बुधवार, 12 अप्रैल 2023

ख़ुदा-वंद-ए-करीम तथा अन्य छोटी कविताएँ


- गणेश पाण्डेय

ऐ ख़ुदा
-----------
कैसा बुरा समय आया है
कोई ज़लज़ला तो नहीं आने वाला है
गोरख कबीर प्रेमचंद फ़िराक़ देवेंद्र कुमार 
और कुछ-कुछ मेरे इस शहर में ज़माने से 
पालकी ढोने वालों की पालकी ढोने वाले 
ऊँची आवाज़ में ईमान की बात करने लगे हैं
ऐ ख़ुदा हिन्दी को इस झूठ से महफ़ूज़ रखना।

बदचलनी
-------------
ऐ ख़ुदा हिन्दी को 
फ़ेसबुक की इस बदचलनी से बचाना 
कि एक ही शख़्स चोर और सिपाही दोनों को 
चाहकर भी एक साथ लाइक न कर सके
ख़ुदाया ऐसे लोगों की शक़्लें बिल्कुल 
शातिर चोरों जैसी बना देना।

वह मोढ़ा
------------
वह शख़्स जिसके पास ख़ुद की कुर्सी नहीं है
ख़ुद की भाषा और ख़ुद का मुहावरा नहीं है
जो एक टुटहे मोढ़े पर बैठकर लगातार 
अदब और इंसाफ़ पर भाषण दे रहा है
ख़ुद को बेदाग़ और बेकसूर दिखा रहा है
वह मोढ़ा मेरा है जिसे वह अपना बता रहा है
ऐ ख़ुदा मेरे मोढ़े को सलामत रखना।

दसदुआरी
-------------
ऐ ख़ुदा हिन्दी में
ऐसी छोटी मशीनें ज़रूर बना देना
कि दूसरे शहर का लेखक वहीं से
जान सके कि मेरे शहर में कौन लेखक 
दसदुआरी है और कौन अपने ठीहे पर 
जमा हुआ है।

जन्नत-नशीं
----------------
ऐ ख़ुदा दिल्ली की पूँछ पकड़कर 
मेरे सिर पर बैठने की ख़्वाहिश करने वाले
लेखकों को लेखकों की उस बिरादरी में 
रत्नजड़ित सिंहासन देना जहाँ सुबह-शाम 
गधे कविता लिखते हों और चूहे आलोचना
जहाँ छोटे से छोटे कवि का संग्रह 
एक साथ पच्चीस भाषाओं में छपता हो
अनुवाद होना जहाँ बड़ा काम समझा जाता हो
बराएमेहरबानी उनके बाड़े के मुँह पर सूअर नहीं
हिन्दी के जन्नत-नशीं लिख देना।

ग़ैबी ताक़त 
---------------
बहुत बुरा बखत है
बुरे लोगों से अच्छाई से पेश आना चाहो तो
वे रास्ते में ही अच्छाई की इज़्ज़त लूट लेते हैं
वे अच्छा लेखक होने का ढोंग तो कर सकते हैं
किसी सचमुच के अच्छे लेखक को सेकेंड का
हज़ारवाँ हिस्सा भी बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं
ऐ ख़ुदा ऐसे दुष्टों से निपटने के लिए थोड़ी-सी
ग़ैबी ताक़त मुझे भी अता फ़रमा।

जो करूँ
-----------
ऐ ख़ुदा
मैं बहुत शुक्रगुजार हूँ
मुझमें इतनी ताक़त तो बख़्शी कि
ज़रा-सी ठोकर से जैसे ही लड़खड़ाने को होऊँ
तुरत संभल जाऊँ और फिर जो करूँ 
किसी के मान में न आऊँ।

ख़ुदा-वंद-ए-करीम 
------------------------
ख़ुदा-वंद-ए-करीम मैंने तो 
तेरे हुक़्म की तामील करते हुए बुरे लेखकों से
अच्छाई से पेश आने की बारहा कोशिश की
मेरे सिर पर बार-बार पेशाब तो उन्होंने की
उनके घमंड को चकनाचूर करने के लिए 
मुझे इसी तरह तेज़ाबी कविताएँ
और विस्फोट गद्य लिखने दे।

दुष्ट लेखक
--------------
ऐ ख़ुदा मुझे माफ़ करना 
मैंने तुझे उर्दू अल्फ़ाज़ों में याद किया
संस्कृतनिष्ठ तत्सम में याद करता
तो बीस बार ओ प्रभु कहते ही कवि नहीं
साम्प्रदायिक हिन्दू कह दिया जाता
हालाँकि मेरे लिए हिन्दी और उर्दू सगी बहनें हैं
एक के घर में जो पकता है दूसरे भी चखते हैं
दूसरे घर में जगह कम पड़ती है तो हिन्दी
अपनी दोनों बाहें फैला देती है लेकिन 
ये हिन्दी के दुष्ट लेखक कुछ सीखते ही नहीं।

इजाज़त 
-----------
ऐ ख़ुदा
तू मुझे माफ़ कर आज की तारीख़ में
यहाँ किसी भी बेईमान अंपादक-संपादक में
मेरे लिखे को छापने की क़ुव्वत नहीं है
इसलिए इन कविताओं को अपने ब्लॉग में
छापने की इजाज़त दे।






2 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक व्यंजनापूर्ण उम्दा कवितायें

    जवाब देंहटाएं
  2. ----------------
    ऐ ख़ुदा दिल्ली की पूँछ पकड़कर
    मेरे सिर पर बैठने की ख़्वाहिश करने वाले
    लेखकों को लेखकों की उस बिरादरी में
    रत्नजड़ित सिंहासन देना जहाँ सुबह-शाम
    गधे कविता लिखते हों और चूहे आलोचना
    जहाँ छोटे से छोटे कवि का संग्रह
    एक साथ पच्चीस भाषाओं में छपता हो
    अनुवाद होना जहाँ बड़ा काम समझा जाता हो
    बराएमेहरबानी उनके बाड़े के मुँह पर सूअर नहीं
    हिन्दी के जन्नत-नशीं लिख देना।


    लाजवाब, आजकल ऐसे ही लोग दौड रहे हैं

    जवाब देंहटाएं