बुधवार, 10 मई 2017

शहर बदर

गणेश पाण्डेय

एक को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं कोई श्रीवास्तव नहीं था

दूसरे को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं कोई ओबीसी नहीं था

तीसरे को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं किसी लेखक संघ में नहीं था

चौथे को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं किसी मठाधीश का भक्त नहीं था

पांचवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं अपना टेढ़ा मुंह
दिल्ली की ओर नहीं कर पाता था

छठे को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं उसकी तरह नीची आवाज में
बोल और लिख नहीं पाता था

सातवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं उसकी तरह महाजनों की हरबात पर
चाहे पाद पर खुशी से हो-हो नहीं कर पाता था

आठवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं अपनी गर्दन को उसकी तरह
छिपाकर नहीं रख पाता था

नौवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं उसकी तरह नाच-गा नहीं सकता था

दसवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं अकादमी की आलोचना करता था

ग्यारहवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं प्रेमचंद शामियाना हाउस का बेगार नहीं था

बारहवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं मर्दाना कविता लिखता था

तेहरवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं मर्दाना आलोचना लिखता था

चौदहवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं पांच फुट आठ इंच का था

पन्द्रहवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं शहर के लेखकों को उनका कद बताता था

सोलहवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं साहित्य का राजा बेटा नहीं था

सत्रहवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं मंच माइक माला का विरोधी था

अट्ठारहवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं इनाम लेने-देने वालों को गालियां देता था

उन्नीसवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं हर बात में बीस क्यों था

बीसवें को
मैं इसलिए पसंद नहीं था
कि मैं उसकी तरह खबीस नहीं था

कई को
मैं इसलिए पसंद नहीं था कि गणेश पाण्डेय था
आशादेवी नहीं था

उन सबने पहले मुझे
बारी-बारी से ब्राह्मण नहीं अछूत कहा
और उसके बाद सर्वसम्मत से शहर बदर कर दिया

बहुत लंबा वक्त लगा दोस्तो
तब कहीं जाकर यह नाचीज शहर बदर हुआ
फिर भी अभी हूं लच्छीपुर खास में हूं।




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