- गणेश पाण्डेय
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मेरे कानों में हिंदी की चीखें हैं
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बहुत हुआ
रोज़-रोज़ का झगड़ा-टंटा
कोई और बात करो
बहुत किया
दूसरी तरह के लेखकों के
आराम में ख़लल जाने दो
ख़ुद की सोचो
बीपी और शुगर की गोली
अब और न बढ़ने दो
औरों को जी लेने दो
नाम-इनाम की मदिरा
छककर पी लेने दो
छोड़ो सब
चंद रोज़ की पाबंदी में
आराम करो
मुझे मेरे दोस्त ने
समझाया तो कहा आंसू देखो
हिंदी की तार-तार लाज देखो
मेरे भाई आराम कहां
मेरे कानों में हिंदी की चीखें हैं
मुझे बुलाती उसकी पुकार सुनो।
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ग़ुलामी
----------
साहित्य में
बहुत ज़रूरी
काम करो
सम्मान
सबका करो
ग़ुलामी किसी की नहीं।
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चार कवि चुनने की जल्दी
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आठवें दशक में
या किसी भी दशक
या काल की कविता में
चार कवि चुनने की
जल्दी क्यों थी
आखि़र
यह किसकी साजिश थी
ओह कितनी बड़ी
नाइंसाफ़ी थी
जिस काम में
सदियां लग जाती हैं
उसे दो मिनट में और
अकादमी इनाम का
सिक्का उछालकर क्यों
सबसे पंजा लड़ाकर
क्यों नहीं
अब से
सिर्फ़ मुश्किल काम
नाम की एक कविता से
इनकी तमाम कविताएं
लड़ाकर देख लो
और भी सैकड़ों
कविताएं मौजूद हैं
कई कवि हैं
हमारे समय में
चुनौती की तरह
असली
देशी घी की तरह शुद्ध
और लोहे की तरह
मज़बूत।
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बाक़ी कवि खड़े रहें
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सबके पास
कुछ अच्छी कविताएं
होती ही होती हैं
सबके बैठने के लिए
कुर्सी या मोढ़ा होता है
ऐसा नहीं होना चाहिए
कि सभी कुर्सियों पर
चार-छः कवि बैठें
बाक़ी कवि खड़े रहें
किसी समय में
ऐसा अंधेर होगा
तो कुर्सियां टूटेंगी
सिर फूटेंगे।
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प्रतिभा का इंजन
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युवा हो
बहुत प्रतिभाशाली हो
अपनी प्रतिभा का
सही इस्तेमाल करो
क्यों क्यों क्यों
प्रतिभा का इस्तेमाल
पालकी ढोने के लिए क्यों
प्रतिभा का इंजन
चालू करो और सोचो
साहित्य के लोकतंत्र में
पालकी की ज़रूरत क्यों।
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ईमान के जागने का समय
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समय
बदल गया है
इनाम का कुर्ता
और पाजामा
सब फट गया है
कवि की औक़ात
उसकी चतुराई नहीं
उसकी निश्छलता
उसकी सरलता
तय करेगी
कवि की चालाकियों
और उसकी तमाम
दुरभिसंधियों का काल
बीत गया है
उसके हेलीमेली
चमचे चाकर लठैत
और गैंग
सबका अंत
सामने है
उठो
सोने वाले लेखको
ठीक तुम्हारे सिरहाने
ईमान के जागने का
समय आ गया है।
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बहादुर लेखक की मिसाइल
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बड़ा
बहादुर लेखक है
किसी पर दाग देता है
मिसाइल
उसकी
ये मिसाइल
अमेरिका और इजराइल से
बहुत अच्छी है
ये देश
मिसाइल दागने
और निशाने पर लगने के बाद
वापस नहीं मंगा सकते
यहां
बहादुर लेखक
जब चाहता है लंबी और कम दूरी की
मिसाइल दागता है और निशाने पर
लग जाने के बाद उसे वापस कर लेता है।
मुझे भी
मिसाइल वापस मंगाने की
इस कला को सीख लेना चाहिए
यहां बहादुर से बहादुर लेखकों को
पलटी मारते देर नहीं लगती।
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महाकवियों की पालकी
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यह पालकी
महाकवियों की थी
हमारे समय के
कुछ चलता-पुर्जा वरिष्ठ कवियों ने
आव न देखा ताव न देखा उसमें
कुछ कमउम्र चापलूस
कवि-आलोचकों के उकसावे पर
बिना टिकट बैठ गये
इन
वरिष्ठ कवियों का
यह गुनाह यक़ीनन बड़ा था
इन्हें साहित्य में जेल हो सकती थी
जेल में इनके साथ कुछ भी बुरा हो सकता था
लेकिन
जिन चापलूस
कवि-आलोचकों ने
इन्हें इस हाल में पहुंचाया
और महाकवियों की पालकी में बैठाकर
इन्हें शहर-शहर घुमाया
लाइव दिखाया
असल गुनाह तो
इस साहित्यिक ख़ुदकुशी के लिए
उकसाने वाले लालची चापलूसों का था
उन्होंने इनको महान कह-कह कर
इन्हें कविता का गुनहगार बनाया
ऐसे लड़कों को
सबक सिखाना बहुत ज़रूरी था
वरगना हिंदी के उस्ताद कवि क्या समझते
कुछ समझाने वाले आए भी
कड़ी से कड़ी भाषा में समझाया
लेकिन
एक शख़्स ने तो कल
इन लड़कों की चमड़ी ही उधेड़ दी।
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वाचिक लिखित लाइव प्रशंसा के ख़तरे
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किसी ने
आपके साथ
साहित्य के किसी
स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया है
किसी ने
अपने समय के साहित्य में
कोई युगांतर हस्तक्षेप नहीं किया है
किसी ने
साहित्य की संस्थाओं में ऐयाशी करने
और अनुयायी बनाने का काम किया है
इसके लिए करोड़ों का फंड जुटाया है
किसी ने
कविता या आलोचना में
साठ पार करने के बाद भी कहीं
अपने अंगूठे का निशान नहीं लगाया है
किसी ने
आए दिन कविता और कहानी में
बाहर की तमाम भाषाओं का
तर माल उड़ाया है
किसी ने
नाम-इनाम हासिल करने के लिए
साहित्य में वो सारे काम किए हैं
जो नाम डुबोने के लिए किए जाते हैं
जैसे नाक रगड़ना दुम हिलाना
बिछ जाना इत्यादि
आप
ऐसे किसी भी लेखक की प्रशंसा
वाचिक लिखित लाइव किसी भी रूप में
दो-तीन बार से ज़्यादा करेंगे
तो
कवि-आलोचक की जगह
उसके पक्के पालतू ख़ानदानी
चापलूस वगैरह समझे जाएंगे।
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मेरे कानों में हिंदी की चीखें हैं
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बहुत हुआ
रोज़-रोज़ का झगड़ा-टंटा
कोई और बात करो
बहुत किया
दूसरी तरह के लेखकों के
आराम में ख़लल जाने दो
ख़ुद की सोचो
बीपी और शुगर की गोली
अब और न बढ़ने दो
औरों को जी लेने दो
नाम-इनाम की मदिरा
छककर पी लेने दो
छोड़ो सब
चंद रोज़ की पाबंदी में
आराम करो
मुझे मेरे दोस्त ने
समझाया तो कहा आंसू देखो
हिंदी की तार-तार लाज देखो
मेरे भाई आराम कहां
मेरे कानों में हिंदी की चीखें हैं
मुझे बुलाती उसकी पुकार सुनो।
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ग़ुलामी
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साहित्य में
बहुत ज़रूरी
काम करो
सम्मान
सबका करो
ग़ुलामी किसी की नहीं।
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चार कवि चुनने की जल्दी
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आठवें दशक में
या किसी भी दशक
या काल की कविता में
चार कवि चुनने की
जल्दी क्यों थी
आखि़र
यह किसकी साजिश थी
ओह कितनी बड़ी
नाइंसाफ़ी थी
जिस काम में
सदियां लग जाती हैं
उसे दो मिनट में और
अकादमी इनाम का
सिक्का उछालकर क्यों
सबसे पंजा लड़ाकर
क्यों नहीं
अब से
सिर्फ़ मुश्किल काम
नाम की एक कविता से
इनकी तमाम कविताएं
लड़ाकर देख लो
और भी सैकड़ों
कविताएं मौजूद हैं
कई कवि हैं
हमारे समय में
चुनौती की तरह
असली
देशी घी की तरह शुद्ध
और लोहे की तरह
मज़बूत।
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बाक़ी कवि खड़े रहें
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सबके पास
कुछ अच्छी कविताएं
होती ही होती हैं
सबके बैठने के लिए
कुर्सी या मोढ़ा होता है
ऐसा नहीं होना चाहिए
कि सभी कुर्सियों पर
चार-छः कवि बैठें
बाक़ी कवि खड़े रहें
किसी समय में
ऐसा अंधेर होगा
तो कुर्सियां टूटेंगी
सिर फूटेंगे।
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प्रतिभा का इंजन
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युवा हो
बहुत प्रतिभाशाली हो
अपनी प्रतिभा का
सही इस्तेमाल करो
क्यों क्यों क्यों
प्रतिभा का इस्तेमाल
पालकी ढोने के लिए क्यों
प्रतिभा का इंजन
चालू करो और सोचो
साहित्य के लोकतंत्र में
पालकी की ज़रूरत क्यों।
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ईमान के जागने का समय
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समय
बदल गया है
इनाम का कुर्ता
और पाजामा
सब फट गया है
कवि की औक़ात
उसकी चतुराई नहीं
उसकी निश्छलता
उसकी सरलता
तय करेगी
कवि की चालाकियों
और उसकी तमाम
दुरभिसंधियों का काल
बीत गया है
उसके हेलीमेली
चमचे चाकर लठैत
और गैंग
सबका अंत
सामने है
उठो
सोने वाले लेखको
ठीक तुम्हारे सिरहाने
ईमान के जागने का
समय आ गया है।
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बहादुर लेखक की मिसाइल
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बड़ा
बहादुर लेखक है
किसी पर दाग देता है
मिसाइल
उसकी
ये मिसाइल
अमेरिका और इजराइल से
बहुत अच्छी है
ये देश
मिसाइल दागने
और निशाने पर लगने के बाद
वापस नहीं मंगा सकते
यहां
बहादुर लेखक
जब चाहता है लंबी और कम दूरी की
मिसाइल दागता है और निशाने पर
लग जाने के बाद उसे वापस कर लेता है।
मुझे भी
मिसाइल वापस मंगाने की
इस कला को सीख लेना चाहिए
यहां बहादुर से बहादुर लेखकों को
पलटी मारते देर नहीं लगती।
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महाकवियों की पालकी
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यह पालकी
महाकवियों की थी
हमारे समय के
कुछ चलता-पुर्जा वरिष्ठ कवियों ने
आव न देखा ताव न देखा उसमें
कुछ कमउम्र चापलूस
कवि-आलोचकों के उकसावे पर
बिना टिकट बैठ गये
इन
वरिष्ठ कवियों का
यह गुनाह यक़ीनन बड़ा था
इन्हें साहित्य में जेल हो सकती थी
जेल में इनके साथ कुछ भी बुरा हो सकता था
लेकिन
जिन चापलूस
कवि-आलोचकों ने
इन्हें इस हाल में पहुंचाया
और महाकवियों की पालकी में बैठाकर
इन्हें शहर-शहर घुमाया
लाइव दिखाया
असल गुनाह तो
इस साहित्यिक ख़ुदकुशी के लिए
उकसाने वाले लालची चापलूसों का था
उन्होंने इनको महान कह-कह कर
इन्हें कविता का गुनहगार बनाया
ऐसे लड़कों को
सबक सिखाना बहुत ज़रूरी था
वरगना हिंदी के उस्ताद कवि क्या समझते
कुछ समझाने वाले आए भी
कड़ी से कड़ी भाषा में समझाया
लेकिन
एक शख़्स ने तो कल
इन लड़कों की चमड़ी ही उधेड़ दी।
----------------------------------------------
वाचिक लिखित लाइव प्रशंसा के ख़तरे
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किसी ने
आपके साथ
साहित्य के किसी
स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया है
किसी ने
अपने समय के साहित्य में
कोई युगांतर हस्तक्षेप नहीं किया है
किसी ने
साहित्य की संस्थाओं में ऐयाशी करने
और अनुयायी बनाने का काम किया है
इसके लिए करोड़ों का फंड जुटाया है
किसी ने
कविता या आलोचना में
साठ पार करने के बाद भी कहीं
अपने अंगूठे का निशान नहीं लगाया है
किसी ने
आए दिन कविता और कहानी में
बाहर की तमाम भाषाओं का
तर माल उड़ाया है
किसी ने
नाम-इनाम हासिल करने के लिए
साहित्य में वो सारे काम किए हैं
जो नाम डुबोने के लिए किए जाते हैं
जैसे नाक रगड़ना दुम हिलाना
बिछ जाना इत्यादि
आप
ऐसे किसी भी लेखक की प्रशंसा
वाचिक लिखित लाइव किसी भी रूप में
दो-तीन बार से ज़्यादा करेंगे
तो
कवि-आलोचक की जगह
उसके पक्के पालतू ख़ानदानी
चापलूस वगैरह समझे जाएंगे।
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