सोमवार, 4 नवंबर 2019

जागो सीरीज : छोटी कविताएं

- गणेश पाण्डेय

(1)
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उनकी चीख सुनो
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बेईमानों
चोर-उच्चकों
और लुटेरों का गिरोह होता है

ईमानवालों का
कोई गिरोह नहीं होता है
बाजदफा बिल्कुल तनहा होते हैं

उनकी चीख सुनो हिंदी के बच्चो
उनका दर्द और छाती पीटना सुनो
यकीनन यह सब तुम्हारे लिए है।

(2)
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आप चुप नहीं रह सकते
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हिन्दी के इस
चौराहे पर खड़े होकर
बस के नीचे आते बच्चों को देखकर
आप चुप नहीं रह सकते
अगर आप चीख नहीं सकते
तो गधा बैल कुत्ता बिल्ली हो सकते हैं
आदमी तो बिल्कुल नहीं हो सकते

हिन्दी के भले आदमी हैं
तो जागिए कुल्ला-दातून कीजिए
खेतों की तरफ भागिए
नील गायों को ललकारिए
हिन्दी की फसल को
बर्बाद होने से बचाइए।

(3)
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जवानी तुम्हारी है हिन्दी हमारी है
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तय करो
तुम्हें अपनी जवानी
लड़ाकों के संग
हिन्दी की उन्नति को देनी है
या साहित्य उत्सवों की मंडी में
प्रसूनों विश्वासों के संग बैठकर
बर्बाद करनी है

जवानी तो तुम्हारी है
किसी भी खूंटे में फंसा दो
ताल-तलैये में डुबो दो
किसी को भी दान कर दो
चाहे तो कोठे पर गंवा दो
तुम अपनी जवानी के संग
कुछ भी कर सकते हो
लेकिन हिन्दी के साथ
कोई बुरा काम नहीं कर सकते

लड़के
सम्हल जाओ
तुम्हारी जवानी तुम्हारी है
तुम्हारा जोश तुम्हारा है
तुम्हारी यशेषणा और वासना
तुम्हारी है तुम्हारी है
हिंदी हमारी है।

(4)
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तय करो
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चीखें
हमें जिंदा रखती हैं

और चुप्पी
हमें मार देती है

तय करो तुम्हें आगे
हिंदी में क्या करना है।

(5)
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टाफी
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बच्चे तो बच्चे हैं
वे थोड़ा-सा मचलते
फिर सम्हलकर
अपने काम में लग जाते

ये तो हिंदी के
मेरी उम्र के हरामजादे हैं
बच्चों को टाफी दिखाना
बंद नहीं करते।



           




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