शनिवार, 1 अप्रैल 2023

ये औरतें तथा अन्य छोटी कविताएँ


- गणेश पाण्डेय


ये औरतें
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काश ये औरतें 
इस तरह भगदड़ में मारी नहीं जातीं
आटे के एक थैले के लिए लिए जान नहीं देतीं 
अपने बच्चों और अपने मुल्क की बेहतरी के लिए 
धार्मिक कट्टरता और दशशतगर्दों से
लड़ते-लड़ते मारी जातीं।

हुकूमत 
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पड़ोस में बच्चे किस कदर रो रहे हैं
उनकी माएँ छातियाँ पीटे जा रही हैं
बाप बेचारा बेबस है करे तो क्या करे
देख रहा है निज़ाम से कह भी रहा है 
पड़ोस से मदद मिल सकती है माँगो
हुकूमत मुँह में दही जमाये बैठी है
काश अवाम गेहूँ की तरह हुकूमत को 
पीसकर आटा बना पाती।

कश्मीर का झुनझुना
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अवाम की बेवकूफियाँ मिसाल हैं
उसने न्यूक्लियर बम को चुना आटे को नहीं
दहशतगर्दी को चुना चौतरफा तरक्की को नहीं
माहिरा खान को चुना हबीब जालिब को नहीं
जम्हूरियत को फौज ने जब चाहा पैरों से रौंदा
आधी-अधूरी जम्हूरियत किसी काम न आयी
अवाम को इंडिया के ख़लिफ जिसने भड़काया
कश्मीर का झुनझुना थमाया उसे पीएम बनाया
बदले में आज दो जून की रोटी भी नसीब नहीं
काश उसके पास रोटी का ख़ुदा होता। 


ख़ुदा सो रहा है
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ख़ुदा कुछ देख नहीं रहा है देखता तो
रोटी के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगतीं
क्या बीबियाँ पुलिस के हाथों पिटतीं
क्या भगदड़ में बंदो की जानें जातीं
क्या अमीर लोग देशी घी से चुपड़ी 
मिस्सी रोटियाँ खाते और बेचारे ग़रीब 
मारे-मारे फिरते भूखों रहते यक़ीनन
ख़ुदा सो रहा है ख़ुदा जागता कम है
सोता बहुत ज़्यादा है।


सपने में
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कल रात सपने में बम नहीं
लड़ाकू विमान से रोटियाँ बरसा रहा था 
डर नहीं पड़ोस में प्यार लुटा रहा था
बच्चों और औरतों के चेहरे पर 
मुस्कान ला रहा था।


फिर आइएगा
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मैंने सपने में जिन-जिन बच्चों को
रोटियाँ खिलायीं मुझे उनकी अम्मियों ने कहा
शुक्रिया भाईजान फिर आइएगा ऐसे ही
हमारे मुल्क में दोस्ती का फरिश्ता बनकर
इंसानियत की मिसाल बनकर 
बँटवारे पर सवाल बनकर।

सपने
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नींद खुली 
तो रात के सपने याद आये थोड़ा डर गया
मुझे क्या हो गया था अपनी सरकार से पूछे बिना
पड़ोस में रोटी गिराने जैसे कई ख़तरनाक सपने 
ताबड़तोड़ देख गया मुझे तो क़ानून भी पता नहीं
ग़ैर-इरादतन सपने देखने का क्या दण्ड है
और इरादतन का क्या दो साल या चार साल 
भलाई करने का क्या है बुराई करने का क्या
आप से आप जो सपने आते गये देखता गया।


दंगे
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दंगे तो
हमारे और हमारे बच्चों के लिए मुसीबत हैं
ख़ून हमारा बहेगा और गाल आपके सुर्ख़ होंगे
घर हमारा जलेगा और महल आपके सजेंगे
आपका क्या आपकी तो चाँदी ही चाँदी होगी
हम जिस जगह दफ़्न होंगे आपकी फसल 
वहीं हमारी छाती पर लहलहाएगी।


विचारों की फेरी
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भगत सिंह के प्यारे उनके विचारों को
उनके स्वप्न को लोगों तक ले जाते हैं
आज़ादी की लड़ाई के दिनों में प्यारे-प्यारे 
बच्चों की प्रभातफेरी की तरह आज सड़कों पर
भगत सिंह के विचारों की फेरी निकालते हैं
आते-जाते लोग कभी देखते हैं कभी नहीं
ठहरकर कुछ तो सोचेंगे शर्मिंदा भी होंगे
जिस दिन पैम्फलेट पढ़ेंगे बुदबुदाएंगे 
कैसा जीवन जिया!


चाँद और चितचोर 
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मेरा चाँद तो तुम हो
चाँद को देखता हूँ तो चाँद को नहीं
उसमें तुम्हें देखता हूँ मेरी चितचोर
तुम्हारा श्वेत-कमल-मुख
तुम्हारी स्मिति तुम्हारी चितवन
तुम्हारा चिरयौवन तुम्हारा प्रेम
तुम्हारी कांति तुम्हारी दीप्ति सब देखता हूँ
इसीलिए रोज़ उस टूटने-फूटने वाले 
खिलौने जैसे चाँद से भी कभी-कभार 
झूठ-मूठ का प्यार कर लेता होऊँगा
वर्ना उस चाँद में कंकड़-पत्थर 
और अँधेरे के सिवा रक्खा क्या है।


                                                                                                                              
                                                                                                             मेरा चाँद तो तुम हो



3 टिप्‍पणियां:

  1. सर अच्छी कविताएं

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  2. आप अद्भुत लेखक हैं और आप महिलाओं और बेटियों के बारे में बहुत सुंदर और अच्छा लिखते हैं।
    आप अपने बेटे ईशान के बारे में भी कुछ क्यों नहीं लिखते? आप महिलाओं के बारे में जितना सम्मानपूर्वक सोचते और लिखते हैं उतना ही आपका बेटा महिलाओं को रोजाना यौन रूप से धोखा देता है और उनका अपमान करता है। कृपया अपने घर में भी बल्ब जलाएं। -आप जैसे किसी पिता की शोकाकुल बेटी.

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  3. आपने ऊपर लिखा - ख़ुदा सो रहा है - वह कभी नहीं सोता, वह बारीकी से देख रहा है और केवल गलत करने वाले को पापों का भुगतान करने के लिए सही समय का इंतजार कर रहा है।

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