शुक्रवार, 12 मई 2023

तीस कविताएँ

- गणेश पाण्डेय

सपने में पीएम
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सपने में देखा लोकतंत्र जनता के कंधों पर नहीं
माफ़ियाओं के बाहुबल पर टिका हुआ है मैं इस
डर से किसी बलात्कारी के खि़लाफ़ कड़ी कार्रवाई 
नहीं कर पा रहा हूँ कि चार सीटें कम पड़ जाएंगी
और मैं पचासवीं बार पीएम नहीं बन पाऊँगा
लानत है मुझ गणेश पाण्डेय पर मैं अपने ही मुँह पर 
पचास बार थूकता हूँ तुम हिन्दी में ही रहते गधे
सौ पुरस्कार लेते कोई तुम पर कभी नहीं थूकता
क्या ज़रूरत थी तुम्हें देश का प्रधानमंत्री बनने की
हिन्दी साहित्य सम्मेलन का नहीं बन पा रहे थे!


नींद खुल गयी
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सपने में मैंने ख़ुद को 
एक हिन्दू माफ़िया के रूप में पाया
कई हिन्दू लड़कियों के साथ बहुत बुरा किया 
हिन्दुओं का क़त्ल और अपहरण कराया
पचास हज़ार करोड़ से अधिक की सम्पत्ति बनायी
कुछ दान दिए कुछ ग़रीबों की शादी करायी
मदद करने से सुल्ताना डाकू जैसी ख्याति पायी
लेकिन किसी ने भी मुझे डाकू वग़ैरा नहीं कहा
माननीय सांसद जी माननीय विधायक जी कहा 
सहसा ज़िन्दाबाद के नारों के बीच नींद खुल गयी।


सपने में पुलिस 
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ये लो सपने में पुलिस भी आ गयी वही वाली 
कोरोना के दिनों की देवदूत जैसी छवि वाली
बड़े-बड़े माफ़ियों को यूँ मिट्टी में मिलाने वाली
ये क्या वर्दी तो वही थी चेहरा काला क्यों था
लेकिन उसके पंजे में माफ़िया की गर्दन नहीं  
जंतर-मंतर पर धरनारत बेटियों के बाल थे
भारतमाता जैसी सुंदर इन बेटियों की आँख में
ओलंपिक पदक की चमक नहीं आँसू ही आँसू थे
पुलिस इनके आँसू नहीं पोछ रही थी किसी ने
उसकी ममता का अपहरण कर लिया था।


मुर्गे पर कविता
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सपने में पुलिस मुझे खींचकर थाने ले गयी
सिपाही ने फिर नायब ने फिर थानेदार ने पूछा
तूने गृहमंत्रालय की अनुमति के बिना कविता 
कैसे लिखी किसके कहने पर लिखी आखि़र
कौन-सी पार्टी का बंदा है सरकार के खि़लाफ़
कविता लिखना तेरा धंधा है तू कबी ही तो है
कि सुप्रीम कोर्ट से बड्डी कोई चीज़ है बता नहीं 
तो अभी तुझे मुर्गा बनाता हूँ कुकड़ू-कू कराता हूँ
मुर्गे पर कविता लिखवाता हूँ।


असली सरकार 
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सपने में एक सरकार क्रीम-पावडर लगाकर 
बनी-ठनी घूमती दिखी तो आखि़र पूछ ही बैठा
इतने साल से सरकारे हैं रोज़गार दिला पायीं 
सबके जान-माल की हिफाज़त क्या कर पायीं
बच्चियों और महिलाओं की इज़्ज़त बचा पायीं
इस देश को सोने की चिड़िया बनाना तो छोड़ो
न्याय की नन्ही चिड़िया की जान क्या बचा पायीं
ये कौन लोग हैं जो सरकार का चीरहरण करते हैं
सरकारें चुपाई मारकर बैठी रहती हैं यही लोग 
असली सरकार हैं?


सपने में न्याय 
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सपने में न्यायाधीश मिले 
श्रीमन् कहा जाता है कि आप सर्वोच्च हैं
आपका कहा पत्थर की लकीर है अकाट्य है
अमिट है अजर है अमर है देववाणी है
आपका कार्यालय न्याय का मंदिर है जहाँ
निर्बल और डाकू सब सिर झुकाते हैं
फिर आपके होने के बावजूद देश में अपराध 
और अत्याचार कम क्यों नहीं हो रहा हैं
चमत्कार यह नहीं कि यह सब हो रहा है बल्कि 
यह कि आप में हमारा भरोसा आज भी है।


सपने में अरे भाई मिले
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सपने में मुझे प्रलेसी जलेसी जसमी मिले
कोई मुझे मेला घुमाने नहीं ले जा रहा था
कोई मेरी कमर में हाथ तक नहीं डाल रहा था
कोई मेरी नथ तक नहीं उतार रहा था सब मुझे
अंग्रेजी में हिन्दी बोलने वाली गोरी मेम नहीं
हिन्दी कविता की कुरूप फूहड़ मुँहफट बदबूदार 
कुमारी गणेश पाण्डेय समझ रहे थे अरे भाई 
सच ही तो बोल रहा था कविता में 
झूठ बोलने के लिए तो पूरी दुनिया पड़ी थी।


सपने में शेषन मिले
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सपने में टी एन शेषन मिले
मुझे बहुत परेशान हाल और ठगा-सा जान पूछा
क्या हुआ कवि जी चेहरा क्यों उतरा हुआ है
मैंने कहा भाई आज मतदान केंद्र से लौटा हूँ
पिछले कई सालों की तरह आज भी मैं न किसी
प्रत्याशी का नाम पढ़ पा रहा था न चुनाव-चिह्न 
पहचान पा रहा था सब गड्डमड्ड हो जा रहा था
क्या समझूँ मेरी नज़र कमज़ोर हो गयी है 
या भारत का लोकतंत्र धुँधला हो गया है।


सपने में इनामचंद 
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सपने में कविवर पंडित इनामचंद मेरे घर आये
बोले पंडित ईमानचंद सुना है आजकल बीमार हो
सपने में भी देश और कविता की चिंता करते हो
मुझे इतने इनाम मिलने के बाद अब न देश की
न साहित्य की चिंता है अगर कोई चिंता है भी
तो यह कि अमर होने के बाद मैं स्वर्ग में रहूँगा
और भक्तिकाल के अपुरस्कृत कवि बेचारे नर्क में
मैं स्वस्थ हो चुका था डपटा अबे इनामचंदिए 
साहित्य और अकादमी की तो मार ही चुका है 
देश की भी मारेगा क्या।


सपने में हिन्दू
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सपने में एक हिन्दू मिला बोला ओय गणेशिये
एक हिन्दू होकर हिन्दू की बुराई करना छोड़ दे
मैंने कहा तू हिन्दू स्त्री से बलात्कार करना छोड़ दे
हिन्दू से दहेज लेना छोड़ दे ज़मीन हड़पना छोड़ दे
हिन्दू होकर हिन्दू की जान लेना तो छोड़ दे
मैंने कहा देख मैं हिन्दू और मुसलमान दोनों की
बुराई करता हूँ किसी एक की नहीं तू केवल 
मुसलमान की बुराई करना छोड़ दे करना है
तो सभी माफ़ियाओं की बुराई कर।


सपने में भगवान
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मैंने पूछा कि आपके रामराज्य में यही होता है
कि लड़कियाँ पटरी पर धरना देती हैं तो उन्हें
पुलिस मारती-पीटती है गाली देती है धमकाती है
उनसे उम्मीद की जाती है कि आपके दल के
बाहुबलियों से लड़कियाँ दबकर रहें अपनी इज़्ज़त 
लुटने दें और उफ़ तक न करें क्योंकि बाहुबली
आपकी सरकार उलट-पलट देगा फिर आप
काहे के भगवान इससे तो अच्छा था कि आप
किसी देश के पीएम बन जाते। 


सपने में भविष्य 
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सपने में सो रहा था थोड़ी देर के लिए जाग गया
किसी बेटी ने पूछा तुम सचमुच के पीएम होते 
तुम्हारे परिवार की बेटी के साथ बुरा हुआ होता
तो बुरा करने वाले बड़े से बड़े महाबली के साथ
क्या करते तब भी गुणा-भाग करते मुँह सिल लेते 
आँख मूँद लेते ध्यानमग्न होकर योग करने लगते
विश्व रंगमंच पर अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे होते 
और मैं फिर सपने में चला गया जहाँ मेरे पास कोई 
प्रश्न नहीं था अपने उज्ज्वल राजनीतिक भविष्य का 
एक मानचित्र था उसे देख रहा था।


बेटियों के आँसू
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सपने में कोई लड़का अपनी बहनों के लिए
माइक के सामने रो रहा है-राजनीति के पहलवानो 
जंतर-मंतर पर धरने पर बैठी बेटियों की इज़्ज़त
सत्तामद के क्रूर बुलडोज़र से मत रौंदो बुरा होगा
उनमें तुम्हारी भी बेटियाँ हो सकती थीं बशर्तें वे
पहरे में नहीं रहतीं पहलवान होतीं लड़ रही होतीं
लड़कियों की इज़्ज़त का सौदा मत करो मत करो
उनसे राजनीति का यह गंदा खेल मत खेलो
देश की बेटियों के आँसू तुम्हारे खेल को
आज नहीं तो कल हार में बदल देंगे।


देश को जिताने वाली लड़कियाँ
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सपने में एक क्रूर सत्ता थी
जिसने देश को जिताने वाली लड़कियों को हराने 
और राजनीति के दाग़ी खिलाड़ी को जिताने का
बीड़ा उठाया था कोई उसे हरा नहीं सकता था
न पुलिस न न्यायालय न कोई और अलबत्ता
लड़कियाँ हार कर भी हार नहीं मान रही थीं
क्रूर सत्ता बौराई हुई थी उनका खाना-पीना-सोना
साँसे तक हराम कर देना चाहती थी फिर भी
सत्ता जितनी क्रूर थी लड़कियाँ उससे कहीं
ज़्यादा मज़बूत थीं क्योंकि देश उनके साथ था।


सपने में सरस्वती
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सपने में माँ सरस्वती आयीं
पहले कान उमेठीं फिर ख़ूब कसके डाँटीं
रे मूर्ख तू कविता लिखता है तो कविता में
देश-दुनिया की हर बेटी तेरी बेटी होती है
दो दिन के लिए पीएम क्या हुआ दूसरों की
बेटियों को अपनी बेटियाँ नहीं समझता है 
देश भर के गुंडे-बदमाशों को सगा समझता है
तुझे शाप देती हूँ सात जन्मों तक पीएम रहेगा
लेकिन परिवार का सुख नहीं पाएगा।

सपने में भी नहीं
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सपने में मैं सिर्फ़ सपना ही नहीं देखता
सोचता भी हूँ आँख देखने का काम करती है
और दिमाग़ अपना काम करता है जैसे
सपने में पीएम बना हुआ दिख रहा हूँ चाहे हूँ नहीं
लेकिन दिमाग़ चाह रहा है कि इस बेवक़ूफ़ी से
बाहर निकलूँ कविता की अपनी दुनिया में 
एक सच्चे कवि के लिए राजनीति परदेस है
जिसकी क्रूरता के बारे में कड़ी टिप्पणी कर सकता हूँ
लेकिन जब साहित्य का सोना-चाँदी नहीं ले सकता
तो उस क्रूर जीवन को कैसे जी सकता हूँ।


सपने में ओलंपिक मेडल 
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सपने में बेटियाँ रोये जा रही थीं ताऊ तूने
हमें इस खेल में क्यों डाला जहाँ भेड़िए रहते हैं
आईपीएस बनाते तो एनकाउंटर कर सकती थीं
ओलंपिक मेडल का क्या करें एक दिन चमका 
पीएम-सीएम ने एक दिन पूछा फिर नहीं पूछा
सोना-चाँदी लाने वाली बेटियाँ सड़क पर क्यों हैं
बुझ गये मेडल को हाथ में लेकर रोये जा रही थीं
पीएम से कह दे ताऊ ऐसे मेडल से क्या फ़ायदा
कोई बाहुबली किसी भी मेडल को क़ानून को
बेटियों की इज़्ज़त को कुचल सकता है।


सपने में बाबा
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सपने में जंतर-मंतर पर
चश्मावाले एक बाबा आये लाठी लिए
बोले लड़कियो डटी रहो क्रूर सत्ता से लड़ना ही
तुम्हारी सबसे बड़ी जीत है अहिंसा की जीत है
तुम्हारे साहस की जीत है सबकी नैतिक जीत है
देश की जीत है आधी आबादी की पूरी जीत है
किसी क्रूर सत्ता के सामने खड़ा होने की हिम्मत 
न करना उससे न लड़ना सबसे बड़ी हार है।


सपने में हरी पत्तियाँ
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सपने में एक नीम के पेड़ के नीचे सुस्ता रहा था
छाया की सीमा से सटे बाहर एक वनस्पति दिखी
उसमें नन्ही कोमल और हरी चार पत्तियाँ दिखीं
उनके ऊपर प्रचंड सूर्य का अति भीषण ताप था
मैंने कहा बेटियो बूढ़ा हूँ फिर भी थोड़ी देर तुम्हें
अपनी दोनों हथेलियाँ बढ़ाकर पूरा ढाँप सकता हूँ
पत्तियों ने शीश नवाकर आभार जताते हुए कहा
ठीक है ताऊ हम कुम्हलाएंगी नहीं आशीष का छाता
हमें कभी हमारे संघर्ष से डिगने नहीं देगा सामने
उत्पाती सूर्य हो बलात्कारी हो चाहे क्रूर सत्ता हो।


सपने में कविता
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सपने में जंतर-मंतर पर जब अप्रैल-मई में देश की
पहलवान बेटियाँ चालीस डिग्री में धरना दे रहीं थीं
हिंदी के कुछ कवि फ़रवरी पर कविता लिख रहे थे
संपादक अपने समय की गर्म हवाओं की कविता नहीं 
उतान हो-होकर फ़रवरी की कविता छापे जा रहे थे
हिन्दी के आलोचकों की मति इतनी मारी गयी थी
कि वे ख़ुद को आचार्य शुक्ल तो समझ ही रहे थे
अप्रैल-मई को फ़रवरी और आज की हिन्दी कविता को 
अंग्रेज़ी का उपनिवेश समझ रहे थे
पाठक तो ख़ैर कुछ समझ ही नहीं रहे थे।


सपने में हे राम 
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सपने में जब हे राम आये तो मैंने उनसे कहा 
धरती पर कभी आपके नाम पर लोकतंत्र को 
नया किया गया तो कभी संसद की इमारत 
बदलकर तो कभी धरनारत बेटियों को
घसीट-घसीटकर बसों में ठूँस ठूँसकर 
उनके तम्बू-कनात उखाड़कर 
इस तरह एक अच्छे-ख़ासे लोकतंत्र को 
नया करने के नाम पर दुनिया में बार-बार 
ज़लील किया गया।


कृपालु सरकार 
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सपने भगवान आये तो उन्होंने कहा
तुम्हारे देश में एक नयी इमारत बनायी गयी है
जिसे लोकतंत्र का ताजमहल कह सकते हो
फ़र्क़ इतना है कि इस ताजमहल को
देश से दगा करने वालों माफ़ियाओं और
स्त्रियों के साथ यौन-दुर्व्यवहार करने वालों के
लिए ख़ासतौर से बनाया गया है निश्चय ही 
बहुत कृपालु और न्यायप्रिय सरकार होगी।


सपने में शाहजहाँ
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सपने में ये लो मैं शाहजहाँ बन गया था
अपनी बेग़म सियासत जान के लिए मुल्क में
दिनरात जहाज से दौड़ता ही रहता था 
मुल्क की बेहतरी के लिए क्या काम करता था
दो रुपये का पेट्रोल दो हज़ार में बेचता था
अपने दरबार में छँटे हुए बदकार माफियाओं को
ख़ासतौर से रखता था जिससे लगे कि किसी
नयी सदी के बादशाह सलामत का दरबार है।


विचित्र देश 
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सपने में एक दिन विचित्र देश में चला गया
वहाँ कोई देवेन्द्र कुमार नाम के सच्चे कवि थे
बेचारे किसी को प्रोफ़ेसर नहीं बना सकते थे 
सो उनका आलोचक प्रोफ़ेसर बनाने वाले
फिसड्डी कवि पर पोथे पर पोथा लिखने लगा
बहुत ख़राब जगह थी नाम-इनाम की जल्दी में
सारे लेखक नंग-धड़ंग मंच पर चढ़ जाते थे
बेटियों के साथ दुर्व्यवहार होता था कविगण 
ग़ुस्सा नहीं होते थे जुलूस नहीं निकालते थे
कवयित्रियाँ बड़े मन से स्वेटर बुनतीं रहतीं थीं।


काग़ज़ की तलवार 
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सपने में कबीर आये कोंचकर कहा ओये
तू सपने में भी कैसे जागता रहता है और 
बाक़ी कवि जागते हुए सो कैसे रहे हैं मैंने कहा
जी इसमें नयी बात नहीं वे अक्सर यही करते हैं
नयी बात यह कि वे राष्ट्रवाद के पत्थर को
पुरस्कारवाद की काग़ज़ की तलवार से
काटना चाह रहे हैं कबीर ने माथा पकड़ लिया
बोले अहमक़ो क्या ग़ज़ब करते हो काश 
तुम सब सही रास्ते से पैदा हुए होते।


सपने में नया ताजमहल 
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आगे सपने में देखा कि बेग़म सियासत जान 
मरणासन्न थीं और मैं उनके लिए नये ज़माने का
ताजमहल बनवाना चाहता था बनवाया भी ख़ूब 
और हैरानी की बात यह कि मैंने कारीगरों के
हाथ नहीं कटवाये यह मेरी आखिरी भूल थी
नया ताजमहल पहले से शानदार था फ़र्क़ यह 
कि वहाँ सब जा सकते थे यहाँ सिर्फ़ बदकार
साहिर लुधियानवी जैसे तमाम लोग हरग़िज 
न जा सकते थे और न यह कह सकते थे कि 
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़।


चमड़ा
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सपने में बहुत उदास था
राजनीति और साहित्य के भविष्य को लेकर 
बहुत निराश था सुबक-सुबककर रो रहा था
देश में बेटियों के साथ कुछ भी हो जा रहा था
नये-नये बाबा हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए 
जन्म लेते ही जा रहे थे और हिन्दी के लेखक 
ससुरे पुरस्कार का चमड़ा खा रहे थे।


पुरस्कारवालियाँ
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सपने में मैं हिन्दी की पुरस्कारवालियों को 
जगह-जगह कोनें-अतरे में इस-उस अख़बार में
ढूँढ रहा था कि पहलवान बेटियों के पक्ष में
उनका कोई बयान दिखे पुरस्कार लौटाती दिखें
ऐसा कुछ नहीं दिखा वे निश्चय ही किसी जगह 
बैठकर अतिगंभीर स्त्री-विमर्श में तल्लीन होंगी
देश में क्या हो रहा है उन्हें पता ही नहीं होगा।


ख़ूब लड़ीं मर्दानी
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सपने में देखा कि वे लड़कियाँ
जो लड़ाई में सबसे आगे थीं लोहे की देवी थीं
भले वह प्रधानमंत्री-गृहमंत्री की बेटी नहीं थीं
लेकिन देश की बेटी वही थीं वही थीं वही थीं
देश बेचारा एक कोने में खड़ा सुबक रहा था
लोकतंत्र और क़ानून को कुछ हत्यारों ने मुर्गा 
बनाया हुआ था आधा जिबह भी हो चुका था
जितना बड़ा राजनेता उतना ही मुँह काला था
लड़कियाँ डरी नहीं अंत तक ख़ूब लड़ीं मर्दानी
दुष्कर्मी की छाती को चीर डालना चाहती थीं।


तानाशाही
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सपने में लोहिया आये थे ख़फ़ा हो रहे थे
बोले ओह लोकतंत्र का क्या से क्या हो गया है
मैंने कहा जी-जी जापानी बुख़ार पहले हुआ था
अब रोना इस बात का है कि कोरोना हो गया है
सरकार कहती है कि हमारा सांसद आग मूतेगा
जनता की बेटी की छाती छुएगा पेट छुएगा और 
बेटियाँ धरना-प्रदर्शन कुछ नहीं कर सकती हैं 
सरकार कहती है अंधे क़ानून पर भरोसा करो
सत्तानुकूलित पुलिस पर भरोसा करो मुझे
रोता देख वे भी तानाशाही है कहकर रोने लगे।











शनिवार, 22 अप्रैल 2023

आपा के नाम ख़त तथा अन्य कविताएँ

- गणेश पाण्डेय

इब्राहीम भाई 
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खेत थोड़े से थे लेकिन उसका काम 
इब्राहीम भाई जैसे शख़्स देखते थे 
मुसलमान होकर भी इसलिए देखते थे
कि गाँव-जवार में उनकी जोड़ का
कोई ईमान वाला नहीं था कोई हिन्दू
उतना अच्छा रहा होता तो हमारे लिए 
खेती को लेकर इब्राहीम भाई की हर बात 
पत्थर की लकीर क्यों होती
बाबूजी जाते समय क्यों कहते
इब्राहीम भाई को भाई समझना।


ईदी
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काफ़ी समय से एसी की सर्विसिंग का काम 
अफ़रोज़ भाई देखते हैं आज आख़रि जुमा था
मैंने कहा था कि ईद के बाद करा दीजिएगा
नातिन आयी है जानकर उन्होंने दो नौजवान 
मिस्त्रियों को थोड़ी देर में भेज दिया
सर्विसिंग के बाद जब वे नौजवान जाने लगे तो
मज़दूरी के बाद ईदी कहकर कुछ रुपये दिए
ईदी के नाम पर उनकी आँखों में जो चमक
और चेहरे पर जो ख़ुशी आयी अनमोल थी
अनमोल थी अनमोल थी। 


चच्ची
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किशोर जीवन से ईद पर
चच्ची के हाथ की सेवइयाँ खाता रहा
दूसरे दिनों में भी चच्ची के हाथ का 
हम कुछ भी खा लेते थे उनकी बेटी मुझे
भाई समझती थी और उसके भाई को मैं भाई
वह था भी भाईचारे के काबिल 
हिन्दुओं के साथ होली खेलता था साथ रहता था
उसके पिता कम्युनिस्ट थे यह उसके वुजूद में था
चच्ची अब नहीं हैं वह आज भी है उसी तरह
अब वहाँ कम जा पाता हूँ कम मिल पाता हूँ।


रोजन चच्चा
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रोजन किन्नर थे
रोजन को हम चच्चा कहते थे उनकी झोपड़ी
हमारे घर से थोड़ी दूर पर थी जब मिलते
पूछते का हो बेटा हम कहते ठीक है चच्चा
कभी दुकान पर चाय पी रहे होते तो पूछते
चाय पी बो हम कहते बाद में चच्चा
जब हमारे हाथ पैर में मोच आ जाए
चच्चा घर आकर मालिश से ठीक कर देते
हमें बुख़ार हो तो वेदनानिग्रह रस दे जाते
वे किन्नर नहीं हम बच्चों के चच्चा थे।


आपा के नाम ख़त
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आपा 
अस्सलाम अलैकुम
नर्सिंगहोम से मैं भी अपनी बेटी को लेकर आ गया हूं
आप भी इक़रा को लेकर बख़ैरियत घर पहुंच चुकी होंगी
इक़रा भी मुझे अपनी बेटी जैसी प्यारी लगी
अब कैसी है
आपा 
हमारे पास पैसे थे 
हम बच्चों के लिए बेहतर कर सकते थे
जिनके पास पैसे नहीं थे
कोई सरकार उनके लिए ऐसा नहीं करती
हिन्दू-मुसलमान के नाम पर मुफ़्त में ऐसा इलाज नहीं होता
ठीक है कि डाक्टर हेली-मेली थे पांच हज़ार छोड़ दिया
वर्ना हिन्दू चाहे मुसलमान होने पर
एक कप चाय तो मुफ़्त मिलती नहीं
आपा 
आप कितनी अच्छी हैं
आपने इक़रा के लिए थर्मस में रखा दूध
आधी रात में मेरी बिटिया के लिए पेश किया
शुक्रिया
आपा
मेरी कोई दिदिया होती तो बिल्कुल आप जैसी होती
क्या पता पिछले जनम में मैं आपका भाईजान रहा होऊं
हो सकता है कि आप मेरी दिदिया रही हों
आपा 
सच कहूं तो मैं
मज़हब की किताब कम पढ़ता हूं
ज़िन्दगी की ज़्यादा
मुझे 
ज़्यादा पता नहीं 
कि मज़हब की किताबें पहले पैदा हुईं या इंसान
कुछ-कुछ तो पता है 
कि ज़िन्दगी की किताब ही 
धरती की सबसे पुरानी और सबसे प्यारी किताब है
आपा
आज आप यह ख़त खोलेंगी तो हैरान होंगी
खुश भी बहुत होंगी वालेकुम अस्सलाम कहेंगी
शुक्रिया कहना जरूरी था बस
भाईजान को भी शुक्रिया जरूर कहिएगा
पहला निवाला मुंह में लेने से पहले पूछने के लिए
आपा अख़ीर में
बड़ों के लिए दुआएं 
बच्चों के लिए बहुत-बहुत प्यार
और आप दोनों के लिए तहेदिल से प्यार
इक़रा के निक़ाह में 
इंशाअल्लाह हम ज़रूर शामिल होंगे।


सलाम 
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सब साहिबान को सलाम
जो मुझे छोड़ने आए थे सिवान तक
उन भाइयों को सलाम जो अड्डे तक आए थे
मेरी छोटी-छोटी चीज़ों को लेकर ।
उन चच्चा को ख़ासतौर से सलाम
जिन्होंने मेरा टिकट कटाया था
और कुछ छुट्टे दिए थे वक़्त पर काम आने के लिए।
बचपन के उन साथियों को सलाम
जिन्होंने हाथ हिलाया था
और जिन्होंने हाथ नहीं हिलाया था ।
अम्मी को सलाम
जिन्होंने ऐन वक़्त पर गर्म लोटे से
मेरा पाजामा इस्त्री किया था और जल गई थी
जिनकी कोई उँगली ।
आपा को सलाम
जिनके पुए मीठे थे ख़ूब और काफ़ी थे
उस कहकशाँ तक पहुँचे मेरा सलाम
जो मुझे कुछ दे न सकी थी
खिड़की की दरार से सलाम के सिवा ।
उस याद को सलाम
जिसने ज़िन्दा किया मुझे कई बार
उस वतन को सलाम
जो मुझे छोड़कर भी मुझसे छूट नहीं पाया ।
रास्ते की तमाम जगहों और उन लोंगो को सलाम
जिन्होंने बैठने के लिए जगह दी
और जिन्होंने दुश्वारियाँ खड़ी कीं
उस वक़्त को सलाम
जिसने मुझे मार-मार कर सिखाया यहाँ
किसी आदमी को रिश्तों से नहीं
उसकी फ़ितरत से जानो ।
ऐ ज़िंदगी तुझे सलाम
जो किसी काम के वास्ते तूने चुना
किसी ग़रीब को ।







सोमवार, 17 अप्रैल 2023

महापंडित तथा अन्य छोटी कविताएँ

- गणेश पाण्डेय

प्रेम कविता
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कोई कवि किसी के प्रेम में मर-मिटता है
प्रेम में चोट खाने के बाद घनानंद बन जाता है
प्रेम कविताओं का अंबार लगाने लगता है
हिन्दी का आज कवि अमरप्रेम नहीं करता है
उसके लिए स्त्री पहली दूसरी तीसरी कविता है
वह प्रेम करने के लिए प्रेम नहीं करता है
केवल संबंघ बनाने के लिए प्रेम करता है
जैसे कविता पुरस्कार के लिए लिखता है
उसकी सारी प्रेम कविताएँ फ़र्ज़ी हैं
स्त्रियों को रिझाने के लिए लिखी गयी हैं।


रुपया
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कोई देश से प्रेम करने लगता है
कोई क्रांति के स्वप्न से प्रेम करने लगता है
कोई किसी खेल से प्रेम करने लगता है
कोई किताबों के प्रेम में कीड़ा बन जाता
कोई रुपये के प्रेम में अंधा हो जाता है
उसी को खाता है उसी को पीता है 
उसी के लिए हत्या करता है सबको सताता है
मनुष्यता की सबसे निचली सीढ़ी से 
और नीचे और नीचे लुढ़कता जाता है
आग लगे इस रुपये में।

लोकतंत्र का मज़ाक़
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कोई बंदूक से प्यार करने लगता है
बंदूक के रास्ते पर चलता जाता है
चारो तरफ़ ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ पैदा करता है
गुनाहों की एक लंबी फ़ेहरिस्त के बाद 
राजनीति का सितारा बन जाता है
अपने आक़ाओं के बहुत काम आता है
पैसा लूटते-लूटते वोट लूटने लगता है
बंदूक की नोंक पर बैठकर गोली की तरह 
सीधे संसद में पहुँच जाता है लोकतंत्र का 
इससे बड़ा मज़ाक़ क्या हो सकता है।


संविधान के कारीगर
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भारतीय राजनीति 
और अपराध का अशुभ-विवाह 
किस दुष्चरित्र पंडित ने कराया पकड़ो उसे
बारात में कौन-कौन सी पार्टियाँ शामिल थीं
और किन गधों ने बैंड-बाजा बजाया
संगीन आपराधिक मामलों का आरोपी
माननीय जनप्रतिनिधि कैसे बन सकता है
अब तक संविधान के कारीगरों ने आखि़र 
इस चोर दरवाज़े को बंद क्यों नहीं किया।

गोली और फूल
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माफ़िया की बंदूकें 
जगह-जगह गोली उगलें
और पुलिस की बंदूकें फूल बरसायें
जेलें अपराधियों के लिए सैरगाह हो जाएँ
न्यायालय बीसियों साल फ़ैसला न दे पाये
जेलों से संगठित अपराध चलाने की छूट हो
ऐसा कोई राजनेता सोच कैसे सकता है
कोई राजनेता पुलिस से बंदूकें वापस लेकर
उन्हें मज़ाक कैसे बना सकता है।

उलट-पलट 
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एक सरकार में
कुछ माफ़िया निशाने पर होते हैं
शेष सरकार के प्यारे होते हैं
दूसरे सरकार में उलट होता है
सरकारो उलट-पलट का यह खेल
कब बंद करोगो आओगे तो फिर 
उलट-पलट का खेल खेलोगे।

दो दुनिया
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शहर एक है दुनिया दो है
एक रोशनी की छोटी दुनिया है
दूसरी अँधेरे की बड़ी दुनिया है
अँधेरे की दुनिया को देखने के लिए
उसमें जीना पड़ता है धँसना पड़ता है
अँधेरे से लड़ने के लिए ख़ुद
हाथ-पैर चलाना पड़ता है।

चाहत
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यह शहर है 
कि देश है कि दुनिया
जहाँ दो ज़िन्दगियाँ हैं अँधेरे और उजाले की
एक में गोदाम मेवे और रुपयों से भरे हुए हैं
खाने के लिए पूरे छप्पन भोग सजे हुए हैं
दूसरे में पतली दाल ठंडी बाटी और लाल मिर्च
कमीज़ की जेब ज़रूर फटी हुई हैं सीना दुरुस्त 
फेफड़े मज़बूत हैं और अँधेरे से निकलने 
और दुनिया को उलट-पलट देने की
चाहत कम नहीं हुई है।

तीसरी ज़िन्दगी
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एक तीसरी ज़िन्दगी है मैं उन्हें जानता हूँ
वे क्यों सोचते हैं कि इस सबसे बड़े शहर में 
उनके बच्चों के थ्री बीएचके फ्लैट हो जाएँ और 
पैकेज चालीस से बढ़कर एक करोड़ हो जाए
अपार्टमेंट के सामने लाल दोंगर वालों की दशा
कुछ-कुछ सुधर जाए लेकिन कितनी सुधर जाए
जो बाई काम के लिए आती है उसके बच्चे
और उनके नाती-पोते एक जैसे हो जाएँ
वे ऐसा कुछ क्यों नहीं सोच पाते हैं क्या है 
जो उनमें कम है कैसा भय है।

महापंडित 
-------------
आप लेखक हैं संगठन के महासचिव हैं
आप इतनी बड़ी पत्रिका के संपादक हैं
साहित्य से अधिक राजनीति के महापंडित हैं
केवल उस एक दल का नाम बता दीजिए जो
राजनीति और अपराध के अशुभ-विवाह के खि़लाफ़ है
राजनीति और भ्रष्टाचार के अशुभ-विवाह के खि़लाफ़ है
राजनीति और धर्म के अशुभ-विवाह के  खि़लाफ़ है
राजनीति और जाति के अशुभ-विवाह के खि़लाफ़ है
आपकी एक आँख फूटी क्यों है आधा क्यों देखते हैं
फासीवादी को देखते हैं बाक़ी को नहीं देखते हैं।

विकल्प 
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रेल गाड़ी से उतारकर 
सवारियों को टैक्सी में बैठाने के लिए 
क्या यह ज़रूरी नहीं है कि आप पहले
देख तो लें कि टैक्सी के चारो पहिए
सलामत हैं या नहीं आगे चलकर आप
बैलगाड़ी में बैठने के लिए तो नहीं कहेंगे
साफ़-साफ़ पहले ही बता दीजिए। 

पैर
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हम सिर्फ़ कह सकते हैं आगे बढ़िए
दूसरी बार कह सकते हैं तीसरी बार भी
इसके बाद भी वह पैर नहीं हिलाता
तो यह उसकी मर्ज़ी है वहीं पड़ा रहे
हम उसके पैर नहीं बदल सकते हैं।






बुधवार, 12 अप्रैल 2023

ख़ुदा-वंद-ए-करीम तथा अन्य छोटी कविताएँ


- गणेश पाण्डेय

ऐ ख़ुदा
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कैसा बुरा समय आया है
कोई ज़लज़ला तो नहीं आने वाला है
गोरख कबीर प्रेमचंद फ़िराक़ देवेंद्र कुमार 
और कुछ-कुछ मेरे इस शहर में ज़माने से 
पालकी ढोने वालों की पालकी ढोने वाले 
ऊँची आवाज़ में ईमान की बात करने लगे हैं
ऐ ख़ुदा हिन्दी को इस झूठ से महफ़ूज़ रखना।

बदचलनी
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ऐ ख़ुदा हिन्दी को 
फ़ेसबुक की इस बदचलनी से बचाना 
कि एक ही शख़्स चोर और सिपाही दोनों को 
चाहकर भी एक साथ लाइक न कर सके
ख़ुदाया ऐसे लोगों की शक़्लें बिल्कुल 
शातिर चोरों जैसी बना देना।

वह मोढ़ा
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वह शख़्स जिसके पास ख़ुद की कुर्सी नहीं है
ख़ुद की भाषा और ख़ुद का मुहावरा नहीं है
जो एक टुटहे मोढ़े पर बैठकर लगातार 
अदब और इंसाफ़ पर भाषण दे रहा है
ख़ुद को बेदाग़ और बेकसूर दिखा रहा है
वह मोढ़ा मेरा है जिसे वह अपना बता रहा है
ऐ ख़ुदा मेरे मोढ़े को सलामत रखना।

दसदुआरी
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ऐ ख़ुदा हिन्दी में
ऐसी छोटी मशीनें ज़रूर बना देना
कि दूसरे शहर का लेखक वहीं से
जान सके कि मेरे शहर में कौन लेखक 
दसदुआरी है और कौन अपने ठीहे पर 
जमा हुआ है।

जन्नत-नशीं
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ऐ ख़ुदा दिल्ली की पूँछ पकड़कर 
मेरे सिर पर बैठने की ख़्वाहिश करने वाले
लेखकों को लेखकों की उस बिरादरी में 
रत्नजड़ित सिंहासन देना जहाँ सुबह-शाम 
गधे कविता लिखते हों और चूहे आलोचना
जहाँ छोटे से छोटे कवि का संग्रह 
एक साथ पच्चीस भाषाओं में छपता हो
अनुवाद होना जहाँ बड़ा काम समझा जाता हो
बराएमेहरबानी उनके बाड़े के मुँह पर सूअर नहीं
हिन्दी के जन्नत-नशीं लिख देना।

ग़ैबी ताक़त 
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बहुत बुरा बखत है
बुरे लोगों से अच्छाई से पेश आना चाहो तो
वे रास्ते में ही अच्छाई की इज़्ज़त लूट लेते हैं
वे अच्छा लेखक होने का ढोंग तो कर सकते हैं
किसी सचमुच के अच्छे लेखक को सेकेंड का
हज़ारवाँ हिस्सा भी बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं
ऐ ख़ुदा ऐसे दुष्टों से निपटने के लिए थोड़ी-सी
ग़ैबी ताक़त मुझे भी अता फ़रमा।

जो करूँ
-----------
ऐ ख़ुदा
मैं बहुत शुक्रगुजार हूँ
मुझमें इतनी ताक़त तो बख़्शी कि
ज़रा-सी ठोकर से जैसे ही लड़खड़ाने को होऊँ
तुरत संभल जाऊँ और फिर जो करूँ 
किसी के मान में न आऊँ।

ख़ुदा-वंद-ए-करीम 
------------------------
ख़ुदा-वंद-ए-करीम मैंने तो 
तेरे हुक़्म की तामील करते हुए बुरे लेखकों से
अच्छाई से पेश आने की बारहा कोशिश की
मेरे सिर पर बार-बार पेशाब तो उन्होंने की
उनके घमंड को चकनाचूर करने के लिए 
मुझे इसी तरह तेज़ाबी कविताएँ
और विस्फोट गद्य लिखने दे।

दुष्ट लेखक
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ऐ ख़ुदा मुझे माफ़ करना 
मैंने तुझे उर्दू अल्फ़ाज़ों में याद किया
संस्कृतनिष्ठ तत्सम में याद करता
तो बीस बार ओ प्रभु कहते ही कवि नहीं
साम्प्रदायिक हिन्दू कह दिया जाता
हालाँकि मेरे लिए हिन्दी और उर्दू सगी बहनें हैं
एक के घर में जो पकता है दूसरे भी चखते हैं
दूसरे घर में जगह कम पड़ती है तो हिन्दी
अपनी दोनों बाहें फैला देती है लेकिन 
ये हिन्दी के दुष्ट लेखक कुछ सीखते ही नहीं।

इजाज़त 
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ऐ ख़ुदा
तू मुझे माफ़ कर आज की तारीख़ में
यहाँ किसी भी बेईमान अंपादक-संपादक में
मेरे लिखे को छापने की क़ुव्वत नहीं है
इसलिए इन कविताओं को अपने ब्लॉग में
छापने की इजाज़त दे।






शनिवार, 1 अप्रैल 2023

ये औरतें तथा अन्य छोटी कविताएँ


- गणेश पाण्डेय


ये औरतें
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काश ये औरतें 
इस तरह भगदड़ में मारी नहीं जातीं
आटे के एक थैले के लिए लिए जान नहीं देतीं 
अपने बच्चों और अपने मुल्क की बेहतरी के लिए 
धार्मिक कट्टरता और दशशतगर्दों से
लड़ते-लड़ते मारी जातीं।

हुकूमत 
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पड़ोस में बच्चे किस कदर रो रहे हैं
उनकी माएँ छातियाँ पीटे जा रही हैं
बाप बेचारा बेबस है करे तो क्या करे
देख रहा है निज़ाम से कह भी रहा है 
पड़ोस से मदद मिल सकती है माँगो
हुकूमत मुँह में दही जमाये बैठी है
काश अवाम गेहूँ की तरह हुकूमत को 
पीसकर आटा बना पाती।

कश्मीर का झुनझुना
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अवाम की बेवकूफियाँ मिसाल हैं
उसने न्यूक्लियर बम को चुना आटे को नहीं
दहशतगर्दी को चुना चौतरफा तरक्की को नहीं
माहिरा खान को चुना हबीब जालिब को नहीं
जम्हूरियत को फौज ने जब चाहा पैरों से रौंदा
आधी-अधूरी जम्हूरियत किसी काम न आयी
अवाम को इंडिया के ख़लिफ जिसने भड़काया
कश्मीर का झुनझुना थमाया उसे पीएम बनाया
बदले में आज दो जून की रोटी भी नसीब नहीं
काश उसके पास रोटी का ख़ुदा होता। 


ख़ुदा सो रहा है
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ख़ुदा कुछ देख नहीं रहा है देखता तो
रोटी के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगतीं
क्या बीबियाँ पुलिस के हाथों पिटतीं
क्या भगदड़ में बंदो की जानें जातीं
क्या अमीर लोग देशी घी से चुपड़ी 
मिस्सी रोटियाँ खाते और बेचारे ग़रीब 
मारे-मारे फिरते भूखों रहते यक़ीनन
ख़ुदा सो रहा है ख़ुदा जागता कम है
सोता बहुत ज़्यादा है।


सपने में
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कल रात सपने में बम नहीं
लड़ाकू विमान से रोटियाँ बरसा रहा था 
डर नहीं पड़ोस में प्यार लुटा रहा था
बच्चों और औरतों के चेहरे पर 
मुस्कान ला रहा था।


फिर आइएगा
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मैंने सपने में जिन-जिन बच्चों को
रोटियाँ खिलायीं मुझे उनकी अम्मियों ने कहा
शुक्रिया भाईजान फिर आइएगा ऐसे ही
हमारे मुल्क में दोस्ती का फरिश्ता बनकर
इंसानियत की मिसाल बनकर 
बँटवारे पर सवाल बनकर।

सपने
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नींद खुली 
तो रात के सपने याद आये थोड़ा डर गया
मुझे क्या हो गया था अपनी सरकार से पूछे बिना
पड़ोस में रोटी गिराने जैसे कई ख़तरनाक सपने 
ताबड़तोड़ देख गया मुझे तो क़ानून भी पता नहीं
ग़ैर-इरादतन सपने देखने का क्या दण्ड है
और इरादतन का क्या दो साल या चार साल 
भलाई करने का क्या है बुराई करने का क्या
आप से आप जो सपने आते गये देखता गया।


दंगे
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दंगे तो
हमारे और हमारे बच्चों के लिए मुसीबत हैं
ख़ून हमारा बहेगा और गाल आपके सुर्ख़ होंगे
घर हमारा जलेगा और महल आपके सजेंगे
आपका क्या आपकी तो चाँदी ही चाँदी होगी
हम जिस जगह दफ़्न होंगे आपकी फसल 
वहीं हमारी छाती पर लहलहाएगी।


विचारों की फेरी
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भगत सिंह के प्यारे उनके विचारों को
उनके स्वप्न को लोगों तक ले जाते हैं
आज़ादी की लड़ाई के दिनों में प्यारे-प्यारे 
बच्चों की प्रभातफेरी की तरह आज सड़कों पर
भगत सिंह के विचारों की फेरी निकालते हैं
आते-जाते लोग कभी देखते हैं कभी नहीं
ठहरकर कुछ तो सोचेंगे शर्मिंदा भी होंगे
जिस दिन पैम्फलेट पढ़ेंगे बुदबुदाएंगे 
कैसा जीवन जिया!


चाँद और चितचोर 
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मेरा चाँद तो तुम हो
चाँद को देखता हूँ तो चाँद को नहीं
उसमें तुम्हें देखता हूँ मेरी चितचोर
तुम्हारा श्वेत-कमल-मुख
तुम्हारी स्मिति तुम्हारी चितवन
तुम्हारा चिरयौवन तुम्हारा प्रेम
तुम्हारी कांति तुम्हारी दीप्ति सब देखता हूँ
इसीलिए रोज़ उस टूटने-फूटने वाले 
खिलौने जैसे चाँद से भी कभी-कभार 
झूठ-मूठ का प्यार कर लेता होऊँगा
वर्ना उस चाँद में कंकड़-पत्थर 
और अँधेरे के सिवा रक्खा क्या है।


                                                                                                                              
                                                                                                             मेरा चाँद तो तुम हो



बुधवार, 29 मार्च 2023

चार भतार तथा अन्य कविताएँ

-गणेश पाण्डेय


चार भतार 
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राजनीतिक दल अब पहले जैसे नहीं रहे 
जब से इतिहास और मूल्यों का अंत हुआ 
इन्हें पीछे के कुछ नाम तो याद रहे काम नहीं 
ये अब दल नहीं दुकान चलाते हैं मुनाफ़ा कमाते हैं 
सरकार बनाने के लिए जान देते हैं देश के लिए नहीं 
आज़ादी के दीवानों ने प्राण न्यौछावर किया
इन्होंने घोटाला किया मुजरिम से प्यार किया
कौन-सी पार्टी है जो सती-सावित्री है 
जिसने चार भतार नहीं किया।


करिश्माई गोली
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बाहुबली की गोली
सिर्फ़ देह में ही नहीं क़ानून की किताब में
अदालत की दीवार में भी छेद कर सकती है 
उसे उसकी करिश्माई गोली सालोंसाल 
फाँसी के फंदे से बचा सकती है।


माननीय 
-----------
बाहुबली 
गोली से रुपया लाता है रुपये से टिकट लाता है
उसका सारा जनाधार उसकी गोली में होता है
इस तरह एक अपराधी माननीय कहलाता है
और लोकतंत्र के मुँह पर कालिख पोतता है।


बाहुबली की हँसी
----------------------
बाहुबली हँसता 
तो उसकी पूरी देह हँसती है
गैंग का हर बदमाश हँसता है 
बाहुबली गाली देते हुए हँसता है
तो गोली मारते हुए भी हँसता है
पुलिस को देखकर हँसता है
अदालत को देखकर हँसता है
जब देखो जहाँ देखो हँसता है
ओह किसी की हँसी भी कितना
डर पैदा कर सकती है।


सुल्ताना डाकू
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कमज़ोर बादशाह जब
न्याय का तराजू उठा नहीं पाता है
तख़्त पर बैठे-बैठे सू-सू कर मारता है
तो ग़रीब-गुरबा हर लुटेरे में
परोपकारी सुल्ताना डाकू 
देखने लगता है।


जो कवि जन का है
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जो कवि 
जितना गोरा है चिकना है सजीला है
उसके पुट्ठे पर राजा की उतनी ही छाप है
जितना सुरीला है तीखे नैन-नक़्श वाला है
उसके गले में अशर्फ़ियों की उतनी ही माला है
जो कवि जन का है बेसुरा है बदसूरत है
बहुत खुरदुरा है उम्रक़ैद भुगत रहा है।






मंगलवार, 28 मार्च 2023

एनकाउंटर स्पेशलिस्ट तथा अन्य छोटी कविताएँ

- गणेश पाण्डेय


बाहुबली का डर
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बाहुबली का क़ाफ़िला चलता है 
तो धरती काँपती है आसमान डर जाता है 
क़ानून की मोटी-मोटी किताबें पत्थर हो जाती हैं
राजनेताओं की कुर्सी ज़ोर से हिलने लगती है 
वह भगवान के खि़़लाफ़ चुनाव लड़ सकता है 
वह किसी से भी नहीं डरता डर उससे डरता है
कोई है जिससे वह थोड़ा-बहुत डर सकता है 
तो वह निश्चय ही किसी मज़बूत राज्य का 
कोई मामूली एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हो सकता है।


बंदूक और गोली
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बाहुबली की बंदूकों में
हज़ारों जान क़ैद होती है
और उसकी जान
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट 
की एक गोली में।


अंधा कौन है
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सड़कें समय से बन सकती हैं
फोरलेन सिक्सलेन हो सकता है
छत्तीस सेटेलाइट साथ जा सकता है 
बैलगाड़ी युग पीछे जा सकता है
डॉक्टर जज प्रधानमंत्री वग़ैरा
समय से हुआ जा सकता है
समयबद्ध वेतनमान दिया जा सकता है
तो सभी तरह के मुक़दमों का फ़ैसला 
समय से क्यों नहीं हो सकता है
कोई देखता क्यों नहीं अंधा कौन है।


नशा
------
बाहुबली 
यह भूल जाता है कि वह अमर नहीं है
सिर्फ़ उसकी बंदूक में गोली नहीं है
दूसरे बाहुबली के पास उससे अधिक है
बंदूक का नशा राजनीति के नशे से 
ज़्यादा तेज़ होता है।


ताक़त 
--------
बाहुबली बंदूक की ताक़त से
राजनीति की ताक़त हासिल करता है 
कितना कमज़ोर है हमारा लोकतंत्र 
न ग़रीबी दूर हुई न हिंसा
संविधान का सबसे अधिक सम्मान
उन्हीं ग़रीबों ने किया जिनके लिए
संविधान ने सबसे कम किया
बुराई को जड़ से दूर करने की ताक़त
किस राजनीतिक दल में है।


बेमेल विवाह
--------------
बाहुबल और राजनीति के
बेमेल विवाह पर रोक 
किस भी दल के एजेंडे में 
न था न है न होगा
किसी की भी सरकार रही हो
बैंड-बाजा-बारात और लेन-देन
जारी है लोकतंत्र का खेला जारी है
यह समय जनता पर कितना भारी है।


क़ानून की दुहाई
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बाहुबली के हाथ बहुत से बहुत लंबे होते हैं
बीसियों शार्प शूटर उसके ख़ास हाथ होते हैं
जिन हाथों से वह किसी को भी उड़ा देता है
डर से कांपते हीरे-जचाहरात घर में आते है
और राज्य के हाथ अक्सर बँधे होते हैं 
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट उसके हाथ तो होते हैं
जो कभी-कभार खुलते हैं और जब उसमें 
बाहुबली की गर्दन फँस जाती है तो उसके
कुनबे के लोग औरत-मर्द हाय-तौबा मचाते हैं
गोली से उड़ा दिए गए क़ानून की दुहाई देते हैं।


विफलता
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जनता क़ानून से अधिक 
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पर
भरोसा करने लगे तो यह क़ानून की नहीं 
लोकतंत्र की विफलता है और इस विफलता पर 
कोई भी राजनेता न रोता है न बोलता है
दुष्ट लेखक के बारे में पूछिए मत वह तो 
सिर्फ़ अपने नाम-इनाम के लिए सोचता है
इस लोकतंत्र में वही सबसे अधिक गंदा है
यह हमारे समय के साहित्य की विफलता है।


एनकाउंटर स्पेशलिस्ट
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साहित्य में अपराध 
बढ़ते-बढ़ते जब इतना अधिक बढ़ गया
कि हर लेखक के पुट्ठे पर मठाधीश का ठप्पा
अनिवार्य हो गया तो मैं न चाहते हुए भी
फूलों तितलियों नदियों पर्वतों बादलों खेत-खलिहानों
प्रेमी-प्रेमिकाओं और स्त्रीदेह की काव्यभूमि को
तजकर कब हिन्दी साहित्य का
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बन गया पता ही नहीं चला
लोगों ने ही मुझे बताया कि मेरे हाथ में उन्हें अब
क़लम की जगह पिस्तौल अच्छी लगती है
मैं अपने लोगों को निराश कैसे कर सकता था।


ठोकना
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साहित्य को
राजनीति से अच्छा करना था
और लेखकों को राजनेताओं से अच्छा होना था
लेकिन हुआ क्या मैं और क्या कर सकता था
उनकी तरह लौंडानाच कैसे कर सकता था
फिर मैंने वही किया जो मेरी आत्मा ने कहा
एक-एक को ठोकना शुरू कर दिया।


ऐसी कविता
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दाल में सब्जी में 
नमक बहुत तेज़ हो जाने पर
बाबूजी नाराज़ हो जाते थे थाली खिसका देते थे
बाबूजी तुलसी और कबीर की कविता पढ़ लेते थे 
केशव कवि का कभी नाम नहीं लेते थे
ऐसे ही बाबूजी की तरह किसी भी कविता में कला
अधिक हो जाने पर काफ़ी लोगों के लिए 
वह कविता नहीं रह जाती है बुझौवल हो जाती है
ऐसी कविता लिखने से और पढ़ने से क्या फ़ायदा।


कविता में कला
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आँखों में काजल जितनी
सिर्फ़ होठों पर लाली जितनी
बच्चे के चेहरे पर ख़ुशी जितनी
फूल में सुगंध और फल में मिठास जितनी
लाठी में मज़बूती और बंदूक में गोली जितनी
इससे तनिक भी अधिक कविता में कला
किसी पाठक को नहीं चाहिए पाठक को 
रामचंद्र शुक्ल क्यों समझते हो गधो
उसकी आँख में धूल क्यों झोंकते हो
पीतल को सोना बनाओगे तो थूर दूंगा।

सजावटी कविता
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ज़रूरी कविता में
ज़रूरी कथ्य और ज़रूरतभर कला
और आसानी से समझने वाली भाषा चाहिए 
कविता अपने समय के लोगों के लिए 
उनके जीवन के लिए उनके अधिकारों के लिए 
अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती है
और अपने पाठकों के हाथ थाम नहीं सकती है
तो कला की थूनी पर बोगनवेलिया जैसी
सजावटी कविता किस काम की है।


पहले की पीढ़ी
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मेरी पीढ़ी से पहले
कैसे कवि थे कैसे आलोचक 
जिन्होंने बच्चों को अपने पैरों पर
खड़ा होना नहीं सिखाया
पालकी ढोना सिखाया नाचना सिखाया
झुकना सिखाया लड़ना नहीं सिखाया
बहादुर बनना नहीं सिखाया।


स्वतंत्रता का उपहार 
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बाद के ज़रूरी
कवियों की ज़िम्मेदारियाँ बड़ी होती हैं
बाद की पीढियों को कुछ देकर जाना होता है
वे उन्हें हारी हुई लड़ाई देकर कैसे जा सकते हैं
वे उन्हें दीन-हीन विपन्न बनाकर नहीं जा सकते
अख़ीर में हिंदी के दुश्मनों को ठोकना होता है 
वे अपने बच्चों को साहित्य की स्वतंत्रता का
उपहार देकर जाना चाहते हैं।


चींटी के जैसे पैर
-----------------
हिन्दी में
यह पहले भी हुआ है
ईमानदार के चींटी के जैसे पैर
बेईमान के हाथी के जैसे पैरों को
कुचल देते हैं।


सोना
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कवियो 
कहीं भी सो जाना
चारपाई पर चाहे ज़मीन पर
किसी भी तरफ़ पैर कर लेना
बस दिल्ली की तरफ़
सिर करके मत सोना
इससे बड़ा अशुभ 
कविता की दुनिया में दूसरा नहीं
बोले तो
अकाल-मृत्यु योग है।


सेना
-------
साहित्य के 
अँधेरे के ख़लिफ़
यह ज़बरदस्त लड़ाई 
कोई एक न रहे तो भी रुकेगी नहीं 
देखते-देखते एक पूरी सेना 
खड़ी हो गयी है।


गद्दीनशीन कवियो
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सींगवाला कवि हैं
नहीं-नहीं बुलडोज़र वाला कवि है
नहीं-नहीं हिंदी का पागल कवि है
बेईमानी से बने कविता के महल को
ज़मींदोज़ कर देता है
एकदम से संभलकर रहियो
तमग़ावाले गद्दीनशीन कवियो।


मशीन 
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तुम्हारे पास साहित्य में 
अँधेरा फैलाने की मशीन है
तो हमारे पास उस मशीन को 
उड़ा देने की मशीन है देखते नहीं 
उसी जगह पर हम मारेंगे जहाँ से
तुम अँधेरा फैलाते हो सोच लो
फिर कुछ नहीं कर पाओगे।


कविता पढ़ने से
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किसी महान कवि के घर में
कविता पढ़ने से कोई कवि
महान कवि नहीं हो जाता है
इन मूर्खों को कौन समझाये
कि उस घर की चौखट को चूमने
उसकी दीवारों को चिपककर छूने
और लौटते समय उस घर को 
शीश नवाकर प्रणाम करने से 
सिर ऊँचा होता है।