शनिवार, 22 अप्रैल 2023

आपा के नाम ख़त तथा अन्य कविताएँ

- गणेश पाण्डेय

इब्राहीम भाई 
-----------------
खेत थोड़े से थे लेकिन उसका काम 
इब्राहीम भाई जैसे शख़्स देखते थे 
मुसलमान होकर भी इसलिए देखते थे
कि गाँव-जवार में उनकी जोड़ का
कोई ईमान वाला नहीं था कोई हिन्दू
उतना अच्छा रहा होता तो हमारे लिए 
खेती को लेकर इब्राहीम भाई की हर बात 
पत्थर की लकीर क्यों होती
बाबूजी जाते समय क्यों कहते
इब्राहीम भाई को भाई समझना।


ईदी
------
काफ़ी समय से एसी की सर्विसिंग का काम 
अफ़रोज़ भाई देखते हैं आज आख़रि जुमा था
मैंने कहा था कि ईद के बाद करा दीजिएगा
नातिन आयी है जानकर उन्होंने दो नौजवान 
मिस्त्रियों को थोड़ी देर में भेज दिया
सर्विसिंग के बाद जब वे नौजवान जाने लगे तो
मज़दूरी के बाद ईदी कहकर कुछ रुपये दिए
ईदी के नाम पर उनकी आँखों में जो चमक
और चेहरे पर जो ख़ुशी आयी अनमोल थी
अनमोल थी अनमोल थी। 


चच्ची
--------
किशोर जीवन से ईद पर
चच्ची के हाथ की सेवइयाँ खाता रहा
दूसरे दिनों में भी चच्ची के हाथ का 
हम कुछ भी खा लेते थे उनकी बेटी मुझे
भाई समझती थी और उसके भाई को मैं भाई
वह था भी भाईचारे के काबिल 
हिन्दुओं के साथ होली खेलता था साथ रहता था
उसके पिता कम्युनिस्ट थे यह उसके वुजूद में था
चच्ची अब नहीं हैं वह आज भी है उसी तरह
अब वहाँ कम जा पाता हूँ कम मिल पाता हूँ।


रोजन चच्चा
----------------
रोजन किन्नर थे
रोजन को हम चच्चा कहते थे उनकी झोपड़ी
हमारे घर से थोड़ी दूर पर थी जब मिलते
पूछते का हो बेटा हम कहते ठीक है चच्चा
कभी दुकान पर चाय पी रहे होते तो पूछते
चाय पी बो हम कहते बाद में चच्चा
जब हमारे हाथ पैर में मोच आ जाए
चच्चा घर आकर मालिश से ठीक कर देते
हमें बुख़ार हो तो वेदनानिग्रह रस दे जाते
वे किन्नर नहीं हम बच्चों के चच्चा थे।


आपा के नाम ख़त
----------------------
आपा 
अस्सलाम अलैकुम
नर्सिंगहोम से मैं भी अपनी बेटी को लेकर आ गया हूं
आप भी इक़रा को लेकर बख़ैरियत घर पहुंच चुकी होंगी
इक़रा भी मुझे अपनी बेटी जैसी प्यारी लगी
अब कैसी है
आपा 
हमारे पास पैसे थे 
हम बच्चों के लिए बेहतर कर सकते थे
जिनके पास पैसे नहीं थे
कोई सरकार उनके लिए ऐसा नहीं करती
हिन्दू-मुसलमान के नाम पर मुफ़्त में ऐसा इलाज नहीं होता
ठीक है कि डाक्टर हेली-मेली थे पांच हज़ार छोड़ दिया
वर्ना हिन्दू चाहे मुसलमान होने पर
एक कप चाय तो मुफ़्त मिलती नहीं
आपा 
आप कितनी अच्छी हैं
आपने इक़रा के लिए थर्मस में रखा दूध
आधी रात में मेरी बिटिया के लिए पेश किया
शुक्रिया
आपा
मेरी कोई दिदिया होती तो बिल्कुल आप जैसी होती
क्या पता पिछले जनम में मैं आपका भाईजान रहा होऊं
हो सकता है कि आप मेरी दिदिया रही हों
आपा 
सच कहूं तो मैं
मज़हब की किताब कम पढ़ता हूं
ज़िन्दगी की ज़्यादा
मुझे 
ज़्यादा पता नहीं 
कि मज़हब की किताबें पहले पैदा हुईं या इंसान
कुछ-कुछ तो पता है 
कि ज़िन्दगी की किताब ही 
धरती की सबसे पुरानी और सबसे प्यारी किताब है
आपा
आज आप यह ख़त खोलेंगी तो हैरान होंगी
खुश भी बहुत होंगी वालेकुम अस्सलाम कहेंगी
शुक्रिया कहना जरूरी था बस
भाईजान को भी शुक्रिया जरूर कहिएगा
पहला निवाला मुंह में लेने से पहले पूछने के लिए
आपा अख़ीर में
बड़ों के लिए दुआएं 
बच्चों के लिए बहुत-बहुत प्यार
और आप दोनों के लिए तहेदिल से प्यार
इक़रा के निक़ाह में 
इंशाअल्लाह हम ज़रूर शामिल होंगे।


सलाम 
-----
सब साहिबान को सलाम
जो मुझे छोड़ने आए थे सिवान तक
उन भाइयों को सलाम जो अड्डे तक आए थे
मेरी छोटी-छोटी चीज़ों को लेकर ।
उन चच्चा को ख़ासतौर से सलाम
जिन्होंने मेरा टिकट कटाया था
और कुछ छुट्टे दिए थे वक़्त पर काम आने के लिए।
बचपन के उन साथियों को सलाम
जिन्होंने हाथ हिलाया था
और जिन्होंने हाथ नहीं हिलाया था ।
अम्मी को सलाम
जिन्होंने ऐन वक़्त पर गर्म लोटे से
मेरा पाजामा इस्त्री किया था और जल गई थी
जिनकी कोई उँगली ।
आपा को सलाम
जिनके पुए मीठे थे ख़ूब और काफ़ी थे
उस कहकशाँ तक पहुँचे मेरा सलाम
जो मुझे कुछ दे न सकी थी
खिड़की की दरार से सलाम के सिवा ।
उस याद को सलाम
जिसने ज़िन्दा किया मुझे कई बार
उस वतन को सलाम
जो मुझे छोड़कर भी मुझसे छूट नहीं पाया ।
रास्ते की तमाम जगहों और उन लोंगो को सलाम
जिन्होंने बैठने के लिए जगह दी
और जिन्होंने दुश्वारियाँ खड़ी कीं
उस वक़्त को सलाम
जिसने मुझे मार-मार कर सिखाया यहाँ
किसी आदमी को रिश्तों से नहीं
उसकी फ़ितरत से जानो ।
ऐ ज़िंदगी तुझे सलाम
जो किसी काम के वास्ते तूने चुना
किसी ग़रीब को ।







सोमवार, 17 अप्रैल 2023

महापंडित तथा अन्य छोटी कविताएँ

- गणेश पाण्डेय

प्रेम कविता
------------
कोई कवि किसी के प्रेम में मर-मिटता है
प्रेम में चोट खाने के बाद घनानंद बन जाता है
प्रेम कविताओं का अंबार लगाने लगता है
हिन्दी का आज कवि अमरप्रेम नहीं करता है
उसके लिए स्त्री पहली दूसरी तीसरी कविता है
वह प्रेम करने के लिए प्रेम नहीं करता है
केवल संबंघ बनाने के लिए प्रेम करता है
जैसे कविता पुरस्कार के लिए लिखता है
उसकी सारी प्रेम कविताएँ फ़र्ज़ी हैं
स्त्रियों को रिझाने के लिए लिखी गयी हैं।


रुपया
--------
कोई देश से प्रेम करने लगता है
कोई क्रांति के स्वप्न से प्रेम करने लगता है
कोई किसी खेल से प्रेम करने लगता है
कोई किताबों के प्रेम में कीड़ा बन जाता
कोई रुपये के प्रेम में अंधा हो जाता है
उसी को खाता है उसी को पीता है 
उसी के लिए हत्या करता है सबको सताता है
मनुष्यता की सबसे निचली सीढ़ी से 
और नीचे और नीचे लुढ़कता जाता है
आग लगे इस रुपये में।

लोकतंत्र का मज़ाक़
---------------------
कोई बंदूक से प्यार करने लगता है
बंदूक के रास्ते पर चलता जाता है
चारो तरफ़ ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ पैदा करता है
गुनाहों की एक लंबी फ़ेहरिस्त के बाद 
राजनीति का सितारा बन जाता है
अपने आक़ाओं के बहुत काम आता है
पैसा लूटते-लूटते वोट लूटने लगता है
बंदूक की नोंक पर बैठकर गोली की तरह 
सीधे संसद में पहुँच जाता है लोकतंत्र का 
इससे बड़ा मज़ाक़ क्या हो सकता है।


संविधान के कारीगर
------------------------
भारतीय राजनीति 
और अपराध का अशुभ-विवाह 
किस दुष्चरित्र पंडित ने कराया पकड़ो उसे
बारात में कौन-कौन सी पार्टियाँ शामिल थीं
और किन गधों ने बैंड-बाजा बजाया
संगीन आपराधिक मामलों का आरोपी
माननीय जनप्रतिनिधि कैसे बन सकता है
अब तक संविधान के कारीगरों ने आखि़र 
इस चोर दरवाज़े को बंद क्यों नहीं किया।

गोली और फूल
--------------------
माफ़िया की बंदूकें 
जगह-जगह गोली उगलें
और पुलिस की बंदूकें फूल बरसायें
जेलें अपराधियों के लिए सैरगाह हो जाएँ
न्यायालय बीसियों साल फ़ैसला न दे पाये
जेलों से संगठित अपराध चलाने की छूट हो
ऐसा कोई राजनेता सोच कैसे सकता है
कोई राजनेता पुलिस से बंदूकें वापस लेकर
उन्हें मज़ाक कैसे बना सकता है।

उलट-पलट 
---------------
एक सरकार में
कुछ माफ़िया निशाने पर होते हैं
शेष सरकार के प्यारे होते हैं
दूसरे सरकार में उलट होता है
सरकारो उलट-पलट का यह खेल
कब बंद करोगो आओगे तो फिर 
उलट-पलट का खेल खेलोगे।

दो दुनिया
-------------
शहर एक है दुनिया दो है
एक रोशनी की छोटी दुनिया है
दूसरी अँधेरे की बड़ी दुनिया है
अँधेरे की दुनिया को देखने के लिए
उसमें जीना पड़ता है धँसना पड़ता है
अँधेरे से लड़ने के लिए ख़ुद
हाथ-पैर चलाना पड़ता है।

चाहत
--------
यह शहर है 
कि देश है कि दुनिया
जहाँ दो ज़िन्दगियाँ हैं अँधेरे और उजाले की
एक में गोदाम मेवे और रुपयों से भरे हुए हैं
खाने के लिए पूरे छप्पन भोग सजे हुए हैं
दूसरे में पतली दाल ठंडी बाटी और लाल मिर्च
कमीज़ की जेब ज़रूर फटी हुई हैं सीना दुरुस्त 
फेफड़े मज़बूत हैं और अँधेरे से निकलने 
और दुनिया को उलट-पलट देने की
चाहत कम नहीं हुई है।

तीसरी ज़िन्दगी
-------------------
एक तीसरी ज़िन्दगी है मैं उन्हें जानता हूँ
वे क्यों सोचते हैं कि इस सबसे बड़े शहर में 
उनके बच्चों के थ्री बीएचके फ्लैट हो जाएँ और 
पैकेज चालीस से बढ़कर एक करोड़ हो जाए
अपार्टमेंट के सामने लाल दोंगर वालों की दशा
कुछ-कुछ सुधर जाए लेकिन कितनी सुधर जाए
जो बाई काम के लिए आती है उसके बच्चे
और उनके नाती-पोते एक जैसे हो जाएँ
वे ऐसा कुछ क्यों नहीं सोच पाते हैं क्या है 
जो उनमें कम है कैसा भय है।

महापंडित 
-------------
आप लेखक हैं संगठन के महासचिव हैं
आप इतनी बड़ी पत्रिका के संपादक हैं
साहित्य से अधिक राजनीति के महापंडित हैं
केवल उस एक दल का नाम बता दीजिए जो
राजनीति और अपराध के अशुभ-विवाह के खि़लाफ़ है
राजनीति और भ्रष्टाचार के अशुभ-विवाह के खि़लाफ़ है
राजनीति और धर्म के अशुभ-विवाह के  खि़लाफ़ है
राजनीति और जाति के अशुभ-विवाह के खि़लाफ़ है
आपकी एक आँख फूटी क्यों है आधा क्यों देखते हैं
फासीवादी को देखते हैं बाक़ी को नहीं देखते हैं।

विकल्प 
----------
रेल गाड़ी से उतारकर 
सवारियों को टैक्सी में बैठाने के लिए 
क्या यह ज़रूरी नहीं है कि आप पहले
देख तो लें कि टैक्सी के चारो पहिए
सलामत हैं या नहीं आगे चलकर आप
बैलगाड़ी में बैठने के लिए तो नहीं कहेंगे
साफ़-साफ़ पहले ही बता दीजिए। 

पैर
-----
हम सिर्फ़ कह सकते हैं आगे बढ़िए
दूसरी बार कह सकते हैं तीसरी बार भी
इसके बाद भी वह पैर नहीं हिलाता
तो यह उसकी मर्ज़ी है वहीं पड़ा रहे
हम उसके पैर नहीं बदल सकते हैं।






बुधवार, 12 अप्रैल 2023

ख़ुदा-वंद-ए-करीम तथा अन्य छोटी कविताएँ


- गणेश पाण्डेय

ऐ ख़ुदा
-----------
कैसा बुरा समय आया है
कोई ज़लज़ला तो नहीं आने वाला है
गोरख कबीर प्रेमचंद फ़िराक़ देवेंद्र कुमार 
और कुछ-कुछ मेरे इस शहर में ज़माने से 
पालकी ढोने वालों की पालकी ढोने वाले 
ऊँची आवाज़ में ईमान की बात करने लगे हैं
ऐ ख़ुदा हिन्दी को इस झूठ से महफ़ूज़ रखना।

बदचलनी
-------------
ऐ ख़ुदा हिन्दी को 
फ़ेसबुक की इस बदचलनी से बचाना 
कि एक ही शख़्स चोर और सिपाही दोनों को 
चाहकर भी एक साथ लाइक न कर सके
ख़ुदाया ऐसे लोगों की शक़्लें बिल्कुल 
शातिर चोरों जैसी बना देना।

वह मोढ़ा
------------
वह शख़्स जिसके पास ख़ुद की कुर्सी नहीं है
ख़ुद की भाषा और ख़ुद का मुहावरा नहीं है
जो एक टुटहे मोढ़े पर बैठकर लगातार 
अदब और इंसाफ़ पर भाषण दे रहा है
ख़ुद को बेदाग़ और बेकसूर दिखा रहा है
वह मोढ़ा मेरा है जिसे वह अपना बता रहा है
ऐ ख़ुदा मेरे मोढ़े को सलामत रखना।

दसदुआरी
-------------
ऐ ख़ुदा हिन्दी में
ऐसी छोटी मशीनें ज़रूर बना देना
कि दूसरे शहर का लेखक वहीं से
जान सके कि मेरे शहर में कौन लेखक 
दसदुआरी है और कौन अपने ठीहे पर 
जमा हुआ है।

जन्नत-नशीं
----------------
ऐ ख़ुदा दिल्ली की पूँछ पकड़कर 
मेरे सिर पर बैठने की ख़्वाहिश करने वाले
लेखकों को लेखकों की उस बिरादरी में 
रत्नजड़ित सिंहासन देना जहाँ सुबह-शाम 
गधे कविता लिखते हों और चूहे आलोचना
जहाँ छोटे से छोटे कवि का संग्रह 
एक साथ पच्चीस भाषाओं में छपता हो
अनुवाद होना जहाँ बड़ा काम समझा जाता हो
बराएमेहरबानी उनके बाड़े के मुँह पर सूअर नहीं
हिन्दी के जन्नत-नशीं लिख देना।

ग़ैबी ताक़त 
---------------
बहुत बुरा बखत है
बुरे लोगों से अच्छाई से पेश आना चाहो तो
वे रास्ते में ही अच्छाई की इज़्ज़त लूट लेते हैं
वे अच्छा लेखक होने का ढोंग तो कर सकते हैं
किसी सचमुच के अच्छे लेखक को सेकेंड का
हज़ारवाँ हिस्सा भी बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं
ऐ ख़ुदा ऐसे दुष्टों से निपटने के लिए थोड़ी-सी
ग़ैबी ताक़त मुझे भी अता फ़रमा।

जो करूँ
-----------
ऐ ख़ुदा
मैं बहुत शुक्रगुजार हूँ
मुझमें इतनी ताक़त तो बख़्शी कि
ज़रा-सी ठोकर से जैसे ही लड़खड़ाने को होऊँ
तुरत संभल जाऊँ और फिर जो करूँ 
किसी के मान में न आऊँ।

ख़ुदा-वंद-ए-करीम 
------------------------
ख़ुदा-वंद-ए-करीम मैंने तो 
तेरे हुक़्म की तामील करते हुए बुरे लेखकों से
अच्छाई से पेश आने की बारहा कोशिश की
मेरे सिर पर बार-बार पेशाब तो उन्होंने की
उनके घमंड को चकनाचूर करने के लिए 
मुझे इसी तरह तेज़ाबी कविताएँ
और विस्फोट गद्य लिखने दे।

दुष्ट लेखक
--------------
ऐ ख़ुदा मुझे माफ़ करना 
मैंने तुझे उर्दू अल्फ़ाज़ों में याद किया
संस्कृतनिष्ठ तत्सम में याद करता
तो बीस बार ओ प्रभु कहते ही कवि नहीं
साम्प्रदायिक हिन्दू कह दिया जाता
हालाँकि मेरे लिए हिन्दी और उर्दू सगी बहनें हैं
एक के घर में जो पकता है दूसरे भी चखते हैं
दूसरे घर में जगह कम पड़ती है तो हिन्दी
अपनी दोनों बाहें फैला देती है लेकिन 
ये हिन्दी के दुष्ट लेखक कुछ सीखते ही नहीं।

इजाज़त 
-----------
ऐ ख़ुदा
तू मुझे माफ़ कर आज की तारीख़ में
यहाँ किसी भी बेईमान अंपादक-संपादक में
मेरे लिखे को छापने की क़ुव्वत नहीं है
इसलिए इन कविताओं को अपने ब्लॉग में
छापने की इजाज़त दे।






शनिवार, 1 अप्रैल 2023

ये औरतें तथा अन्य छोटी कविताएँ


- गणेश पाण्डेय


ये औरतें
----------
काश ये औरतें 
इस तरह भगदड़ में मारी नहीं जातीं
आटे के एक थैले के लिए लिए जान नहीं देतीं 
अपने बच्चों और अपने मुल्क की बेहतरी के लिए 
धार्मिक कट्टरता और दशशतगर्दों से
लड़ते-लड़ते मारी जातीं।

हुकूमत 
---------
पड़ोस में बच्चे किस कदर रो रहे हैं
उनकी माएँ छातियाँ पीटे जा रही हैं
बाप बेचारा बेबस है करे तो क्या करे
देख रहा है निज़ाम से कह भी रहा है 
पड़ोस से मदद मिल सकती है माँगो
हुकूमत मुँह में दही जमाये बैठी है
काश अवाम गेहूँ की तरह हुकूमत को 
पीसकर आटा बना पाती।

कश्मीर का झुनझुना
-----------------------
अवाम की बेवकूफियाँ मिसाल हैं
उसने न्यूक्लियर बम को चुना आटे को नहीं
दहशतगर्दी को चुना चौतरफा तरक्की को नहीं
माहिरा खान को चुना हबीब जालिब को नहीं
जम्हूरियत को फौज ने जब चाहा पैरों से रौंदा
आधी-अधूरी जम्हूरियत किसी काम न आयी
अवाम को इंडिया के ख़लिफ जिसने भड़काया
कश्मीर का झुनझुना थमाया उसे पीएम बनाया
बदले में आज दो जून की रोटी भी नसीब नहीं
काश उसके पास रोटी का ख़ुदा होता। 


ख़ुदा सो रहा है
-------------------
ख़ुदा कुछ देख नहीं रहा है देखता तो
रोटी के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगतीं
क्या बीबियाँ पुलिस के हाथों पिटतीं
क्या भगदड़ में बंदो की जानें जातीं
क्या अमीर लोग देशी घी से चुपड़ी 
मिस्सी रोटियाँ खाते और बेचारे ग़रीब 
मारे-मारे फिरते भूखों रहते यक़ीनन
ख़ुदा सो रहा है ख़ुदा जागता कम है
सोता बहुत ज़्यादा है।


सपने में
----------
कल रात सपने में बम नहीं
लड़ाकू विमान से रोटियाँ बरसा रहा था 
डर नहीं पड़ोस में प्यार लुटा रहा था
बच्चों और औरतों के चेहरे पर 
मुस्कान ला रहा था।


फिर आइएगा
------------------
मैंने सपने में जिन-जिन बच्चों को
रोटियाँ खिलायीं मुझे उनकी अम्मियों ने कहा
शुक्रिया भाईजान फिर आइएगा ऐसे ही
हमारे मुल्क में दोस्ती का फरिश्ता बनकर
इंसानियत की मिसाल बनकर 
बँटवारे पर सवाल बनकर।

सपने
--------
नींद खुली 
तो रात के सपने याद आये थोड़ा डर गया
मुझे क्या हो गया था अपनी सरकार से पूछे बिना
पड़ोस में रोटी गिराने जैसे कई ख़तरनाक सपने 
ताबड़तोड़ देख गया मुझे तो क़ानून भी पता नहीं
ग़ैर-इरादतन सपने देखने का क्या दण्ड है
और इरादतन का क्या दो साल या चार साल 
भलाई करने का क्या है बुराई करने का क्या
आप से आप जो सपने आते गये देखता गया।


दंगे
-----
दंगे तो
हमारे और हमारे बच्चों के लिए मुसीबत हैं
ख़ून हमारा बहेगा और गाल आपके सुर्ख़ होंगे
घर हमारा जलेगा और महल आपके सजेंगे
आपका क्या आपकी तो चाँदी ही चाँदी होगी
हम जिस जगह दफ़्न होंगे आपकी फसल 
वहीं हमारी छाती पर लहलहाएगी।


विचारों की फेरी
---------------------
भगत सिंह के प्यारे उनके विचारों को
उनके स्वप्न को लोगों तक ले जाते हैं
आज़ादी की लड़ाई के दिनों में प्यारे-प्यारे 
बच्चों की प्रभातफेरी की तरह आज सड़कों पर
भगत सिंह के विचारों की फेरी निकालते हैं
आते-जाते लोग कभी देखते हैं कभी नहीं
ठहरकर कुछ तो सोचेंगे शर्मिंदा भी होंगे
जिस दिन पैम्फलेट पढ़ेंगे बुदबुदाएंगे 
कैसा जीवन जिया!


चाँद और चितचोर 
----------------------
मेरा चाँद तो तुम हो
चाँद को देखता हूँ तो चाँद को नहीं
उसमें तुम्हें देखता हूँ मेरी चितचोर
तुम्हारा श्वेत-कमल-मुख
तुम्हारी स्मिति तुम्हारी चितवन
तुम्हारा चिरयौवन तुम्हारा प्रेम
तुम्हारी कांति तुम्हारी दीप्ति सब देखता हूँ
इसीलिए रोज़ उस टूटने-फूटने वाले 
खिलौने जैसे चाँद से भी कभी-कभार 
झूठ-मूठ का प्यार कर लेता होऊँगा
वर्ना उस चाँद में कंकड़-पत्थर 
और अँधेरे के सिवा रक्खा क्या है।


                                                                                                                              
                                                                                                             मेरा चाँद तो तुम हो