रविवार, 5 मार्च 2017

मारे जाने की असल वजह अच्छाई क्यों है

- गणेश पाण्डेय

यह बुराई 
नये जमाने की बुराई है जनाब 
बला की खूबसूरत देखिये तो
ताकत में बेजोड़ और उतनी ही मिलनसार और दिलकश
आसान और सस्ती इतनी कि जो चाहे उसकी हो जाए
रात-बिरात कहीं भी चली जाए किसी के संग 
क्या राजा की सभा क्या उसका रनिवास 
क्या ईश का मंदिर और क्या महंत का भुंइधरा 
क्या कचहरी क्या अस्पताल क्या अखबार का दफ्तर 
और क्या विश्वविद्यालय-सिद्यालय
हवा में मिली हुई खुशबू की तरह पसर जाए दसों दिशाओं में
सबके दरवाजे की सांकल बजाए
कहाँ कहाँ नहीं चली जाए
जिसके पास हो
समय का पारस हो
छू दे तो कुर्सी सोने की हो जाए
जेब में हो तो पलभर में दुनिया अपनी हो जाए
कवि की मुश्किल यह कि कहे तो क्या कहे
जिसके पास हो इस समय का महाकवि हो जाए
जादू है जादू छोटी से छोटी बुराई 

पहले जेब में छिपाकर रखते थे बुराई की चाँदी का एक रुपया
अब दिखाकर रखते हैं सिर पर उसका भारी-भरकम मुकुट
पहले अच्छाई सहज थी 
साँस की तरह आप से आप आती-जाती थी
अब बुराई की हल्दी बाँटी जाती है घर-घर
ऐसा क्यों है बाबा गोरख 
अच्छाई अति कठिन तप क्यों बुराई क्यों सरल अजपाजाप
राजनीति की संसद में पहुंचना सरल अति
अध्यात्म की ऊंचाई पर समाधि लेना अति कठिन
यह सोचकर डर लगता है कि ऐसे बुरे वक्त में 
जिन लोगों के पास सोने और चाँदी का चश्मा नहीं है 
ऐसे लोगों के मारे जाने की असल वजह भूख और बीमारी की जगह
अच्छाई क्यों है ?

(यात्रा 12)






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