सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

कबीर जेएनयू से पीएचडी थे क्या

-  गणेश पाण्डेय

तुम लोग
खुद कुछ करो
अपनी सरकार बनाओ
अपने जनप्रतिनिधि चुनो
लेकिन पहले अपढ़ और कमपढ़
जनता का विश्वास तो जीतो

जनता के पास
जाने से पहले अपने मुंह धो लो
सरकारी चाहे सेठों की संस्थाओं से
भीख में मिली सोने की चेन
गले से निकालकर चोरजेब में रख लो

और सुनो
छात्रों को पढ़ने दो
मां-बाप की उम्मीदों को पूरा करने दो
उन्हें अभी समाज-सुधारक मत बनाओ
समाज सुधार के लिए कबीर से ज्यादा
और दिल्ली में पढ़ने की क्या जरूरत है
कहीं भी पढ़ लो
दिल्ली और गोरखपुर में
कबीर को पढ़ने-पढ़ाने में क्या फर्क है
कबीर जेएनयू से पीएचडी थे क्या
जनता पूछे इससे पहले जवाब ढूंढ लो

चैनलों की राजधानी से निकलकर
मगहर में कबीर की समाधि पर प्रदर्शन करो
अपने भीतर के कबीर को जगाओ

कबीर की वाणी में उनका
ईमान देखो काशी को तजना देखो
सबको ललकारना देखो
दोनों को डांटना-फटकारना देखो

लेकिन तुम्हें पहले
दिल्ली की सड़कों पर
अपनी-अपनी पार्टी को
खुद मजबूत बनने की जगह
किसी संभावनाच्युत पार्टी के
पीछे-पीछे चलते हुए
जीभर के देखने से फुरसत तो मिले
आत्मा जुड़ा जाए तो निकलना
गांव की ओर

जहाज हेलीकाप्टर एसयूवी से नहीं
जनता का दिल जीतने के लिए
ईमान के पैरों पर चलने में
सौ से भी ज्यादा साल लगेंगे
गांधी से ज्यादा पदयात्राएं करनी होंगी
यह सब सिर्फ गाना गाकर नहीं
जीकर किया जा सकता है
जी सकोगे जैसा मुक्तिबोध चाहते थे

यह सब खुद नहीं कर सकते तो जाओ
लोकतंत्र के चोर-उचक्कों लुटेरों
और हत्यारों के घर के बाहर
औरतों और बच्चों को बैठाने की जगह
खुद धरना दो
कि राजनीति की छोटी-छोटी दुकान बंदकर
कुछ नया करें कोई लोहिया लाएं
कोई जेपी पैदा करें

और
ऐसा नहीं कर सकते तो
कोई बात नहीं थोड़ा बर्दाश्त करो
कोई दंगा-फसाद मत करो
विश्वविद्यालयों को
और उनके विद्यार्थियों का जीवन
बर्बाद मत करो मत करो मत करो

शायद जनता
कभी आप से आप कुछ कर ले
इसी इक्कीसवीं सदी के शुरू में
गोरखपुर में हुए मेयर के चुनाव की तरह
ऊबकर किन्नर आशादेवी को चुन ले।



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