- गणेश पाण्डेय
1
मिट्टी
------
हम
जिस मिट्टी में
लोटकर बड़े होते हैं
वह
हमारी आत्मा से
कभी नहीं झड़ती।
2
बाबा
------
बहुत से भी
बहुत कम लेखक होंगे
जिन्हें साहित्य में कभी
कृपा बरसाने वाले
किसी बाबा की ज़रूरत
नहीं हुई होगी।
3
बड़ा बाजार
---------------
साहित्य को
बड़ा बाजार बनाया किसने
जी जी उन्हीं दो-चार लोगों ने
जिनकी आप पूजा करते हैं।
4
जो कवि जन का है
------------------------
जो कवि
जितना गोरा है
चिकना है सजीला है
उसके पुट्ठे पर राजा की
उतनी ही छाप है
जो कवि
जितना सुरीला है
तीखे नैन-नक्श वाला है
उसके गले में अशर्फियों की
उतनी ही बड़ी माला है
जो कवि
जन का है
बेसुरा है बदसूरत है
बहुत खुरदुरा है
उम्रक़ैद भुगत रहा है।
5
जीवन
--------
जहाँ
जीवन ज्यादा होता है
हम वहाँ रुकते ही कम हैं
असल में
जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं
चमकती हुई चीज़ों के पीछे
तेज़ दौड़ना शुरू कर देते हैं
जीवन तो कहीं पीछे से
हमें मद्धिम आवाज में
पुकारता रह जाता है।
6
समकालीन कवि
--------------------
जब हम
साहित्य में लड़ रहे थे
तब वे किसी उत्सव में
काव्यपाठ कर रहे थे
कहने के लिए वे भी
समकालीन कवि थे।
7
नया मुहावरा
----------------
साहित्य में
लड़ोगे-भिड़ोगे
तो होगे ख़राब
मुंडी झुकाकर
लिखोगे-पढ़ोगे
तो होगे नवाब।
8
काम
------
जिसका जो काम है
उसे वही करना चाहिए
जैसे हर शख़्स
ख़ुशामदी नहीं हो सकता है
उसी तरह हर शख़्स
बाग़ावत नहीं कर सकता है।
9
अहमक़
----------
ओह ये अहमक़
आख़िर समझेंगे कब
साहित्य को जश्न नहीं
ईमान की ज़रूरत है।
- गणेश पाण्डेय
10
गालियाँ
---------
कविता के पितामह ने
बिगाड़ा है मुझे
सारी गालियाँ
उन्हीं से सीखी हैं मैंने
मेरा क्या करोगे भद्रजनो
जाओ कबीर से निपटो।
11
आज़माइश
--------------
इतना
टूटना भी ज़रूरी था
ख़ुद को आज़माने के लिए
एक हाथ टूट जाने दिया
फिर दूसरे हाथ से
लड़ाई की।
12
आ संग बैठ
---------------
तू भी
कवि है मैं भी कवि हूँ
मान क्यों नहीं लेता
जब पीढ़ी एक है तो तुझे
ऊँचा पीढ़ा क्यों चाहिए
आ संग बैठ चटाई पर।
13
कविता का मजनूँ
---------------------
जिस कवि को
हज़ार कविताएँ लिखने के बाद
एक भी खरोंच नहीं आयी
एक ढेला न लगा सिर पर
ज़रा-सा ख़ून न बहा
कितना सुखी
सात्विक और अपने मठ का
निश्चय ही प्रधानकवि हुआ
गुणीजनो क्या वह
कविता का मजनूँ हुआ!
14
दुरूह
-------
जिस कविता में
कथ्य की रूह
साफ़-साफ़
एकदम दिख जाय
वह दुरूह नहीं है
नहीं है नहीं है।
15
दलाल
---------
जो अलेखक हो
जुगाड़ का चैंपियन हो
छपने-छपाने इनाम दिलाने
मशहूर कराने में माहिर हो
और देशभर के लेखकों को
मिनटों में मुर्गा बनाता हो।
16
ब्रह्म
-----
जिसने तबीअत से
पुरस्कार को सूँघ लिया
ब्रह्म को पा लिया
जिसे नसीब नहीं हुआ
वह बेचारा हर जन्म में
हिन्दी का लेखक हुआ।
17
दिल्ली
----------
हाशिए के लेखक
मेरे दोस्त हैं मेरी ताक़त हैं
मेरी तरह दिल्ली के
पॉवरहाउस से दूर रहते हैं
दिल्ली उन्हें भी मेरे साथ
मिटाने के लिए विकल है।
18
भिड़ंत
--------
तुम अपनी
अशरफ़ी दिखाओ
मैं अपना
ईमान दिखाता हूँ।
19
मार्क्सवादी
--------------
हिन्दी के मार्क्सवादी
चाहते हैं देश के पूँजीपतियों का
नाश हो नाश हो नाश हो
और वे राजधानी में खुलेआम
हिन्दी के पूँजीपतियों का तलवा
चाटते हैं चाटते हैं चाटते हैं।
20
लगा पीटेगा
---------------
यह कविता इससे पहले
लिखी क्यों नहीं गयी थी
आलोचक ने कहा तो लगा
पहले के कवियों को पीटेगा
थोड़ा डरा सोचा कि यह ख़ुद
पहले क्यों नहीं पैदा हुआ!
21
महानता
----------
भाड़ में जाए
आपकी महानता
जो था सब
कह नहीं दिया तो।
22
धरती पर
------------
धरती पर कोई फूल
अधखिला रह न जाए
कोई बात ज़रूरी हो
तो कहे बिना रह न जाए
23
नानी की नानी
------------------
नानी कब याद आती हैं
जी, कठिन बात कहनी हो तब
और जब बहुत कठिन बात
कहनी हो तो तब, वत्स
जी गुरु जी, तब
नानी की नानी याद आती हैं।
24
नहीं देखा
------------
मंच की रोशनी में
फुदकते हुए चूहों को
कभी शेर में बदलते
नहीं देखा नहीं देखा
चूहों ने भी नहीं देखा
नहीं देखा नहीं देखा।
25
ये
---
मेरा ख़याल है ये अभी
गंदा खाने तक जाएंगे
आख़िर इन्हीं के समय में
पुरस्कार युग आया है
कर लेने दो खा लेने दो।
26
अधिकतम
-------------
लेखकों, संपादकों, आलोचकों ने
कभी कृति के न्यूतम समर्थन मूल्य की
बात की ही नहीं
इन्होंने हमेशा गोलबंद होकर
अधिकतम समर्थन मूल्य के लिए
राजधानी को घेरा।
27
कनकौआ
-------------
इधर के
किन-किन लेखकों के पास
कोई जुनूनी काम है
क्या पता
कनकौआ उड़ाना ही आज का
बड़ा काम हो!
28
वहाँ
-----
अच्छा हुआ
मैं वहाँ बहुत कम जाना गया
जहाँ थोड़े से आदमी रहते थे
और चूहे बहुत ज़्यादा ।
29
सुधार
--------
गुप्त जी मानते थे
कि राम के चरित के सहारे
कोई भी कवि बन सकता है
आज हैरान होते हिन्दी के इन
दुश्चरित्र कवियों को देखकर
अपने लिखे में सुधार करते
कोई भी दुश्चरित्र कवि हो जाय
यह सहज संभाव्य है।
30
मज़बूत कवि
----------------
जैसे
बच्चे को देखकर
तंदुरुस्ती जान लेते हैं
उसी तरह
मज़बूत कवि को
दूर से पहचान लेते हैं।
31
शायद
-------
हिन्दी में विचारों की कमी नहीं है
बस काम करना बंद कर दिया है
हिन्दी में आदर्शों की कमी नहीं है
बस काम करना बंद कर दिया है
हिंदी में महान लेखक कम नहीं हैं
इन लेखकों ने रास्ता बदल लिया है
लेखक की दुनिया बदल गयी है
शायद पुरस्कार-राशि बढ़ गयी है।
32
सर्वेंट क्वार्टर
----------------
यह बच्चा
जब दिल्ली में लेखक बना है
वहीं पला-बढ़ा है तो जाएगा कहाँ
अमेरिका इंग्लैंड वग़ैरा
यह तो अंतरराष्ट्रीय साहित्य के
सर्वेंट क्वार्टर में पैदा हुआ है
देश की नसों में मेरा ख़ून बनकर
कैसे दौड़ेगा।
33
आ बेटा
----------
बच्चा लेखक है
सारे अंग छोटे और कोमल होंगे
मूते भी तो मुझ तक कैसे पहुँचेगी
मुझे ही जाना होगा दिल्ली
दुलार करने आ बेटा सिर पर
कर ले मन की।
34
लीला
-------
मान्यवर आप लेखक हैं
और साहित्य के संघर्ष में नहीं हैं
तो आपकी भाषा चमकती हुई
स्निग्ध कोमल वग़ैरा तो होगी ही
आपकी उँगलियाँ अभी भी
स्वेटर बुनने की अभ्यस्त होंगी
काश मैं भी मूलतः स्त्री होता
मेरी हथेलियाँ खुरदुरी न होतीं
मैं गणेश नहीं लीला होता।
35
डण्डा
-------
वे
साहित्यपति थे
उन्होंने कहा -
झण्डा लेकर चलो
मैंने कहा -
डण्डा लेकर चलो।
36
लज्जा
-------
हे प्रभु
माइक के सामने
अख़बार के बयान में
कविता लिखते हुए
टेढ़ी हो गयी है कवि की रीढ
जहाँ झगड़ना था मीठा बोला
जहाँ तनकर खड़ा होना था झुका
जहाँ उदाहरण प्रस्तुत करना था
छिपकर जिया
हे प्रभु
उसे सुख-शांति दीजिए न दीजिए
थोडी-सी लज्जा जरूर दीजिए।
37
अकड़
--------
हे प्रभु
आप हो तो ठीक है
न हो तो भी
पर हिन्दी में ऐसा वक़्त
ज़रूर आये
जब पाठक ही पाठक हों
और पाठक के पास इतना बल हो
कि कवि और आलोचक की
अकड़ तोड़कर उसकी जेब में
डाल दें।
38
निरीह कवि
--------------
हे प्रभु
आये ज़रूर आये
हिन्दी में ऐसा भी वक़्त
जब आलोचक अपनी अकड़
निरीह कवि के सामने नहीं
साहित्य की सत्ता के सामने
दिखाए।
39
दिल्ली भी
------------
साहित्य में
दिल्ली भी है
दिल्ली ही नहीं
सुनता कौन है
देशभर के लेखक
बहरे हैं।
40
ज्ञानी
-------
हिन्दी में
इतने ज्ञानी आ गए हैं
कि पूछो मत
ज्ञान की आंधी में
कविता की नाव
अब डूबी तब डूबी।
41
टैटू
------
नक़लची कवि
असली कवियों को
कविता पढ़ा रहे हैं
हँस रहे हैं चूतड़ मटका रहे हैं
उसी पर कविता का टैटू
बनवा रहे हैं।
42
नोट कर लें
-------------
एक बात नोट कर लें
मैं किसी का पालतू
कवि नहीं हूँ
यह भी नोट कर लें
मेरा कोई पालतू
आलोचक नहीं है
फिर भी
कविता की पृथ्वी का
एक कण मैं भी हूँ।
नोटबुक में
जगह न बची हो तो
जिल्द पर नोट कर लें।
43
क़सम
--------
उन्होंने
मुझे बर्बाद करने की
ज़बरदस्त क़सम खायी थी
जानकर
बहुत अफ़सोस हुआ
उनकी
अच्छी-ख़ासी क़सम
बर्बाद हो गयी।
44
बुरी बात
----------
ग़ुस्सा चाहे जितना हो
किसी वाजिब बात के लिए हो
तो अच्छी बात है
ख़ुद कुछ न कर पाएँ और
ग़ुस्सा करने वाले पर खीझ हो
तो बहुत छोटी बात है
और अगर साहित्य में
ऐसी छोटी बात हो तो
बहुत बुरी बात है।
45
पत्थर हूँ
---------
हाँ पत्थर हूँ
बहुत से बहुत सख़्त
और तुम ठहरे
चलते-फिरते आदमजात
मान क्यों नहीं लेते
मेरे ऊपर सिर्फ़ प्यार से
बैठ सकते हो
दो घड़ी सुस्ता सकते हो
मुझे
अपनी राह का
पत्थर समझकर
ठोकर से हटाना चाहोगे
तो ज़ख़्मी हो जाओगे।
46
पोतड़े
--------
बादशाहों का
कुछ साफ़ नहीं किया
तो उनके बच्चों के
पोतड़े कैसे साफ़ करूँ
जाओ मुझे तुमसे भी
कुछ नहीं चाहिए।
47
चरणरज
----------
वह
कल तक बड़ों का
चरणरज लेता था
और
आजकल छोटों का
चरणरज लेता है।
48
जीना
-------
मित्र अब न कहो
बरस अठारह क्षत्रिय जीवे
लेखक बेचारा किसी मठ में
एक बार खड़ा नहीं हो पाता।
49
गया नहीं
------------
राजधानी कोई शहर नहीं
एक बुलडोज़र है बुलडोज़र
जहाँ चूहा भी ऐंठकर चलता है
अच्छा हुआ कि मैं गया नहीं
बुलडोज़र से लड़ तो जाता
चूहे से कैसे लड़ता।
50
इसीलिए
-----------
हिन्दी के लेखक हैं
उन्हें पता ही नहीं है
कि वे कर क्या रहे हैं
इसीलिए
जिधर सब जा रहे हैं
उसी तरफ़ जा रहे हैं।
51
परंपरा
--------
जैसे
बड़ी कविता की
परंपरा होती है
उसी तरह
ज़रूरी कविता की
परंपरा होती है।
52
नक़ली कविता
------------------
इधर हिन्दी कविता में ख़ूब
झूठमूठ की चीज़ें मिल जाएंगी
कवि के जीवन से विरत
नक़ली कविता यहीं संभव है
53
ठग
-----
आज की तारीख़ में
किसी कवि को कविता में
बारीक बुनावट करते देखो
चाहे मामूली कविता को
ख़ूब चिकना करते देखो
तो समझ जाओ कि वह
कवि नहीं कविता का ठग है।
54
जुनूनी काम
---------------
मित्र से पूछा
इधर के किसी कवि को
कविता में जुनूनी काम
करते देखा है
मित्र ने कहा कुछ नहीं
बस मेरी तरफ़ देखते रहे।
55
ये लेखक
-----------
अंग्रेज़ों से
ग़लती हो गयी
बड़ी ग़लती हो गयी
वे सौ साल बाद आये होते
तो आज के हिन्दी के ये लेखक
आज़ादी की लड़ाई होने ही नहीं देते!
आख़िर साहित्यिक मुक्ति के लिए
लड़ाई कहाँ की!
56
कविता की शक्ति
---------------------
आज का आलोचक ख़ुद
अपने दिमाग़ की खिड़कियाँ खोले
आँखों के जाले ख़ुद साफ़ करे
मज़बूत कविता की खोज करे
मैं अपनी कविता की शक्ति से
घोड़े को शेर में बदल सकता हूँ
गधे आलोचकों को घोड़ा बनाना
मेरा काम नहीं है।
57
मास्टर
---------
वे सब आलोचक कहाँ थे
वे तो हिन्दी के मास्टर थे
जितना पढ़ा पढ़ाया
उतना ही लिखा
हिन्दी का मास्टर होकर भी
मैं आजीवन कार्यकर्ता ही रहा
कविता का मास्टर बनने का
कभी सोचा ही नहीं।
58
आदर्श
--------
मैंने कहा
तू मेरे गाँव का है
बच्चा संपादक है तो क्या हुआ
मेरी तरह बहादुर-शहादुर बन
चल मर्दाना कविताएँ छाप
वह
तनिक भी नहीं बदला
देशभर के नचनिया कवि
उसके आदर्श थे।
59
चाटना
---------
ईमान नहीं है
तो विचारधारा कुछ नहीं है
सिर्फ़ चाटने
और चाटते रहने की चीज़ है।
60
आत्मसंघर्ष
--------------
आप छत्तीस साल के युवा हैं
लेकिन लिख कितने साल से रहे हैं
आत्मसंघर्ष की उम्र कितनी है
कभी किया भी है या नहीं
लेखक के जीवन में चिंगारी
सिर्फ़ किताबों से पैदा होती तो
दुनिया में रोशनी ही रोशनी होती
मेरे बच्चे जीवन में रगड़ से
पैदा होती है असल रोशनी।
61
लेखक-प्रकाशक
---------------------
मानता हूँ
अच्छा रिश्ता होता है
लेखक और प्रकाशक के बीच
लेकिन एक सच्चा लेखक
किसी प्रकाशक के लिए
पैदा नहीं होता है
उसे तो अपने लोग
और अपनी भाषा के लिए
जीना-मरना होता है।
62
खड़ी कविताएँ
------------------
वह ढिलपुक संपादक
मुझे पसंद नहीं करता
क्योंकि मैं खड़ी कविताएँ
लिखता हूँ
और वह
लेटी हुई कविताओं का
सोलह शृंगार करके
छापता है।
63
दोहराव
----------
कविता का उद्देश्य बड़ा है
और कवि भी जुनूनी है
तो अलग-अलग ढंग से
कोई बात कहना
दोहराव नहीं असाधारण
चोट की निरंतर है।
64
अंतिम बल्लेबाज़
-------------------
मेरे एक मित्र
बड़े मज़ाक़िया हैं
मुझे अपनी पीढ़ी का
अंतिम बल्लेबाज़ कहते हैं
कहते हैं
बाक़ी सस्ते में निपट गये
कविता में सारे चौके छक्के
अब मुझे ही लगाने हैं।
65
दोस्ती
-------
लेखक का साथ
लेखक के चरित्र का
जासूस होता है
बता देता है कि यह लेखक
किस तरह के साहित्य के
गिरोह में शामिल है
फिर आप हुआ करें कुछ भी
गणेश पाण्डेय की दोस्ती के
क़ाबिल नहीं रह जाते।
66
निजी विचार
---------------
साहित्य
मनुष्यता का अभियान है
और कविता उस अभियान की बेटी
आज के कवियों
और आलोचकों के बारे में
मेरा निजी विचार यह कि ये दोनों
कविता के सीरियल रेपिस्ट हैं।
67
पाठक
--------
आज की कविता का
कोई पाठक बहुत हुआ तो
खेत कोड़ने जितना श्रम कर देगा
कविता की आत्मा तक
पहुँचने के लिए मौत के कुएँ में
मोटरसाइकिल नहीं चलाएगा।
68
कवि
------
कवि का काम है
पाठक की तरफ़ हाथ बढ़ाना
किसी दरबार में मुजरा करना
किसी क़ीमत पर नहीं।
68
ख़रगोश
----------
हिन्दी के एक
कछुए की क्या हैसियत है
कोई उसे देखता ही नहीं
कछुआ अक्सर फर्राटे से
दौड़ते हुए लेखकों को देखता है
और सोचता रहता है
ये हृष्टपुष्ट ख़रगोश
थकेंगे तो नहीं बेचारे अधबीच में
सो तो नहीं जाएंगे।
70
स्त्रीमुक्ति
-----------
कविता में
प्रेम से आगे का
सब हो गया
अर्थात कविता में
स्त्रीमुक्ति का काम
पूरा हो गया था।
71
अहंकार
----------
राजधानी की माया
विचित्र है कि मठ का
नन्हा-सा चूहा भी ख़ुद को
मठाधीश समझता है
न मुझे सलाम करता है
न मुझसे छापने के लिए
कविताएँ माँगता है ताऊ हूँ
फिर भी अहंकार देखो।
72
सीढ़ी
-------
हिन्दी में कुछ लेखक
लेखक कम होते हैं
सीढ़ी अधिक
किसी से बताना मत
कि ये सीढ़ी लेखक
दिल्ली में अधिक होते हैं।
73
नंगा कीजिए
---------------
कोई लेखक
नाम-इनाम का विरोध करता है
तो ख़ुद को ईमानदार लेखक
क्यों नहीं समझ सकता है
क्या वह बाक़ी लेखकों की तरह है
है तो उसे नंगा कीजिए।
74
फ़ाइल
--------
कवि जी बहुत हुआ
पुरानी फ़ाइलें जमा करना
मुंशी जी का काम है
आपका नहीं
आपकी ड्यूटी
नयी फ़ाइल बनाने की है
ज़रूरी फ़ाइल बनाने की है
झट से आगे बढ़ाने की है।
75
कारख़ाना
------------
कुछ लेखक
लिखने का कारख़ाना होते हैं
उनके कारख़ाने में सोचने का
पुर्ज़ा नहीं लगा होता है
कभी जान ही नहीं पाते
कि इतना फ़ालतू सामान
क्यों तैयार किया क्या होगा
बस लिखते हैं लिखते जाते हैं।
76
तुम
-----
तुम्हें लगता है कि वह ग़लत है
सीने में बर्छी जैसी चुभती हैं
उसकी बातें और कविताएँ
तुम वैसा कर भी नहीं सकते
और वैसा करते हुए उसे
देखना भी चाहते हो।
77
बुरा
-----
बुरा लगता है
बहुत बुरा लगता है
जब हिन्दी का चोट्टा
मर्यादित भाषा का
पाठ पढ़ाता है
जी करता है
मुँह तोड़ दूँ।
78
विशेषाधिकार
-----------------
वह चरित्रहीन होकर भी
क्रांति की बात कर सकता है
सिर्फ़ हिन्दी के लेखक को
यह विशेषाधिकार है।
79
आन बाट
------------
लेखको
मरे हुए तो हो ही
जब भी जाओगे ऊपर
बाबा कबीर गेट पर बैठे मिलेंगे
हाथ में जलता हुआ चैला लिए
पूछेंगे मरे हुए क्यों पैदा हुए थे
झूठ बोलोगे तो फँस जाओगे
सच कहोगे आन बाट से आया
तो शायद दागे जाने से बच जाओगे।
80
अजीब बात
---------------
झूठ बोलता हुआ
इस देश का हर आदमी
हिन्दी का कवि लगता है
कितनी अजीब बात है
झूठ बोलने वाला अब
राजनेता नहीं लगता है।
81
लड़वैया
----------
अगर तुम
पहले के लड़वैया की
इज़्ज़त नहीं करते
तो तुम
कवि वग़ैरा हो सकते हो
लड़वैया नहीं हो सकते।
82
तर्क के जूते
---------------
मुझे एक दो नहीं
सौ जूते चाहिए थे
मेरा दिमाग़ खराब था
मेरा दुर्भाग्य देखिए
हिन्दी में किसी के पास
तर्क के जूते ही नहीं थे।
83
जमात
--------
मैं उस जमात को
वक़्त पर छोड़ नहीं आया होता
तो पूरी ज़िन्दगी
चिलम सुलगाता रह गया होता।
84
मेरे सामने
------------
यह तो कोई बेईमान
आलोचक ही कह सकता है
आलोचना की आलोचना
बुरा काम है आलोचना नहीं
मैं चाहता हूँ कि मेरे सामने
मेरे लिखे की धज्जियाँ उड़ाएँ।
85
नया बाग़ी
-----------
बीस साल पहले सोचा
नहीं था यह सब करूँगा
उड़िए मत आप जानते हैं
बीस साल बाद क्या होगा
बीस साल में हिन्दी में
नया बाग़ी पैदा हो जाता है।
86
नाराज़ कवि
---------------
नाराज़ कवि के हाथ में
सोना-चांदी फूल-पत्ती वग़ैरा नहीं
मामूली पत्थर है
कविता के सभासदो देखो तो
उसने तुम्हारे राजा के महल के
काँच पर कैसे दे मारा है दनादन।
87
दोस्त
-------
वह मेरा दोस्त था
और दोस्त जैसा नहीं था
मेरे दुश्मनों से डरता था
उसने न कभी दुश्मन बनाये
न किसी से कोई लड़ाई की
वह मेरा दोस्त कैसे हो सकता था।
88
गिनतीकार
-------------
गिनतीकार
आलोचकों ने
रोज़-रोज़ कविगणना
और श्रेणीबद्धता से
माठा नहीं कर रखा होता
तो मैं भला उनके ख़िलाफ़
सख़्त कार्रवाई क्यों करता
कि छोटे सुकुल समेत
फाट पड़ता।
89
मार दो
---------
कविता
जब हिन्दी के शोहदों के सामने
भय से थरथर काँप रही है
एक डरा हुआ आलोचक
जो ख़ुद की हिफ़ाज़त नहीं सकता
हिंदी कविता की आबरू
ख़ाक बचाएगा सबसे पहले
उसे मार दो।
90
नाराज़ कवि
---------------
नाराज़ कवि के हाथ में
सोना-चांदी फूल-पत्ती वग़ैरा नहीं
मामूली पत्थर है
कविता के सभासदो देखो तो
उसने तुम्हारे राजा के महल के
काँच पर कैसे दे मारा है।
91
आत्मा
--------
किसी को
अपशब्दों की बौछार से
लज्जित करना चाहोगे तो
वह सिर्फ़ नाराज़ होगा
और
उसकी आँख में
आँख डालकर तर्क करोगे
तो उसकी आत्मा लज्जित होगी।
92
बेचैनी
-------
न सबद लिखता हूँ
न रमैनी लिखता हूँ
कविता का
छोटा-मोटा कार्यकर्ता हूँ
साखी जैसी बस
अपनी बेचैनी लिखता हूँ।
93
कर्ज़
-----
जिस
आलोचक की आलोचना में
ईमान का छंद नहीं होता है
वही
प्राय: कविता में छंद के लिए
आठ-आठ आँसू रोता है
असल में
उसे कुछ कवियों से लिया गया
पुराना कर्ज़ चुकाना होता है।
94
मैं
---
मैं जब
कविता में
मैं लिखता हूँ
तो
पुरस्कार का नहीं
हिन्दी का मैं लिखता हूँ।
95
भरोसा
---------
उसके हाथ में डायरी थी
उसमें कई नंबर और पते थे
मेरे पास सिर्फ़ दो हाथ थे
मुझे उन्हीं पर भरोसा करना था।
96
पंडिज्जी
----------
पंडिज्जी की कोठी थी
मेरे पास थी मड़ई थी इसीलिए
वे मुझे पड़ोसी मानते नहीं थे
मैं हिन्दी की ज़मीन में रोज़
कुआँ खोदता रोज़ पानी पीता
एक-एक ईंट जोड़कर जब मैंने
हिन्दी की मीनार खड़ी कर दी
तो वे रातों में छिप-छिपकर
उसे देखते थे।
97
ईमान
-------
हिन्दी में
पहले भी हुआ है
ईमान के
चींटी जैसे पैर
बेईमानी के हाथी को
कुचल सकते हैं।
98
अशुभ योग
--------------
कवियो कहीं भी सो जाना
चारपाई पर चाहे ज़मीन पर
किसी भी तरफ़ पैर कर लेना
भूलकर भी दिल्ली की दिशा में
सिर करके मत सोना
बोले तो अशुभ योग है।
99
दुर्दशा
-------
मेरे पुरखे
प्राचीन कवि गोरखनाथ होते तो
हिन्दी की दुर्दशा पर चुप नहीं रहते
अलबत्ता इस शहर के बाक़ी कवि
उनके होने पर भी चुप रहते।
100
वैशाखनंदन
--------------
मूर्ख लेखक को
गधा या लेंड़ी वग़ैरा
कैसे कह सकते थे
पवित्र भाषा हिन्दी में
छोत भी तो नहीं कह सकते थे
चुगद पहले कहा जा चुका था
इसलिए गधा कहा।
101
दण्ड
------
मैंने जिन
लेखकों के रहस्य खोले
और उनके अतिसौंदर्यप्रसाधनयुक्त
मुखमंडल पर कालिख पोती
मुझे उनसे दण्ड मिलना
स्वाभाविक था
उन्होंने मुझे सर्वसम्मति से
जातिबहिष्कृत किया।
102
अपकीर्ति
------------
मेरे समय में
हिन्दी के समुद्र में मंथन हुआ
तो कुछ को पाँच टके का सिक्का
कुछ को हज़ार का कुछ को
लाख का आभूषण
कुछ को हीरे से सुसज्जित मुकुट
मेरे हिस्से में विलक्षण वस्तु आयी
अपकीर्ति का बहुमूल्य चमड़ा।
103
मिशन
--------
यह धंधे का समय है
क्या साहित्य क्या पत्रकारिता
क्या धर्म क्या राजनीति क्या शिक्षा
मिशन का नाम लेंगे तो सीधे
सूली पर चढ़ा दिए जाएंगे
जैसे मुझे साहित्य में
सूली पर चढ़ा दिया गया।
104
सरल रेखा
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सरल रेखा
सबको अच्छी लगती है
चुपचाप मुंडी झुकाये चलते जाने में
कोई मुश्किल भी नहीं होती है
कोई दर्द नहीं कोई शर्म नहीं
जीवन के टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर चलना
हिन्दी के लेखकों के लिए भी
सरल नहीं होता।
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बड़का कबी
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कुछ कबी तौ
बिल्कुल्लै मज़ेदार कबीता लिखि रहै हैं
गजबै करत हैं पुरान कोल्हू है बैल नवा
न कौनो चीरा-टाका न कौनो दर्द-सर्द
पेटौ ठीक से फूला नाहीं नौ महीना
एक मिनट में कबीता-फबीता होइगै
दाँत चियारि-चियारि खेलावत हैं
ज़मीदारन कै पैर दबावा टोटका आज़मावा
डिल्ली पहुँचि कै बड़का कबी होइगा।
106
भैंस
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साहित्य
कोई भैंस नहीं है
जिसे कोई इनाम की लाठी से
हाँक सकता है!
107
तू
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तू किताब पढ़
मैं जिन्दगी को पढ़ता हूँ
तू ज्ञान के शिखर चूम
मैं गिरे हुए को उठाता हूँ
तू इनाम ले
मैं खुद को मिटाता हूँ
तू अकादमी जा
मैं उस पर थूकता हूँ
तू दिल्ली जा
मैं टिकट फाड़ता हूँ।
108
बच्चों की प्रतीक्षा
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जब
बच्चे बहुत छोटे थे
नौकरी पर जाते समय
हाथ पकड़कर झूल जाते थे
पीठ पर चढ़ जाते थे
पैरों से लिपट जाते थे
अब
मैं रिटायर हो गया हूं
बच्चे बाहर काम पर हैं
मेरे पैर मेरे कंधे मेरी बाहें सब
घर पर बच्चों की प्रतीक्षा करते हैं।
109
कितने दिन रह गये हैं
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होली में
कितने दिन रह गये हैं
पूछता हूं पत्नी से, कहती हैं
रोज एक ही बात पूछते हैं
चुप हो जाता हूं दूर से
चुपचाप कैलेंडर देखता हूं
मोबाइल में ढूंढता हूं
होली की तिथि दिन गिनता हूं
रिटायर हो गया हूं न, बच्चे आएंगे
तो फिर काम पर लग जाऊंगा।
110
बच्चे आ गये हैं
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कोई चिड़िया पीछे से
सिर पर पंख फड़फड़ाती है
कोई तितली
चुपके से कंधे पर बैठ जाती है
कोई हिरन
सामने से कुलांचे भरता है
कोई शावक टीवी पर
धूप में बाघिन के मुंह चूमता है
कोई शख्स
दरवाजे की कुंडी खटखटाता है
कोई जहाज
हवाई अड्डे पर उतरता है
कोई पीछे से
मुझसे जोर से लिपट जाता है
हजार बातें हैं पता चल जाता है
बच्चे आ गये हैं।
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देखना
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उस रात प्रीतिभोज में
उसके साथ एक बच्चा था
बड़ा प्यारा था
खरगोश की तरह
देखता था सबको
मुझे भी ।
और उसने भी मुझे देखा था
जैसे नहीं देखा था
मैंने देखा था।
112
उठा है मेरा हाथ
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मैं जहाँ हूँ
खड़ा हूँ अपनी जगह
उठा है मेरा हाथ ।
रुको पवन
मेरे हिस्से की हवा कहाँ है।
बताओ सूर्य
किसे दिया है मेरा प्रकाश ।
कहाँ हो वरुण
कब से प्यासी है मेरी आत्मा ।
सुनो विश्वकर्मा
मेरी कुदाल कल तक मिल जानी चाहिए
मुझे जाना है संसद कोड़ने ।
113
उनका कोश
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सबके काम आते थे
सबसे काम लेते थे
बड़े काम-काजी थे।
हर जगह थी उनकी पूछ ।
असल में, उनके कोश में
अकरणीय कुछ था ही नहीं।
114
गौरैया
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इतने बड़े आसमान में
मेरी नन्ही गौरैया
जिसके हर हिस्से में
हजार इच्छाएँ
आसमान से बड़ी।
115
मेरा बेटा
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मेरा बेटा
कंधे पर बैठा हुआ
भरता है किलकारियाँ
दिखाता है आसमान को
ठेंगा।
116
क्यों नहीं करते
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इस पिद्दी को तो देखो
कितनी देर से कर रहा है
इतने बड़े देश के साथ
हँसी-ठट्ठा।
कहाँ हैं लोग
क्यों नहीं करते
इसका मुँह बंद।
117
हिंदी की चींटी
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मेरा क्या
मैं हिंदी की चींटी
चले गये सब हिंदीपति
योद्धा बड़े-बड़े
कुछ अप्रिय कुछ मीठा लेकर
उस पथ पर
मैं चींटी हिंदी की मतवाली
क्यों छेड़े कोई मुझको
कोई हाथी कोई घोड़ा
चाहे कोई और।
118
एक भिण्डी
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यह जो छूट गयी थी
थैले में अपने समूह से
अभी-अभी अच्छी-भली थी
अभी-अभी रूठ गयी थी
एक भिण्डी ही तो थी
और एक भिण्डी की आबरू भी क्या
मुँह फेरते ही मर गयी थी।
119
याद रहे पर
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ये लो पहले हाथ
फिर काटो दोनों पैर
गर्दन काटो
बोटी-बोटी कर दो
मेरी देह।
कहीं फेंक दो
कहीं झोंक दो
याद रहे पर
लपट उठेगी ऊँची-ऊँची
हर हिस्से से।
120
प्रतिबंध
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बच्चे समझाते हैं, पिताजी
किसी भी प्रकार का संसार हो
चूतियों से भरा हुआ है
साहित्य का भी
आप ख़ून न जलाएँ
चाहें तो उनका मुँह न देखें जाने दें
आप उनकी ईश्वर प्रदत्त अलौकिक
मूर्खता की नवीन प्रस्तुतियों पर
चाहकर भी प्रतिबंध नहीं लगा सकते हैं।