बुधवार, 5 जनवरी 2022

इकतालीस छोटी कविताएँ

- गणेश पाण्डेय

(जैसे युद्ध सिर्फ़ मिसाइलों से नहीं होता, कई छोटे हथियारों और एके दो सौ तीन वग़ैरा की भी ज़रूरत पड़ती है, उसी तरह इधर तमाम लंबी कविताओं के बाद छोटी कविताओं की झड़ी लग गयी है। कहना और आभार स्वीकार करना ज़रूरी है कि कविमित्र योगेंद्र कृष्णा जी ने मेरी तमाम छोटी कविताओं के पोस्टर बनाये हैं। साहित्य के इस संघर्ष में उनकी संलग्नता प्रीतिकर है।)

1
मिट्टी
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हम 
जिस मिट्टी में 
लोटकर बड़़े होते हैं

वह 
हमारी आत्मा से 
कभी नहीं झड़ती।

2
बाबा
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बहुत से भी 
बहुत कम लेखक होंगे 
जिन्हें साहित्य में कभी 
कृपा बरसाने वाले 
किसी बाबा की ज़रूरत 
नहीं हुई होगी।

3
बड़ा बाजार
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साहित्य को 
बड़ा बाजार बनाया किसने

जी जी उन्हीं दो-चार लोगों ने
जिनकी आप पूजा करते हैं।

4
जो कवि जन का है
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जो कवि
जितना गोरा है
चिकना है सजीला है
उसके पुट्ठे पर राजा की
उतनी ही छाप है

जो कवि
जितना सुरीला है
तीखे नैन-नक्श वाला है
उसके गले में अशर्फियों की
उतनी ही बड़ी माला है

जो कवि 
जन का है 
बेसुरा है बदसूरत है
बहुत खुरदुरा है
उम्रक़ैद भुगत रहा है।

5
जीवन
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जहाँ
जीवन ज्यादा होता है
हम वहाँ रुकते ही कम हैं

असल में
जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं
चमकती हुई चीज़ों के पीछे
तेज़ दौड़ना शुरू कर देते हैं

जीवन तो कहीं पीछे से
हमें मद्धिम आवाज में 
पुकारता रह जाता है।

6
समकालीन कवि
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जब हम 
साहित्य में लड़ रहे थे

तब वे किसी उत्सव में
काव्यपाठ कर रहे थे

कहने के लिए वे भी
समकालीन कवि थे।

7
नया मुहावरा
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साहित्य में
लड़ोगे-भिड़ोगे
तो होगे ख़राब

मुंडी झुकाकर
लिखोगे-पढ़ोगे
तो होगे नवाब।

8
काम
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जिसका जो काम है
उसे वही करना चाहिए

जैसे हर शख़्स
ख़ुशामदी नहीं हो सकता है

उसी तरह हर शख़्स
बाग़ावत नहीं कर सकता है।

9
अहमक़
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ओह ये अहमक़ 
आख़िर समझेंगे कब

साहित्य को जश्न नहीं
ईमान की ज़रूरत है।

- गणेश पाण्डेय

10
गालियाँ
---------
कविता के पितामह ने 
बिगाड़ा है मुझे

सारी गालियाँ
उन्हीं से सीखी हैं मैंने

मेरा क्या करोगे भद्रजनो
जाओ कबीर से निपटो।

11
आज़माइश
--------------
इतना 
टूटना भी ज़रूरी था
ख़ुद को आज़माने के लिए

एक हाथ टूट जाने दिया
फिर दूसरे हाथ से
लड़ाई की।

12
आ संग बैठ
---------------
तू भी 
कवि है मैं भी कवि हूँ
मान क्यों नहीं लेता

जब पीढ़ी एक है तो तुझे 
ऊँचा पीढ़ा क्यों चाहिए
आ संग बैठ चटाई पर।

13
कविता का मजनूँ
---------------------
जिस कवि को
हज़ार कविताएँ लिखने के बाद
एक भी खरोंच नहीं आयी
एक ढेला न लगा सिर पर
ज़रा-सा ख़ून न बहा

कितना सुखी 
सात्विक और अपने मठ का
निश्चय ही प्रधानकवि हुआ
गुणीजनो क्या वह 
कविता का मजनूँ हुआ!

14
दुरूह
-------
जिस कविता में 
कथ्य की रूह 

साफ़-साफ़
एकदम दिख जाय

वह दुरूह नहीं है 
नहीं है नहीं है।

15
दलाल
---------
जो अलेखक हो
जुगाड़ का चैंपियन हो

छपने-छपाने इनाम दिलाने
मशहूर कराने में माहिर हो

और देशभर के लेखकों को
मिनटों में मुर्गा बनाता हो।

16
ब्रह्म
-----
जिसने तबीअत से
पुरस्कार को सूँघ लिया
ब्रह्म को पा लिया 

जिसे नसीब नहीं हुआ
वह बेचारा हर जन्म में 
हिन्दी का लेखक हुआ।

17
दिल्ली
----------
हाशिए के लेखक
मेरे दोस्त हैं मेरी ताक़त हैं

मेरी तरह दिल्ली के
पॉवरहाउस से दूर रहते हैं

दिल्ली उन्हें भी मेरे साथ
मिटाने के लिए विकल है।

18
भिड़ंत
--------
तुम अपनी 
अशरफ़ी दिखाओ

मैं अपना
ईमान दिखाता हूँ।

19
मार्क्सवादी
--------------
हिन्दी के मार्क्सवादी
चाहते हैं देश के पूँजीपतियों का
नाश हो नाश हो नाश हो

और वे राजधानी में खुलेआम
हिन्दी के पूँजीपतियों का तलवा
चाटते हैं चाटते हैं चाटते हैं।

20
लगा पीटेगा
---------------
यह कविता इससे पहले
लिखी क्यों नहीं गयी थी

आलोचक ने कहा तो लगा
पहले के कवियों को पीटेगा

थोड़ा डरा सोचा कि यह ख़ुद
पहले क्यों नहीं पैदा हुआ!

21
महानता
----------
भाड़ में जाए 
आपकी महानता

जो था सब 
कह नहीं दिया तो।

22
धरती पर
------------
धरती पर कोई फूल 
अधखिला रह न जाए

कोई बात ज़रूरी हो
तो कहे बिना रह न जाए

23
नानी की नानी
------------------
नानी कब याद आती हैं
जी, कठिन बात कहनी हो तब

और जब बहुत कठिन बात 
कहनी हो तो तब, वत्स

जी गुरु जी, तब
नानी की नानी याद आती हैं।

24
नहीं देखा
------------
मंच की रोशनी में
फुदकते हुए चूहों को
कभी शेर में बदलते
नहीं देखा नहीं देखा
चूहों ने भी नहीं देखा 
नहीं देखा नहीं देखा।

25
ये
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मेरा ख़याल है ये अभी
गंदा खाने तक जाएंगे
आख़िर इन्हीं के समय में
पुरस्कार युग आया है
कर लेने दो खा लेने दो।

26
अधिकतम
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लेखकों, संपादकों, आलोचकों ने
कभी कृति के न्यूतम समर्थन मूल्य की बात की ही नहीं

इन्होंने हमेशा गोलबंद होकर
अधिकतम समर्थन मूल्य के लिए
राजधानी को घेरा।

27
कनकौआ
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इधर के 
किन-किन लेखकों के पास 
कोई जुनूनी काम है

क्या पता
कनकौआ उड़ाना ही आज का
बड़ा काम हो!

28
वहाँ
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अच्छा हुआ
मैं वहाँ बहुत कम जाना गया 
जहाँ थोड़े से आदमी रहते थे 
और चूहे बहुत ज़्यादा ।

29
सुधार
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गुप्त जी मानते थे
कि राम के चरित के सहारे
कोई भी कवि बन सकता है

आज हैरान होते हिन्दी के इन
दुश्चरित्र कवियों को देखकर
अपने लिखे में सुधार करते

कोई भी दुश्चरित्र कवि हो जाय
यह सहज संभाव्य है।

30
मज़बूत कवि
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जैसे 
बच्चे को देखकर
तंदुरुस्ती जान लेते हैं

उसी तरह
मज़बूत कवि को
दूर से पहचान लेते हैं।

31
शायद
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हिन्दी में विचारों की कमी नहीं है
बस काम करना बंद कर दिया है

हिन्दी में आदर्शों की कमी नहीं है
बस काम करना बंद कर दिया है

हिंदी में महान लेखक कम नहीं हैं
इन लेखकों ने रास्ता बदल लिया है

लेखक की दुनिया बदल गयी है
शायद पुरस्कार-राशि बढ़ गयी है।

32
सर्वेंट क्वार्टर
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यह बच्चा
जब दिल्ली में लेखक बना है
वहीं पला-बढ़ा है तो जाएगा कहाँ
अमेरिका इंग्लैंड वग़ैरा

यह तो अंतरराष्ट्रीय साहित्य के
सर्वेंट क्वार्टर में पैदा हुआ है
देश की नसों में मेरा ख़ून बनकर
कैसे दौड़ेगा।

33
आ बेटा
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बच्चा लेखक है 
सारे अंग छोटे और कोमल होंगे
मूते भी तो मुझ तक कैसे पहुँचेगी

मुझे ही जाना होगा दिल्ली
दुलार करने आ बेटा सिर पर 
कर ले मन की।

34
लीला
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मान्यवर आप लेखक हैं
और साहित्य के संघर्ष में नहीं हैं
तो आपकी भाषा चमकती हुई
स्निग्ध कोमल वग़ैरा तो होगी ही
आपकी उँगलियाँ अभी भी
स्वेटर बुनने की अभ्यस्त होंगी
काश मैं भी मूलतः स्त्री होता
मेरी हथेलियाँ खुरदुरी न होतीं
मैं गणेश नहीं लीला होता।

35
डण्डा
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वे
साहित्यपति थे

उन्होंने कहा -
झण्डा लेकर चलो

मैंने कहा -
डण्डा लेकर चलो।

36
लज्जा
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हे प्रभु
माइक के सामने
अख़बार के बयान में
कविता लिखते हुए 
टेढ़ी हो गयी है कवि की रीढ

जहाँ झगड़ना था मीठा बोला 
जहाँ तनकर खड़ा होना था झुका
जहाँ उदाहरण प्रस्तुत करना था 
छिपकर जिया

हे प्रभु
उसे सुख-शांति दीजिए न दीजिए
थोडी-सी लज्जा जरूर दीजिए।

37
अकड़
--------
हे प्रभु
आप हो तो ठीक है
न हो तो भी
पर हिन्दी में ऐसा वक़्त 
ज़रूर आये

जब पाठक ही पाठक हों
और पाठक के पास इतना बल हो
कि कवि और आलोचक की
अकड़ तोड़कर उसकी जेब में
डाल दें।

38

निरीह कवि
--------------
हे प्रभु
आये ज़रूर आये
हिन्दी में ऐसा भी वक़्त 

जब आलोचक अपनी अकड़
निरीह कवि के सामने नहीं
साहित्य की सत्ता के सामने
दिखाए।

39
दिल्ली भी
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साहित्य में
दिल्ली भी है
दिल्ली ही नहीं

सुनता कौन है
देशभर के लेखक
बहरे हैं।

40
ज्ञानी
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हिन्दी में
इतने ज्ञानी आ गए हैं 
कि पूछो मत

ज्ञान की आंधी में
कविता की नाव 
अब डूबी तब डूबी।

41
टैटू
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नक़लची कवि
असली कवियों को
कविता पढ़ा रहे हैं

हँस रहे हैं चूतड़ मटका रहे हैं
उसी पर कविता का टैटू
बनवा रहे हैं।



1 टिप्पणी:

  1. हिंदी साहित्य के पाखंडपूर्ण, लिजलिजे और निर्लज्ज समय के विरुद्ध गहरे सरोकार और ईमान की जमीन पर उगीं ये छोटी-छोटी कविताएं बेहद महत्वपूर्ण और ज़रूरी हैं― साहित्य के सच्चे विद्यार्थियों के लिए तो एक अनिवार्य विषय की तरह।

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