- गणेश पाण्डेय
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महाराज
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जैसे
पड़ोसी मुल्क में
हिंदू बेटियों के लिए
आपके हृदय में दर्द का समुद्र है
महाराज
होना भी चाहिए
आखिर विश्वभर के हिंदुओं के
आप ही संरक्षक हैं
महाराज
आप महाबली हैं
आपने पड़ोसी मुल्क को
कई बार धूल चटाया है
थर-थर कांपते हैं आपसे
आततायी
ये कौन घुस आए
छः फरवरी की रात
गार्गी कालेज में
बेटियों के उत्सव में
कैसे बेखौफ लोग थे
बेटियों की लाज
तार-तार कर रहे थे
उन्हें न पुलिस का डर था
न आपकी सरकार का
न फौज-फक्कड़ का
ये आदमी नहीं थे
इन्हें अपनी बहनों
और मांओं का भी
डर नहीं था
घट-घट में कंठ-कंठ में
विराजते जय श्रीराम का
डर नहीं था
आपकी राजधानी में
आपके प्रासाद से कुछ दूरी पर
बस आपकी नाक के नीचे
कालेज की बेटियों के लिए
दर्द का समुद्र नहीं न सही
नदी सही नाला सही तालाब सही
एक बूंद सही, फौरन दिखे तो
महाराज
आप पर भरोसा है महाराज
बस आपके चाहने की बात है
उन बेटियों को अपनी बेटी
देश की बेटी समझने की बात है
आप स्वयं ज्ञानी हैं महावीर हैं
भला आपको कोई क्या खाकर
समझा सकता है
महाराज।
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ईंट और पत्थर का सिलसिला
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जो लोग
विपक्ष में रहते समय
ईंट खाते हैं
वही लोग
सत्ता में आने के बाद
पत्थर खिलाते हैं
लोकतंत्र में
यह किस्सा भरथरी से
चल रहा है
वाह रे
हिन्दी के विद्वान
समझकर भी समझ नहीं रहे
बड़ी-बड़ी बातें बाद में
पहले ईंट और पत्थर का
सिलसिला बंद कराओ।
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राजनीति में भाषा
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प्रधानमंत्री के उम्मीदवार की भाषा
नेहरू लोहिया वाजपेयी जैसी न हो
तो भी कोई बात नहीं
कम से कम और उससे भी कम
अपनी ही पार्टी के दूसरे वक्ताओं से तो
अच्छी होनी ही चाहिए क्यों भाई
अब यह मत कह देना कि वक्त बुरा है
भावी प्रधानमंत्री की भाषा और उतावलापन
छात्रनेताओं जैसा है तो भी चलेगा
बिल्कुल नहीं चलेगा चुनाव सभाओं में
गंभीरतापूर्वक भाषण देने में दिक्कत है
तो लिखित भाषण तो पढ़ सकते हैं
हद है भाई
आप खुद कुछ सीखने के लिए
चींटी की मुंडी के बराबर तैयार नहीं हैं
चाहते हैं कि देश आपको कहे मुताबिक
हाथी की मुंडी के बराबर समझने के लिए
तैयार हो जाए।
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आत्मविश्वास
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लेखक हो या राजनेता
उसे आत्मविश्वास अर्जित करना पड़ता है
जिन्हें पार्टी पद-प्रतिष्ठा-पुरस्कार वगैरह
किसी की गोद में बैठने से मिल जाता है
वे जरा-सा ऊबड़खाबड़ आते ही
लुढ़क जाते हैं
धूल-मिट्टी में लोटकर बड़े हुए बच्चों से
न पंजा मिला पाते हैं न आंख।
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भारत मां को नोचने-खसोटने वाले
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देश बर्दाश्त कर लेगा
हिन्दू-मुसलमान की राजनीति
दस साल बीस साल पचास साल
लेकिन आखिर कब तक
स्त्रियों की लाज न बचाने वाले
राजा को बर्दाश्त करेगा
देश कैसे बर्दाश्त कर सकता है
कि राजा बलात्कारी को बचाए
और हत्यारे को मदद पहुंचाए
न्याय से वंचित निराश-हताश
लड़कियों को आत्महत्या के लिए
अपने कारनामों से उकसाए
समझ रहे हो
भारत मां को नोचने-खसोटने वाले
सत्ता के मद में चूर राजाओ
पीछे-पीछे जयकार करने वाले गुंडों को
लड़कियों को अपमानित करने की
छूट देने का अंजाम जानते हो
राजाओ भूल गये हो जहां
स्त्रियों की पूजा की जगह
गुंडाराज होता है वहां क्या होता है
वहां के राजा का क्या होता है
वहां के राजवंश का क्या होता है
उसके लाव-लश्कर का क्या होता है
जनता सब याद रखती है
और वक्त आने पर बहुत कुछ करती है
तुम्हारे साथ भी जनता वही करेगी
वही जो तुमसे पहले के सभी अहंकारी
राजाओं के साथ करती आयी है
घसीटकर उतारेगी सिंहासन से।
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महाराज
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जैसे
पड़ोसी मुल्क में
हिंदू बेटियों के लिए
आपके हृदय में दर्द का समुद्र है
महाराज
होना भी चाहिए
आखिर विश्वभर के हिंदुओं के
आप ही संरक्षक हैं
महाराज
आप महाबली हैं
आपने पड़ोसी मुल्क को
कई बार धूल चटाया है
थर-थर कांपते हैं आपसे
आततायी
ये कौन घुस आए
छः फरवरी की रात
गार्गी कालेज में
बेटियों के उत्सव में
कैसे बेखौफ लोग थे
बेटियों की लाज
तार-तार कर रहे थे
उन्हें न पुलिस का डर था
न आपकी सरकार का
न फौज-फक्कड़ का
ये आदमी नहीं थे
इन्हें अपनी बहनों
और मांओं का भी
डर नहीं था
घट-घट में कंठ-कंठ में
विराजते जय श्रीराम का
डर नहीं था
आपकी राजधानी में
आपके प्रासाद से कुछ दूरी पर
बस आपकी नाक के नीचे
कालेज की बेटियों के लिए
दर्द का समुद्र नहीं न सही
नदी सही नाला सही तालाब सही
एक बूंद सही, फौरन दिखे तो
महाराज
आप पर भरोसा है महाराज
बस आपके चाहने की बात है
उन बेटियों को अपनी बेटी
देश की बेटी समझने की बात है
आप स्वयं ज्ञानी हैं महावीर हैं
भला आपको कोई क्या खाकर
समझा सकता है
महाराज।
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ईंट और पत्थर का सिलसिला
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जो लोग
विपक्ष में रहते समय
ईंट खाते हैं
वही लोग
सत्ता में आने के बाद
पत्थर खिलाते हैं
लोकतंत्र में
यह किस्सा भरथरी से
चल रहा है
वाह रे
हिन्दी के विद्वान
समझकर भी समझ नहीं रहे
बड़ी-बड़ी बातें बाद में
पहले ईंट और पत्थर का
सिलसिला बंद कराओ।
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राजनीति में भाषा
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प्रधानमंत्री के उम्मीदवार की भाषा
नेहरू लोहिया वाजपेयी जैसी न हो
तो भी कोई बात नहीं
कम से कम और उससे भी कम
अपनी ही पार्टी के दूसरे वक्ताओं से तो
अच्छी होनी ही चाहिए क्यों भाई
अब यह मत कह देना कि वक्त बुरा है
भावी प्रधानमंत्री की भाषा और उतावलापन
छात्रनेताओं जैसा है तो भी चलेगा
बिल्कुल नहीं चलेगा चुनाव सभाओं में
गंभीरतापूर्वक भाषण देने में दिक्कत है
तो लिखित भाषण तो पढ़ सकते हैं
हद है भाई
आप खुद कुछ सीखने के लिए
चींटी की मुंडी के बराबर तैयार नहीं हैं
चाहते हैं कि देश आपको कहे मुताबिक
हाथी की मुंडी के बराबर समझने के लिए
तैयार हो जाए।
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आत्मविश्वास
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लेखक हो या राजनेता
उसे आत्मविश्वास अर्जित करना पड़ता है
जिन्हें पार्टी पद-प्रतिष्ठा-पुरस्कार वगैरह
किसी की गोद में बैठने से मिल जाता है
वे जरा-सा ऊबड़खाबड़ आते ही
लुढ़क जाते हैं
धूल-मिट्टी में लोटकर बड़े हुए बच्चों से
न पंजा मिला पाते हैं न आंख।
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भारत मां को नोचने-खसोटने वाले
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देश बर्दाश्त कर लेगा
हिन्दू-मुसलमान की राजनीति
दस साल बीस साल पचास साल
लेकिन आखिर कब तक
स्त्रियों की लाज न बचाने वाले
राजा को बर्दाश्त करेगा
देश कैसे बर्दाश्त कर सकता है
कि राजा बलात्कारी को बचाए
और हत्यारे को मदद पहुंचाए
न्याय से वंचित निराश-हताश
लड़कियों को आत्महत्या के लिए
अपने कारनामों से उकसाए
समझ रहे हो
भारत मां को नोचने-खसोटने वाले
सत्ता के मद में चूर राजाओ
पीछे-पीछे जयकार करने वाले गुंडों को
लड़कियों को अपमानित करने की
छूट देने का अंजाम जानते हो
राजाओ भूल गये हो जहां
स्त्रियों की पूजा की जगह
गुंडाराज होता है वहां क्या होता है
वहां के राजा का क्या होता है
वहां के राजवंश का क्या होता है
उसके लाव-लश्कर का क्या होता है
जनता सब याद रखती है
और वक्त आने पर बहुत कुछ करती है
तुम्हारे साथ भी जनता वही करेगी
वही जो तुमसे पहले के सभी अहंकारी
राजाओं के साथ करती आयी है
घसीटकर उतारेगी सिंहासन से।
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