-गणेश पाण्डेय
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भारतीय सास
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जो औरत
औरत नहीं होती है सास होती है
सास रहते हुए भी वह औरत चाहे तो
उसके भीतर एक औरत ज़िदा रह सकती है
ऐसा होता तो कितना अच्छा होता
संसार की सारी औरतों का मन
कितना सुंदर होता
औरत तो औरत होती है
माँ भी होती है सास भी होती है
जब कोई औरत कम औरत होती है
तो माँ भी कम होती है और सास भी
कठोर
माँ जन्म देती है
सास बहू को जन्म नहीं देती है
लेकिन सास अच्छी हो तो बहू को
सिर्फ़ अपना बेटा ही नहीं नित आशीष
अपनी गोद और अपना आँचल भी
ज़रूर देती है
कम औरत
जब कठकरेजी सास होती है
तो बहू की हारी-बीमारी में
उसके लिए आए दूध और फल
तीन चौथाई आँखों से ओझल कर देती है
बेटे के सामने आदर्श सास बनकर
बहू के लिए सेब काटकर ले जाती है
बेटे के बाहर जाने पर पूछती भी नहीं
बहू जी रही हो कि मर रही हो
ओह सासें भी
तरह-तरह की होती हैं
कुछ तो मोरनी जैसी होती हैं
नाचती रहती हैं नाचती रहती हैं
बहुओं के सिर पर
कुछ फ़िल्म की हीरोइनों की तरह
हरदम बनी-ठनी रहती हैं गोया बहू के संग
सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेना हो
कुछ तो बिल्कुल सौत की तरह होती हैं
पत्लू से बाँधकर रखना चाहती हैं बेटे को
बहू को उसके साथ अकेले
कहीं जाने ही नहीं देतीं
और चला जाए तो दम पर दम
फोन करती रहती हैं
इंग्लिश मीडियम की सास हो
चाहे हिंदी मीडियम की
चाहे अँगूठा ही क्यों न लगाती हो
जिसे ख़ुद पर ज़रा -सा भी भरोसा नहीं होता है
चाहती है कि बेटे पर वर्चस्व कम न होने पाए
बहू के रंग में कुछ तो भंग पड़ जाए
ऐसी सासें प्रेम और प्रेमविवाह
दोनों की पैदाइशी शत्रु होती हैं
निन्यानबे फ़ीसद
प्रेमविवाह की विफलता का मुकुट
इन्हीं के सिर पर सजता है
वैसे भारतीय सासों में
अंग्रेज़ी और हिंदी मीडियम की सासों को भी
भोजपुरी और अवधी में आते देर नहीं लगती है
जैसे हिंदी का सारा व्यंग्य बाण
इन्हीं के मुखारविंद से पैदा हुआ हो
इन्हें बेटे का घर बसे रहने में नहीं
बहू का घर उजड़ने में ख़ुशी होती है
भारतीय सासों के जंगल में टीवी पर
अशक्त सासों के पीटे जाने की ख़बरें
अब बिल्कुल विचलित नहीं करतीं
लगता है कि ज़रूर इसने कभी
अपनी बहू को ख़ूब सताया होगा
असल में इस देश में
सासों की क्रूरता का लंबा इतिहास है
लोकगीतों और लोककथाओं में ही नहीं
हमारे समय में भी ऐसी सासें
अपनी-अपनी पारी खेल रही हैं
और अपने माँ-बाप से दूर बेटियाँ
पिस रही हैं रो रही हैं
रोज़ डर रही हैं
और ऐसी बदनसीब बेटियों के माँ-बाप
फोन की घंटी से भयभीत हो जाते हैं
राम जाने आज क्या किया होगा
डायन ने मेरी बच्ची के साथ
उफ़
वह औरत
जो तनिक भी औरत नहीं है
न सिर्फ़ भारत की बल्कि
पृथ्वी की सबसे भयानक सास है
वह ज़रा-सा भी औरत होती
तो अपनी बहू को बेटी न भी समझती
तो कम से कम अपनी बहू तो
समझती ही समझती
इस तरह किसी विदीर्णहृदय
सुदूर निरुपाय पिता की बेटी को
दासी न समझती वह भी समझ लेती
तो भी स्त्री तो समझती
अपने चरणों की धूल न समझती
ऐसी बहुओं के जीवन में
तिरस्कार के सिवा कुछ नहीं होता है
न प्यार न सुख न साज-सिंगार
जिनके पति कान के कच्चे होते हैं
और जिनके लिए माँ की हर बात
पत्थर की लकीर होती है
सभी बेटे ऐसे नहीं होते हैं
तमाम बेटे माँ-बाप की भी आलोचना
ख़ूब करते हैं उनसे बहस करते हैं
उनकी कमियाँ बताते हैं
जिनके पति ऐसे नहीं होते हैं
जिनके पिता प्रभावशाली नहीं होते हैं
और जो कमज़ोर घरों से आती हैं
उन बहुओं का भाग्य ऐसी ज़ालिम सासें
अपने बाएँ पैर के अँगूठे से लिखती हैं।
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राग दौहित्री
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सद्यःप्रसूता
बेटी के कंधे पर
उसकी नवजात आत्मजा
कोमलांगी अति गौरांगी
जैसे शस्यधरा के कंधे पर
नयी-नयी बनी नन्ही पृथ्वी
यह सब देखना
सबको नसीब नहीं होता
बोलती हुई पृथ्वी की आँखों से
निःशब्द सुनते चले जाना
ब्रह्मांड के अख़ीर तक
और फिर वापस लौट आना
बोलती हुई आँख की पुतली में
उसी में समा जाना
नाना नाना नाना
और कोई शब्द नहीं
उसकी एक नन्ही पंखुड़ी जैसी
स्मिति में ग़ुम हो जाना क्या होता है
सब कहाँ जान पाते हैं कहाँ छू पाते हैं
अपने जीवन में इतना कुछ
इसके आगे निस्सार है
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का पद
चाहो तो प्रधानमंत्री जी से पूछ लो
चाहे मुख्यमंत्री जी से पूछ लो
ईश्वर जिससे प्रसन्न होते हैं
उसे यह नयी दुनिया दिखाते हैं
उसे सचमुच का मनुष्य बना देते हैं
बाक़ी आज की राजनीति क्या है
और साहित्य तो कुछ है ही नहीं
जो है सब एक गोरखधंधा है
मेरे लिए आज
मेरी बेटी की बेटी सबकुछ है
मेरी बेटी की आकृति है छवि है
उसकी रूह है उसकी आवाज़ है
मेरे कानों में मेरी आँखों में
मेरे घर के हर हिस्से में
आँगन में छत पर अहर्निश
बजती हुई यह नन्ही-सी
मद्धिम-सी प्यारी-सी आवाज़
मेरे जीवन के पुराने संतूर पर
नई सुबह का एक राग है
राग दौहित्री।
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मायका
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बेटी
आज मायके में आयी है
माँ को उसकी नवासी सौंपकर
तीसरे पहर से सो रही है जैसे
युगों की नींद लेकर आयी हो
रात हो गयी है
ज़्यादा रात हो गयी है
पिता को न भूख लगती है न प्यास
बेटी जागेगी तो पहले उससे करेंगे बात
फिर उसी के साथ खाएंगे कौर-दो कौर
भाई चुप है
कुछ नहीं बोलता है
पिता व्यथित हैं कुछ नहीं कहते
जैसे उनके हृदय पर मद्धिम-मद्धिम
आरी जैसी कोई चीज़ चल रही हो
बेटी बिना मिले सोने चली गयी है
माँ
नवासी को बैठक में लाती है
नाना की गोद में रख देती है
नवासी नाना को देख मुस्काती है
नाना उसे देख जी उठते हैं।
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दहेज में हिमालय
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माँओ
तुम्हारी बेटियाँ
डलिया-मौनी बनाना न सीखें
चादर और तकिए पर कढ़ाई न सीखें
अनेक प्रकार के व्यंजन बनाना न सीखें
भरतनाट्यम चाहे सुमधुर गायन न सीखें
तो तनिक भी अफ़सोस मत करना
माँओ
अपनी बेटियों को विदा करने से पहले
उन्हें बहुत पौष्टिक चीज़े खिलाना
जितना दूध बेटे को देना उससे ज़्यादा उन्हें
उनके हाथ-पाँव हाकी की तरह ख़ूब
मज़बूत करना सिर्फ़ खेलने के लिए नहीं
बड़ी से बड़ी मुसीबत से पार पाने के लिए
माँओ
तुम्हारी बेटियाँ
सजने-सँवरने में मन न लगाएं
क्रीम-पावडर होंठ लाली न लगाएँ
तो उन्हें सुंदर दिखने का ज्ञान
मत देने बैठ जाना
माँओ
तुम्हारी बेटियाँ
पढ़ने में मन लगाएँ तो उनकी
चुटिया कसके ज़रूर खींचना
गदेली से उनके गाल पूरा लाल कर देना
हेडमास्टर से अधिक सख़्ती करना
माँओ
दहेज जुटाने में अक़्ल से काम लेना
ऐसी चीज़ें देना जिसे आग जला न सके
पानी गला न सके चोर चुरा न सके
और शत्रु जिस पर विजय न पा सके
प्रतिभा और योग्यता का ऐसा हिमालय
बेटियों के ससुराल को भेंट करना
जिसे वे तोड़ न सकें।
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कारागृह
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बिटिया
आदमियों के इस जंगल में
अकेले जीना चाहे बच्चे को पालना
थोड़ा मुश्किल ज़रूर है
नामुमकिन नहीं
तुम्हारा पति
तुम्हें महत्वहीन समझे
घर को सिर्फ़ अपना समझे तुम्हारा नहीं
सारे फ़ैसले ख़ुद करे तुम्हें पूछे तक नहीं
तुम्हारा पैसा तुमसे छीन ले
तुम्हारा शौहर कहे
कि सास-ससुर से पूछे बिना
तुम अपने मायके नहीं जा सकती
तो समझ लो कि तुम एक जेल में हो
तुम्हारा पति प्रेमी नहीं एक जेलर है
और तुम उम्रक़ैद की सज़ा भुगत रही हो
बिटिया
भगवान न करे
कि ऐसा कुछ किसी के जीवन में घटे
लेकिन ऐसा कुछ हो ही तो डरना मत
अपने माँ-बाप से एक-एक बात करना
भाई से कहना ये सब तुम्हारे साथ होंगे
बिटिया
इस सामाजिक कारागृह के
सींखचों को तोड़ना ही होगा
ऊँची चहारदीवारी को ढहाना ही होगा
तुम्हें बाहर खुली हवा में साँस लेना होगा
तुम्हें जीना होगा बिटिया अपने लिए
अपने बच्चों के लिए।
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बहू का तराना
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सास जी सास जी
ऐसा ना सोचें आप जी
केवल लड़कों के होते हैं
माँ-बाप जी
सास जी सास जी
लड़कियों के भी होते हैं माँ-बाप जी
ऐसा नहीं समझेंगी तो फूँक दूँगी
सास जी
सास जी सास जी
पैर से मसलने की सासगीरी छोड़कर
माँ बन जाएंगी तो भला करेंगे
राम जी
सास जी सास जी
आप भी बहू थीं यह भूल जाएंगी
तो चक्कू मारूँगी हँसिए से काटूँगी
सास जी
सास जी सास जी
पढ़-लिखकर दिमाग़ में गोबर भर लेंगी
तो सबके सामने इज़्ज़त उतार दूँगी
सास जी
सास जी सास जी
रूल नहीं करेंगी डायन नहीं बनेंगी
राम भजेंगी तो पूजा करूँगी आपकी
सास जी।
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यहाँ सब तुम्हारा है
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हे बेटी
ससुराल में
कोई बड़ा-बुज़ुर्ग
कुछ समझाए चाहे सिखाए
तो उसे सिर माथे लगाना
कोई ऐसा
आदरणीय बुज़ुर्ग
अकारण डाँटने-फटकारने लगे
चाहे बात-बात पर अपमानित करे
चाहे नीचा दिखाए चाहे ताने दे
किसी बेजा चीज़ के लिए
मज़बूर करे
तो उसका आदर-फादर करना
छोड़-छाड़कर पहली ट्रेन से
चाहे पहली जहाज से उड़कर
अपने घर लौट आना
यहाँ
तुम्हारा घोंसला
उसका एक-एक तिनका
बिल्कुल वैसे का वैसा है
तुम्हारा कमरा
तुम्हारी आलमारी
तुम्हारी मेज़ तुम्हारी किताबें
तुम्हारा गुलदस्ता तुम्हारी पेंटिंग
सब जस का तस हैं
तुम्हारी माँ तुम्हारी बहन
तुम्हारे पिता और भाई का
दिल कलेजा कंधा और बाहें
सब वही हैं
यहाँ क्या है जो तुम्हारा नहीं है
धरती और आसमान
सब तुम्हारा है।
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बहादुर बेटियो
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कोई ऐसा मिले
जो तुम्हारे बच्चे का बुरा चाहे
तो उसे पहले प्यार से समझाना
फिर भी नुक़सान पहुँचाना चाहे
तुम्हारे बच्चे को सुई चुभोना चाहे
तो तुम भी चाकू निकाल लेना
फिर भी न माने दुष्ट
तुम्हारे बच्चे पर चाकू चलाना चाहे
तो तुम तलवार निकाल लेना
फिर भी न माने
तो जान की बाज़ी लगा देना
उस राक्षस को चीरफाड़ देना
ओ पृथ्वी की बहादुर बेटियो
संसार उदाहरणों से भरा पड़ा है
माँएँ कैसे बाघ से लड़ जाती हैं।
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पिता की सीख
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मैंने
अपने समय के कई सूर्य को
असमय ढलते हूए देखा है बेटी
उन्हें बादलों में घिरते हुए देखा है
मेरी बेटी एक से एक तप्तसूर्य को
चंद्रमा होते जग को शीतल करते देखा है
बेटी मैंने विशाल पर्वत के सीने से
मीठे पानी का सोता फूटते हुए देखा है
मैंने लोहे को
मोम की तरह पिघलते हुए देखा है बेटी
मैंने निष्ठुर सास को भी माँ की तरह
अपनी बहू को कलेजे से चिपकाकर
आँचल की छाँव देते हुए देखा है
मेरी बेटी
समय और परिस्थितियों के थपेड़े
बड़े-बड़े ग्रंथों से भी बड़ी सीख देते हैं
कई बार सास के भीतर का डर
उसे सख़्त बनाता है और डर का क्या है
जितनी जल्दी घर बनाता है उसी तरह
दबे पाँव वापस अपने देश लौट जाता है
मेरी बेटी लगता है थोड़ा वक़्त लगता है
समय बदलता है मन बदलता है।
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सुख
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बेटी
तुम्हारी कलाई में
यह सुनहला कंगन
बहुत अच्छा लगता है
तुम्हारे सुंदर गले में
यह बड़ा-सा मंगलसूत्र
और भी अच्छा लगता है
तुम्हारी आँखों की अपूर्व चमक
दमकते हुए ललाट पर सुर्ख़ बिंदी
और लाल-लाल होंठों पर लाल मुस्कान
बहुत अच्छी लगती है
तुम्हारी गोद में बेटी
खिल-खिल करती दौहित्री की
किलकारी सबसे अच्छी लगती है
सृष्टि की सबसे सुंदर कलाकारी लगती है
एक साधारण
भारतीय पिता के लिए
इस सुख से ज़्यादा अच्छा
और क्या हो सकता है।
बहु का तराना नया सा तराना👌👌
जवाब देंहटाएंलीक से हटकर ये कविताएँ हैं। मुझे बहुत पसंद आयीं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कवितायें हैं |सास-बहू,माँ-बेटी,नाना-नानी-दोहित्री आदि के मानवीय सम्बन्धों और समय-समाज के मिथ्या मानकों पर आपने गहराई से अभिव्यंजनात्मक अभिव्यक्ति की है | बधाई आपको |
जवाब देंहटाएंअच्छी कविताएँ।
जवाब देंहटाएंमुझे बहुत पसंद आई यह कविताएँ सर! विशेषकर सास वाली तो ऐसा लगा जैसे मन की बात कह दी हो! बहुत आभार, इस कविता के लिए
जवाब देंहटाएंअपनी-सी लगी ये कविताएं! बहुत अच्छी, प्रेरणादाई और जीवन से भरी! हौसला देती हुई फिर भी कोमल!
जवाब देंहटाएंक्षमा चाहूँगी सर बस आखिरी कविता कुछ खटक गई! वैधव्य का भार ढोती कुछ सखियों की पीड़ा फिर हरिया गई भीतर...