- गणेश पाण्डेय
1/
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हिंदी के ज्ञानियो
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ज्ञान है
तो उसे जीवन में
उतरना चाहिए
अन्यथा
ज्ञान और गोबर में
क्या फर्क है
पहल के लिए
आपका जीवन
क्यों बुरा है।
2/
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हिंदी पट्टी क्या हो गयी है
-----------------------------
क्या
आज हिंदी पट्टी
गोबर पट्टी नहीं हो गयी है
लोग तो हिंदी के जिस-तिस
ऐरे-गैरे नत्थू खैरे को महान मानकर
पूजने के लिए अति विकल हैं
एक पैर पर खड़े हैं
उन्हें
इस बात से मतलब नहीं
जिसको पूज रहे हैं
उसके पास कोई महानता
है भी या नहीं
है तो क्या।
3/
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धारा के विपरीत जैसे होंगे
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जिसने
अपने समय के
किसी महाकवि चाहे
आलोचक का झोला नहीं ढोया
वह ऐसा करने वालों की तरह
अपना जीवन कैसे जी सकता है
उनकी तरह कैसे रह सकता हैं
उन्हें खुश करने वाला साहित्य
कैसे लिख सकता है
बहुत
मुश्किल समय है
धारा के विपरीत आप जैसे होंगे
लोग चाहे कुछ न कर पाएं फिर भी
आपको बर्बाद करने में लग जाएंगे
पत्थर फेकेंगे गालियां देंगे
दुष्प्रचार करेंगे।
4/
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वही अपनी बात कह पाता है
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जो
अकेला होने का
जोखिम उठाता है
वही
कोई अपनी बात
कह पाता है
वर्ना
भीड़ में सब एक जैसा
लिखते बोलते करते हैं।
5/
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अकेला हूं अद्वितीय नहीं
--------------------------------
मैं यहां बहुत
अकेला हूं जरूर
पर हिंदी पट्टी में
अद्वितीय नहीं हूं
मेरी तरह और भी
बहुत अकेले हैं
अपनी-अपनी
जगह।
6/
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बस एक लंबी पंक्ति लिखूं
------------------------------
गुरुओं ने
मेरी कोई बात नहीं मानी
लेकिन मैं सोचता हूं
अपने प्रिय शिष्य की एक बात
जरूर मान लूं
यहां से हट जाऊं
नेपथ्य में बैठकर
एकांत साधना करूं
कुकुरमुत्तों को पूजने के दौर में
सरस्वती की पूजा करूं
सोचता हूं
शिष्य के कहने पर चुप रहूं
लंबी सांस लूं लंबी सांस छोड़ूं
समय के विशाल कागज पर
ग्रंथ नहीं महाकाव्य नहीं
अपनी लिखावट में
बस एक लंबी पंक्ति लिखूं
और
इस तरह अपना काम
पूरा करूं।
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हिंदी के ज्ञानियो
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ज्ञान है
तो उसे जीवन में
उतरना चाहिए
अन्यथा
ज्ञान और गोबर में
क्या फर्क है
पहल के लिए
आपका जीवन
क्यों बुरा है।
2/
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हिंदी पट्टी क्या हो गयी है
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क्या
आज हिंदी पट्टी
गोबर पट्टी नहीं हो गयी है
लोग तो हिंदी के जिस-तिस
ऐरे-गैरे नत्थू खैरे को महान मानकर
पूजने के लिए अति विकल हैं
एक पैर पर खड़े हैं
उन्हें
इस बात से मतलब नहीं
जिसको पूज रहे हैं
उसके पास कोई महानता
है भी या नहीं
है तो क्या।
3/
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धारा के विपरीत जैसे होंगे
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जिसने
अपने समय के
किसी महाकवि चाहे
आलोचक का झोला नहीं ढोया
वह ऐसा करने वालों की तरह
अपना जीवन कैसे जी सकता है
उनकी तरह कैसे रह सकता हैं
उन्हें खुश करने वाला साहित्य
कैसे लिख सकता है
बहुत
मुश्किल समय है
धारा के विपरीत आप जैसे होंगे
लोग चाहे कुछ न कर पाएं फिर भी
आपको बर्बाद करने में लग जाएंगे
पत्थर फेकेंगे गालियां देंगे
दुष्प्रचार करेंगे।
4/
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वही अपनी बात कह पाता है
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जो
अकेला होने का
जोखिम उठाता है
वही
कोई अपनी बात
कह पाता है
वर्ना
भीड़ में सब एक जैसा
लिखते बोलते करते हैं।
5/
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अकेला हूं अद्वितीय नहीं
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मैं यहां बहुत
अकेला हूं जरूर
पर हिंदी पट्टी में
अद्वितीय नहीं हूं
मेरी तरह और भी
बहुत अकेले हैं
अपनी-अपनी
जगह।
6/
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बस एक लंबी पंक्ति लिखूं
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गुरुओं ने
मेरी कोई बात नहीं मानी
लेकिन मैं सोचता हूं
अपने प्रिय शिष्य की एक बात
जरूर मान लूं
यहां से हट जाऊं
नेपथ्य में बैठकर
एकांत साधना करूं
कुकुरमुत्तों को पूजने के दौर में
सरस्वती की पूजा करूं
सोचता हूं
शिष्य के कहने पर चुप रहूं
लंबी सांस लूं लंबी सांस छोड़ूं
समय के विशाल कागज पर
ग्रंथ नहीं महाकाव्य नहीं
अपनी लिखावट में
बस एक लंबी पंक्ति लिखूं
और
इस तरह अपना काम
पूरा करूं।
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