आ
-गणेश पाण्डेय
आ मेरे रकीब
कि आ दिल के मेरे करीब थोड़ा और
जी भर के वार कर तुझे शम्शीर दे दूँ आ
आ कि तन्हा आ के मुझे कर ले गिरिफ्तार
आ तुझे जंजीर दे दूँ
आ कि थक गये कंधे नफरत लिये-लिये
तुझे प्यार दे दूँ आ
आ न डर
आ मेरे दुश्मन
कि आ दिल के मेरे करीब थोड़ा और
आ तुझे कश्मीर दे दूँ
आ।
(‘जल में’ से)
आप की टिप्पणी के बाद कविता भी पढ़ी । साफ़ और सम्प्रेषणीय कविता है जो पाठकों तक पहुँचती है या पहुँचेगी । आप को बधाई देता हूँ कि आप कविता की सम्प्रेषणीयता के प्रति सचेत हैं ।
जवाब देंहटाएं