- गणेश पाण्डेय
मेरी सीट
ओ मेरी सीट
कहां है मेरी सीट
उचक-उचक कर ढ़ूढते हैं
इतने सारे बच्चे एक साथ
हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा के पहले दिन
नोटिस बोर्ड पर अपनी सीट का पता
मिलते हैं अन्दर घुसते ही कमरे में
एक तुनकमिजाज और कड़कआवाज
अजीब तरह के मास्टर जी
उसपर एक ढ़िलपुक मेज
और आगे-पीछे होती कुर्सी
और
उसके बाद मिलते हैं
परचे के जंगल में कुछ खरहे जैसे प्रश्न
कुछ होते हैं चीते की तरह आक्रामक
और कुछ हाथी जैसे भारी-भरकम
एक तुनकमिजाज और कड़कआवाज
अजीब तरह के मास्टर जी
उसपर एक ढ़िलपुक मेज
और आगे-पीछे होती कुर्सी
और
उसके बाद मिलते हैं
परचे के जंगल में कुछ खरहे जैसे प्रश्न
कुछ होते हैं चीते की तरह आक्रामक
और कुछ हाथी जैसे भारी-भरकम
जिसके उत्तर में
निकालकर रख देना पड़ता है
एक पिता का कांपता हुआ कलेजा
और एक मां का आसभरा
और धड़कता हुआ दिल
निकालकर रख देना पड़ता है
एक पिता का कांपता हुआ कलेजा
और एक मां का आसभरा
और धड़कता हुआ दिल
देखो तो परचे के आगे-पीछे
पंक्तियों के बीच में लुका-छिपी करता है
एक मासूम सवाल-
कैसे करता है करतब
यह सब इतना कोई किशोर
पहली दफा
कोई बताए तो सौ में दो सौ पाए !
पंक्तियों के बीच में लुका-छिपी करता है
एक मासूम सवाल-
कैसे करता है करतब
यह सब इतना कोई किशोर
पहली दफा
कोई बताए तो सौ में दो सौ पाए !
ले लेखनी मैं कर रहा हूँ श्री परीक्षकाय नमः ,
जवाब देंहटाएंविद्यार्थी जन समुदाय के अल्लाह व भगवन नमः |
चश्मा शुशोभित नयन वाले बार बार प्रणाम है,
इस्लाम वाले हो अगर सत बार तुम्हे सलाम है
हैं आप परदे में बहुत खोजा न पाया कुछ पता
मै डाकखाने रेलवे में भी बहुत था ताकता |
अब आपकी स्तोत्र द्वारा वंदना हूँ कर रहा ,
मै क्या सभी जग जानता है आपकी महिमा महा|
जब लाल रंग वाली कलम को बैठते हैं आप ले,
और कापियों पर दौड़ती जिस भांति कुत्ते बावले|
विद्यार्थी जन समुदाय का कटता गला एस भांति है,
मानो यहाँ पर आ गई फिर फ़्रांस वाली क्रांति है|
जब तक न हों हम पास है जग में हमारा कुछ नहीं,
कोई नहीं है पूछता अपना सहारा कुछ नहीं |
गर ब्याह को कोई पूछता कक्षा कौन तुम पास हो,
कोई नहीं है पूछता ब्राम्हण हो की रैदास हो|
है डालडे खा यह बनी कोमल कली सी हड्डियाँ ,
इससे न थी मजनू महोदय की मुलायम पसलियाँ|
ऐसा न पाकस्थ्ली के मीन में यह जा गले,
मत दीजिये अवसर की पहिया रेल का इस पर चले|
हूँ साठ-पैंतालिस नंबर मांगता भगवन नहीं ,
मिल जाय तैंतीस मार्क्स, आगे देख लूँगा फिर कभी|
दे आप जितने अंक उतनी आपकी संतान हो,
और फिल्म के स्टार जैसा आपका सम्मान हो|
कवि की लेखनी से कोई विषय नहीं बचा ।
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