- गणेश पाण्डेय
एक कवि
अपने वक्त में
साहित्यनीति के लिए
लड़ रहा था
मठों और किलों से
टकरा-टकरा कर
अपना सिर
लहूलुहान कर रहा था
टकरा-टकरा कर
अपना सिर
लहूलुहान कर रहा था
था एक पागल कवि
साहित्य की दुनिया में
खुदकुशी कर रहा था
साहित्य की दुनिया में
खुदकुशी कर रहा था
शेष कवि
अपनी कमीज की आस्तीन मोड़कर
लिखने की मेज पर
बड़ी अदा से कोहनी टिकाये
राजनीति
और समाजनीति पर
धुआंधार
क्रांतिकारी कविताएं लिख रहे थे
अपनी कमीज की आस्तीन मोड़कर
लिखने की मेज पर
बड़ी अदा से कोहनी टिकाये
राजनीति
और समाजनीति पर
धुआंधार
क्रांतिकारी कविताएं लिख रहे थे
शेष कवि
चीख-चीख कर कहते थे
कि वे किसी भी चुने हुए
तानाशाह और उसकी फौज से नहीं डरते थे
अलबत्ता
अकादमी अध्यक्ष की पिस्तौलछाप धोती से
थर-थर-थर कांपते रहते थे
चीख-चीख कर कहते थे
कि वे किसी भी चुने हुए
तानाशाह और उसकी फौज से नहीं डरते थे
अलबत्ता
अकादमी अध्यक्ष की पिस्तौलछाप धोती से
थर-थर-थर कांपते रहते थे
यह
दो हजार सत्रह का
बहुत बुरा साल था
एक कवि
कविता के लिए अपनी जान दे रहा था
दो हजार सत्रह का
बहुत बुरा साल था
एक कवि
कविता के लिए अपनी जान दे रहा था
शेष कवि
उत्सवपूर्वक
हजार प्रकार से
गऊ जैसी कविता की जान ले रहे थे।
उत्सवपूर्वक
हजार प्रकार से
गऊ जैसी कविता की जान ले रहे थे।