रविवार, 6 अप्रैल 2014

छपहार

-गणेश पाण्डेय

फिर उपराये
नये-नये छपहार
घुसकर, घर-घर
खोज-खोज कर 
आजू-बाजू, छाती-पुट्ठा
अंग-अंग पर छापा जीभर
टीका।

उल्टा टीका, सीधा टीका
छोटका टीका, बड़का टीका
माई का टीका
चाई का टीका
फिर भरमाये
हँस-हँसकर छपहार।

अन्न मिलेगा, पुन्न मिलेगा
राज मिलेगा, पाट मिलेगा
सरग मिलेगा धरती पर
चेहरा-चेहरा फूल खिलेगा
फिर बतियाये
हाथ पकड़ छपहार। 


तंबू लेकर, भोंपू लेकर
सर्कस लेकर, जोकर लेकर
फिर फुसलायें
बड़े-बड़े छपहार।




वे बुलाते हैं जिस आदमी को

बिजली नहीं है वहा
रास्ता नहीं है, पानी नहीं है शुद्ध
कोई आदमी नहीं है वहाँ
जो कर सके हाकिम से बात।
हर बार मत के भाड़े पर
वे बुलाते हैं जिस आदमी को
वही हाकिम हो जाता है।


(‘जल में’ से)





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