- गणेश पाण्डेय
कोई तो होगा मेरे जैसा
जो कह सके शपथपूर्वक
चालीस पार किया
गया नहीं दिल्ली
नयी कि पुरानी
देखा नहीं कनाट प्लेस
बहादुर शाह जफर मार्ग
चांदनी चौक, मेहरौली
अनकनंदा, दरियागंज
मुझे अक्सर लगा
एक डर है दिल्ली
किसी शहर का नाम नहीं
जो फूत्कार करता है
लेखकों की जीभ पर
हृदय के किसी अंधकार में
जब-जब बताते रहे एजेंट सगर्व
दिल्ली दरबार के किस्से
लेखकों की जुटान के ब्योरे
कैसे बंटती हैं रेवड़ियां
और पुरस्कार
हाय ! सुनता रहा किस्सों में
कैसे मचलते हैं नए कवि
किसी उस्ताद की कानी उंगली से
एक डिठौने के लिए
और
नाचते हैं कैसे आज के किस्सागो
किसी दरियाई भालू के आगे
उसकी एक फूंक के लिए
निछावर करने को आतुर
अपना सबकुछ
बेशक होता रहा हांका
कुल देश में कि खैर नहीं
मार दिये जाएंगे वे
जो जाएंगे नहीं
दिल्ली
मैं हंसता रहा
कि दिल्ली से
दिल्ली के लिए उड़ायी गयी
एक अफवाह है दिल्ली
देखो तो
बचा हुआ है गणेश पाण्डेय
गोरखपुर में साबूत।
( "अटा पड़ा था दुख का हाट" से)
कोई तो होगा मेरे जैसा
जो कह सके शपथपूर्वक
चालीस पार किया
गया नहीं दिल्ली
नयी कि पुरानी
देखा नहीं कनाट प्लेस
बहादुर शाह जफर मार्ग
चांदनी चौक, मेहरौली
अनकनंदा, दरियागंज
मुझे अक्सर लगा
एक डर है दिल्ली
किसी शहर का नाम नहीं
जो फूत्कार करता है
लेखकों की जीभ पर
हृदय के किसी अंधकार में
जब-जब बताते रहे एजेंट सगर्व
दिल्ली दरबार के किस्से
लेखकों की जुटान के ब्योरे
कैसे बंटती हैं रेवड़ियां
और पुरस्कार
हाय ! सुनता रहा किस्सों में
कैसे मचलते हैं नए कवि
किसी उस्ताद की कानी उंगली से
एक डिठौने के लिए
और
नाचते हैं कैसे आज के किस्सागो
किसी दरियाई भालू के आगे
उसकी एक फूंक के लिए
निछावर करने को आतुर
अपना सबकुछ
बेशक होता रहा हांका
कुल देश में कि खैर नहीं
मार दिये जाएंगे वे
जो जाएंगे नहीं
दिल्ली
मैं हंसता रहा
कि दिल्ली से
दिल्ली के लिए उड़ायी गयी
एक अफवाह है दिल्ली
देखो तो
बचा हुआ है गणेश पाण्डेय
गोरखपुर में साबूत।
( "अटा पड़ा था दुख का हाट" से)
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