मंगलवार, 24 अगस्त 2021

अफ़ग़ान सीरीज़


- गणेश पाण्डेय


1
ख़ुदा करे मेवे की बारिश हो
--------------------------------

यहाँ 
गाजर का हलवा बना हुआ है
क्या रंगत है वाह क्या ख़ुशबू है
ओह कितना मीठा है कितने मेवे हैं
सब ख़ालिस अफ़ग़ानिस्तान के हैं
बच्चे कटोरी भर-भरकर खा रहे हैं 
खाते-खाते खेल रहे हैं गा रहे हैं

यहाँ बारिश हो रही है 
सारे खेत-खलिहान बहुत उम्मीद से हैं
देशभर में तनख़्वाह 
और मँहगाई भत्ते में इज़ाफ़ा हो रहा है
लोग बच्चों की पढ़ाई के लिए 
शादी-ब्याह के लिए 
कपड़े और गहने ख़रीदने के लिए
बैंक से ख़ूब रुपये निकाल रहे हैं
कुछ लोग अगले चुनाव की तैयारी में हैं
ज़ोर-शोर से कमर कस रहे हैं
कोई किसी को हटाने की बात कर रहा है
कोई किसी को लाने की बात कर रहा है
बड़ी से बड़ी ग़रीबी को भूलकर
किस तरह महिलाएँ गीत गाते हुए
मतदान करती हैं
कितना सुख है यहाँ
किसी भी मंत्री चाहे प्रधानमंत्री को
कुछ भी कह सकते हैं

दुनिया में
सभी देशों में ऐसी ही बारिश होती है
या इससे कम या बिल्कुल कम होती है
इस समय पड़ोस के देशों में
कैसी बारिश हो रही होगी
बादल किस तरह गरज रहे होंगे
बिजली किस तरह चमक रही होगी
कैसी बिजलियाँ गिर रही होंगी
वहाँ के लोगों पर

वहाँ के बच्चों ने खाना खा लिया होगा
रोटी मिल गयी होगी मेवे पास में होंगे
दुधमुँहे बच्चों की माँओं की छातियों से
दूध उतर रहा होगा या नहीं 
बाज़ार खुले होंगे या नहीं
सामान मिल रहे होंगे या नहीं

ख़ुशहाली की बारिश हो रही होगी 
या बदहाली की बारिश हो रही होगी
आफ़त की बिजलियाँ गिर रही होंगी
या प्रभु की नेमत बरस रही होगी
तानाशाही की बारिश हो रही होगी
या लोकतंत्र की बारिश हो रही होगी

यहाँ उम्मीद की बारिश हो रही है
ख़ुदा करे कि हर जगह यहाँ की तरह
उम्मीद की बारिश हो
दूध-दही और मेवे की बारिश हो।


2
अफ़ग़ानिस्तान
------------------

हिंदुस्तान में बच्चे
बेख़ौफ़ राखी मना रहे हैं जैसे 
ईद और बाक़ी त्योहार मनाते हैं
सुबह से ही चिड़िया की तरह
चह-चह कर रहे हैं बच्चे
ऊब-चूभ हो रहे हैं

अफ़ग़ानिस्तान में 
आज कितनी बंदूकें बच्चों में
ख़ौफ़ पैदा करने के काम पर लगी होंगी
कितने निर्दयी निकले होंगे सड़कों पर
कितनी मासूम बेटियों को 
खिड़की की दरार से सूँघ रहे होंगे
दिन के उजाले में उनकी आँखों में
रात का अँधेरा पैदा कर रहे होंगे
पंखुड़ी जैसी उनकी कोमल नींद
अपने बूटों से रौंद रहे होंगे

आज
अफ़ग़ानिस्तान के निहत्थे भाई 
अपने और अपनी बहनों के सामने
आतंक के इस पहाड़ का सामना  
किस तरह कर रहे होंगे
कुछ तो खदबदा रहा होगा उनके भीतर
किस सोच में होंगी वहाँ की बहनें
शायद यह कि बंदूक का सामना
किस चीज़ से करना है
शायद यह कि जीना है तो किस तरह
और मरना है तो किस तरह
ओह माँएँ जी कैसे रही होंगी
उनके वालिद की दाढ़ी कितनी बार
माथे के पसीने से भीग चुकी होगी

पाकिस्तान में भी
भाई रहते होंगे बहनें भी रहती होंगी
बेटियों के माँ-बाप रहते ही रहते होंगे
ये लोग क्या सोच रहे होंगे
पड़ोस की आग के बारे में 
कहाँ तक उट्ठेंगी लपटें कहाँ तक जाएंगी
कुछ तो सोच रहे होंगे

जैसे हम 
अफ़ग़ानिस्तान की आग में
धिक रहे हैं और सोच रहे हैं।

3
ख़ूबसूरत दुनिया
--------------------

बचपन 
सबसे सुंदर देश होता है
प्यारे-प्यारे न्यारे-न्यारे
बच्चों का निराला देश होता है
जो इस छोर से उस छोर तक
पूरी दुनिया में फैला होता है

बच्चा
कहीं का हो
पाकिस्तान का हो
चाहे अफ़ग़ानिस्तान का हो 
चाहे हिंदुस्तान का बच्चा हो

दुनिया का हर बच्चा 
जहाँ कहीं भी जिस समय होता है
सिर्फ़ और सिर्फ़ प्यार का 
राजदूत होता है

कोई भी 
बच्चा हो किसी का हो
दुनिया में सबका बच्चा होता है
उसका हँसना सबका हँसना होता है

एक बच्चा 
किसी कोने में उदास होता है
तो दूसरा बच्चा आप से आप
उदास हो जाता है

अफ़ग़ानिस्तान में 
कोई बच्चा किवाड़ के पीछे 
सुबुक-सुबुककर रोता है
तो हूबहू हिंदुस्तान में भी कोई बच्चा 
रोता है

दुनिया का कोई भी बच्चा 
न कभी उदास होना चाहता है 
न रोना चाहता है सीने से चिपक पर
वह तो सबको ख़ूब-ख़ूब 
प्यार करना चाहता है

वह तो 
बड़े से बड़े हत्यारे में भी साधु ढूँढता है 
दुनिया के सबसे बुरे आदमी में भी 
अपना प्यार ढूँढता है  

ओह 
कैसे कोई निर्दयी 
अपनी माँ से लाड़ करते हुए
एक हँसते हुए बच्चे को रुला सकता है

जगह-जगह
बारूद के ढेर पर बैठा हुआ 
कोई चौधरी इस ख़ूबसूरत दुनिया को 
बर्बाद करना चाहता है।

4
बंदूक 
-------

बंदूक
बनाने वालों के पास
आँखें नहीं थीं नहीं तो 

बंदूक में 
बच्चों को देखने वाली 
आँखें ज़रूर बनाते।

5
दहशतगर्द
-------------

दहशत फैलाने वाले
माँ की कोख से नहीं पैदा होते
सीधे आसमान से फाट पड़ते हैं

ये तो कभी 
बच्चे होते ही नहीं हैं
किसी की उँगली पकड़कर 
चलते ही नहीं हैं

अपनी उँगलियों से
कभी किसी फूल को चाहे किसी 
तितली को छुआ ही नहीं होता है
किसी कंचे से खेला ही नहीं होता है

अपनी 
नन्ही उँगलियों से कभी
माँ के होठों को छुआ नहीं होता है
माँ के पयोधरों का अमृत 
पिया नहीं होता है

शायद 
ये इंसानों की बस्ती में नहीं
किसी जंगल में पैदा होते हैं
शायद बंदूक की नली से पैदा होते हैं
शायद कारतूस के खोखे से 
पैदा होते हैं

शायद 
सीधे ट्रिगर पर
आधा-अधूरा पैदा होते हैं
सिर्फ़ इनकी उँगलियाँ पैदा होती हैं
बिना दिल और दिमाग़ के वहीं
जवान होती हैं और जवानी में
मर जाती हैं।

6
बच्चों की उँगलियाँ
---------------------

बच्चे
गुलाब के फूल और काँटे को
एक जैसी ललक से छूते हैं

बच्चे
सुख़र् आग और सफ़ेद बर्फ़ को
एक जैसी उत्सुकता से छूते हैं

बच्चे
माउथऑर्गन और बंदूक को
एक जैसी निडरता से छूते हैं

बच्चे
मनुष्य पशु और पक्षी को
एक जैसे रिश्ते में बँधकर छूते हैं

बच्चे
अपनी सबसे अच्छी उँगलियों से 
दुनिया की हर चीज़ प्यार से छूते हैं।

7
अफ़ग़ानी लोग
-----------------

ये कैसी 
कोमलांगी स्त्रियाँ हैं जिन्होंने
अपने बच्चों के लिए अपने देश के लिए
देह से चिपकी कोमलता की पंखुड़ियों को 
नोचकर फेंक दिया है

बंदूकों से नहीं डर रही हैं
इन्हें टैंक नहीं डरा पा रहा है
न इन्हें तालिबान का ख़ौफ है
न पाकिस्तान की फ़ौज का

दुनिया वालों देखो
फूल जैसे बच्चों की सोने जैसी माँओं ने
ख़ुद को लोहे जैसा बना लिया है
इनके कंठ में लोहे जैसे इरादों की आवाज़ है
इनके हाथों की तख़्तियाँ कैसे चीख़ रही हैं
काबुल की सड़कों पर दूसरी जगहों पर
हर स्त्री पंजशीर बन गयी है

मारो उसे मारो
जीभर मारो कोड़े से मारो
उसे भून दो गोलियों से वह नहीं लड़ेगी
तो कौन लड़ेगा उसके बच्चों के लिए
उसे लड़ना ही होगा

इन स्त्रियों के बड़े-बड़े बच्चे
और सहोदर अपनी मातृभूमि के लिए
दुनियाभर में फैल चुके हें प्रदर्शन कर रहे हैं
हाथों में तख्तियाँ लिए चीख़ रहे हैं
अपने देश को बचाने की अपील कर रहें हैं

एक हँसता-खेलता हुआ देश
किस तरह अचानक दुनिया का सबसे दुखी 
और दुश्चिंताओं वाला देश बन गया है
अफ़ग़ानी लोंगों को चैन कहाँ नींद कहाँ
भूखे-प्यासे बस यही सोचते होंगे
कैसे कुछ लोगों ने हमारे समय को
एक बर्बर समय में बदल दिया है
इस बर्बरता के खि़लाफ़ कुछ सोच रहे होंगे।








3 टिप्‍पणियां:

  1. ़सभी कवितायें मनुष्यता के सवालों के साथ अमानवीयता टकराती उम्मीद की कवितायें हैं | इन कविताओं में युध्दोनमादी विचारों पर प्रहार करते हुये प्रेम की आवश्यकता पर बल दिया गया है | बधाई आपको |

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही मार्मिक कवितायेँ हैं. प्रेम की, मानवता की, बेबसी की, आर्तनाद की हुक जगाती कवितायेँ.

    जवाब देंहटाएं
  3. बर्बरता और अमानवीयता से आक्रांत इस विद्रूप समय में ये कविताएं मनुष्यता के पक्ष में कोमल, लेकिन अविचल, पुकार सी हैं। बेहद प्रासंगिक।

    जवाब देंहटाएं