ट्रियों में तेजी से वेटिंलेटर बना रहे हैं 
देशवासियों के लिए सांसें बना रहे हैं
उनके जीवन को बचाने के लिए 
पूरी ताक़त झोंक दे रहे हैं
अस्पताल बना रहे हैं 
जांच किट बना रहे हैं 
दवा बना रहे हैं

अपने देश की बेटी 
वायरोलॉजिस्ट मीनल 
अपने बच्चे को जन्म देने के 
कुछ घंटे पहले तक अथक काम करके
देश के तमाम बच्चों और उनके
माता-पिता के लिए
कोविड-19 का जांच किट बनाती है
देश के लाखों डाक्टर नर्स
और स्वास्थ्यकर्मी भाई-बहन
जान की बाजी लगाकर लड़ रहे हैं

और हमारे कुछ नेता 
ओछी राजनीति कर रहे हैं
टीवी पर सरकारी विज्ञापन में 
एक सीएम निर्लज्जतापूर्वक 
अपना प्रचार करते हुए
मसीहा बनने की क्या खूब नौटंकी 
कर रहा है

बहुत मुश्किल वक़्त है
देश पर एक लंबी काली रात तारी है
हम मौत की जिस काली लंबी रात से
गुजर रहे हैं क्या गुजर पाएंगे
क्या सुकून की सुबह ला पाएंगे
सुबह के बारे में सोचता हूं
डर जाता हूं

मेरी आंखों की नींद
चुरा ले गयी है पृथ्वी पर पसरी हुई
मृत्युभय की अपूर्व काली छाया
लंबी रात की देह में प्रवेश कर चुकी है
और मेरी नींद को कुतर-कुतर खा रही है
मेरे कानों में उसके दांतों के चलने की
बहुत तेज़ आवाज़ आ रही है

कोई भारी चक्की चल रही है
जिसमें मेरी नींद पिस रही है
मेरा चैन पिस रहा है हम पिस रहे हैं
और पृथ्वी पर महामृत्यु हंस रही है 
अट्टहास कर रही है।

(कोरोना पर पहली लंबी कविता ’पृथ्वी पर काली छाया’ के बाद, कोरोना पर दूसरी लंबी कविता है ’ लंबी रात’।)





     

2 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक चित्रण, किसी चलचित्र की तरह एक एक फ़्रेम दहशत से भरा हुआ, साहित्य समाज का दर्पण तभी हो पाता है जब उस के पास दृष्टि हो गणेश पाण्डेय जैसी

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  2. यही होता रहा है। अपने समय की विद्रूपता का लेखाजोखा है यह कविता।

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