शुक्रवार, 12 मई 2023

तीस कविताएँ

- गणेश पाण्डेय

सपने में पीएम
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सपने में देखा लोकतंत्र जनता के कंधों पर नहीं
माफ़ियाओं के बाहुबल पर टिका हुआ है मैं इस
डर से किसी बलात्कारी के खि़लाफ़ कड़ी कार्रवाई 
नहीं कर पा रहा हूँ कि चार सीटें कम पड़ जाएंगी
और मैं पचासवीं बार पीएम नहीं बन पाऊँगा
लानत है मुझ गणेश पाण्डेय पर मैं अपने ही मुँह पर 
पचास बार थूकता हूँ तुम हिन्दी में ही रहते गधे
सौ पुरस्कार लेते कोई तुम पर कभी नहीं थूकता
क्या ज़रूरत थी तुम्हें देश का प्रधानमंत्री बनने की
हिन्दी साहित्य सम्मेलन का नहीं बन पा रहे थे!


नींद खुल गयी
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सपने में मैंने ख़ुद को 
एक हिन्दू माफ़िया के रूप में पाया
कई हिन्दू लड़कियों के साथ बहुत बुरा किया 
हिन्दुओं का क़त्ल और अपहरण कराया
पचास हज़ार करोड़ से अधिक की सम्पत्ति बनायी
कुछ दान दिए कुछ ग़रीबों की शादी करायी
मदद करने से सुल्ताना डाकू जैसी ख्याति पायी
लेकिन किसी ने भी मुझे डाकू वग़ैरा नहीं कहा
माननीय सांसद जी माननीय विधायक जी कहा 
सहसा ज़िन्दाबाद के नारों के बीच नींद खुल गयी।


सपने में पुलिस 
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ये लो सपने में पुलिस भी आ गयी वही वाली 
कोरोना के दिनों की देवदूत जैसी छवि वाली
बड़े-बड़े माफ़ियों को यूँ मिट्टी में मिलाने वाली
ये क्या वर्दी तो वही थी चेहरा काला क्यों था
लेकिन उसके पंजे में माफ़िया की गर्दन नहीं  
जंतर-मंतर पर धरनारत बेटियों के बाल थे
भारतमाता जैसी सुंदर इन बेटियों की आँख में
ओलंपिक पदक की चमक नहीं आँसू ही आँसू थे
पुलिस इनके आँसू नहीं पोछ रही थी किसी ने
उसकी ममता का अपहरण कर लिया था।


मुर्गे पर कविता
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सपने में पुलिस मुझे खींचकर थाने ले गयी
सिपाही ने फिर नायब ने फिर थानेदार ने पूछा
तूने गृहमंत्रालय की अनुमति के बिना कविता 
कैसे लिखी किसके कहने पर लिखी आखि़र
कौन-सी पार्टी का बंदा है सरकार के खि़लाफ़
कविता लिखना तेरा धंधा है तू कबी ही तो है
कि सुप्रीम कोर्ट से बड्डी कोई चीज़ है बता नहीं 
तो अभी तुझे मुर्गा बनाता हूँ कुकड़ू-कू कराता हूँ
मुर्गे पर कविता लिखवाता हूँ।


असली सरकार 
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सपने में एक सरकार क्रीम-पावडर लगाकर 
बनी-ठनी घूमती दिखी तो आखि़र पूछ ही बैठा
इतने साल से सरकारे हैं रोज़गार दिला पायीं 
सबके जान-माल की हिफाज़त क्या कर पायीं
बच्चियों और महिलाओं की इज़्ज़त बचा पायीं
इस देश को सोने की चिड़िया बनाना तो छोड़ो
न्याय की नन्ही चिड़िया की जान क्या बचा पायीं
ये कौन लोग हैं जो सरकार का चीरहरण करते हैं
सरकारें चुपाई मारकर बैठी रहती हैं यही लोग 
असली सरकार हैं?


सपने में न्याय 
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सपने में न्यायाधीश मिले 
श्रीमन् कहा जाता है कि आप सर्वोच्च हैं
आपका कहा पत्थर की लकीर है अकाट्य है
अमिट है अजर है अमर है देववाणी है
आपका कार्यालय न्याय का मंदिर है जहाँ
निर्बल और डाकू सब सिर झुकाते हैं
फिर आपके होने के बावजूद देश में अपराध 
और अत्याचार कम क्यों नहीं हो रहा हैं
चमत्कार यह नहीं कि यह सब हो रहा है बल्कि 
यह कि आप में हमारा भरोसा आज भी है।


सपने में अरे भाई मिले
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सपने में मुझे प्रलेसी जलेसी जसमी मिले
कोई मुझे मेला घुमाने नहीं ले जा रहा था
कोई मेरी कमर में हाथ तक नहीं डाल रहा था
कोई मेरी नथ तक नहीं उतार रहा था सब मुझे
अंग्रेजी में हिन्दी बोलने वाली गोरी मेम नहीं
हिन्दी कविता की कुरूप फूहड़ मुँहफट बदबूदार 
कुमारी गणेश पाण्डेय समझ रहे थे अरे भाई 
सच ही तो बोल रहा था कविता में 
झूठ बोलने के लिए तो पूरी दुनिया पड़ी थी।


सपने में शेषन मिले
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सपने में टी एन शेषन मिले
मुझे बहुत परेशान हाल और ठगा-सा जान पूछा
क्या हुआ कवि जी चेहरा क्यों उतरा हुआ है
मैंने कहा भाई आज मतदान केंद्र से लौटा हूँ
पिछले कई सालों की तरह आज भी मैं न किसी
प्रत्याशी का नाम पढ़ पा रहा था न चुनाव-चिह्न 
पहचान पा रहा था सब गड्डमड्ड हो जा रहा था
क्या समझूँ मेरी नज़र कमज़ोर हो गयी है 
या भारत का लोकतंत्र धुँधला हो गया है।


सपने में इनामचंद 
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सपने में कविवर पंडित इनामचंद मेरे घर आये
बोले पंडित ईमानचंद सुना है आजकल बीमार हो
सपने में भी देश और कविता की चिंता करते हो
मुझे इतने इनाम मिलने के बाद अब न देश की
न साहित्य की चिंता है अगर कोई चिंता है भी
तो यह कि अमर होने के बाद मैं स्वर्ग में रहूँगा
और भक्तिकाल के अपुरस्कृत कवि बेचारे नर्क में
मैं स्वस्थ हो चुका था डपटा अबे इनामचंदिए 
साहित्य और अकादमी की तो मार ही चुका है 
देश की भी मारेगा क्या।


सपने में हिन्दू
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सपने में एक हिन्दू मिला बोला ओय गणेशिये
एक हिन्दू होकर हिन्दू की बुराई करना छोड़ दे
मैंने कहा तू हिन्दू स्त्री से बलात्कार करना छोड़ दे
हिन्दू से दहेज लेना छोड़ दे ज़मीन हड़पना छोड़ दे
हिन्दू होकर हिन्दू की जान लेना तो छोड़ दे
मैंने कहा देख मैं हिन्दू और मुसलमान दोनों की
बुराई करता हूँ किसी एक की नहीं तू केवल 
मुसलमान की बुराई करना छोड़ दे करना है
तो सभी माफ़ियाओं की बुराई कर।


सपने में भगवान
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मैंने पूछा कि आपके रामराज्य में यही होता है
कि लड़कियाँ पटरी पर धरना देती हैं तो उन्हें
पुलिस मारती-पीटती है गाली देती है धमकाती है
उनसे उम्मीद की जाती है कि आपके दल के
बाहुबलियों से लड़कियाँ दबकर रहें अपनी इज़्ज़त 
लुटने दें और उफ़ तक न करें क्योंकि बाहुबली
आपकी सरकार उलट-पलट देगा फिर आप
काहे के भगवान इससे तो अच्छा था कि आप
किसी देश के पीएम बन जाते। 


सपने में भविष्य 
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सपने में सो रहा था थोड़ी देर के लिए जाग गया
किसी बेटी ने पूछा तुम सचमुच के पीएम होते 
तुम्हारे परिवार की बेटी के साथ बुरा हुआ होता
तो बुरा करने वाले बड़े से बड़े महाबली के साथ
क्या करते तब भी गुणा-भाग करते मुँह सिल लेते 
आँख मूँद लेते ध्यानमग्न होकर योग करने लगते
विश्व रंगमंच पर अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे होते 
और मैं फिर सपने में चला गया जहाँ मेरे पास कोई 
प्रश्न नहीं था अपने उज्ज्वल राजनीतिक भविष्य का 
एक मानचित्र था उसे देख रहा था।


बेटियों के आँसू
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सपने में कोई लड़का अपनी बहनों के लिए
माइक के सामने रो रहा है-राजनीति के पहलवानो 
जंतर-मंतर पर धरने पर बैठी बेटियों की इज़्ज़त
सत्तामद के क्रूर बुलडोज़र से मत रौंदो बुरा होगा
उनमें तुम्हारी भी बेटियाँ हो सकती थीं बशर्तें वे
पहरे में नहीं रहतीं पहलवान होतीं लड़ रही होतीं
लड़कियों की इज़्ज़त का सौदा मत करो मत करो
उनसे राजनीति का यह गंदा खेल मत खेलो
देश की बेटियों के आँसू तुम्हारे खेल को
आज नहीं तो कल हार में बदल देंगे।


देश को जिताने वाली लड़कियाँ
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सपने में एक क्रूर सत्ता थी
जिसने देश को जिताने वाली लड़कियों को हराने 
और राजनीति के दाग़ी खिलाड़ी को जिताने का
बीड़ा उठाया था कोई उसे हरा नहीं सकता था
न पुलिस न न्यायालय न कोई और अलबत्ता
लड़कियाँ हार कर भी हार नहीं मान रही थीं
क्रूर सत्ता बौराई हुई थी उनका खाना-पीना-सोना
साँसे तक हराम कर देना चाहती थी फिर भी
सत्ता जितनी क्रूर थी लड़कियाँ उससे कहीं
ज़्यादा मज़बूत थीं क्योंकि देश उनके साथ था।


सपने में सरस्वती
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सपने में माँ सरस्वती आयीं
पहले कान उमेठीं फिर ख़ूब कसके डाँटीं
रे मूर्ख तू कविता लिखता है तो कविता में
देश-दुनिया की हर बेटी तेरी बेटी होती है
दो दिन के लिए पीएम क्या हुआ दूसरों की
बेटियों को अपनी बेटियाँ नहीं समझता है 
देश भर के गुंडे-बदमाशों को सगा समझता है
तुझे शाप देती हूँ सात जन्मों तक पीएम रहेगा
लेकिन परिवार का सुख नहीं पाएगा।

सपने में भी नहीं
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सपने में मैं सिर्फ़ सपना ही नहीं देखता
सोचता भी हूँ आँख देखने का काम करती है
और दिमाग़ अपना काम करता है जैसे
सपने में पीएम बना हुआ दिख रहा हूँ चाहे हूँ नहीं
लेकिन दिमाग़ चाह रहा है कि इस बेवक़ूफ़ी से
बाहर निकलूँ कविता की अपनी दुनिया में 
एक सच्चे कवि के लिए राजनीति परदेस है
जिसकी क्रूरता के बारे में कड़ी टिप्पणी कर सकता हूँ
लेकिन जब साहित्य का सोना-चाँदी नहीं ले सकता
तो उस क्रूर जीवन को कैसे जी सकता हूँ।


सपने में ओलंपिक मेडल 
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सपने में बेटियाँ रोये जा रही थीं ताऊ तूने
हमें इस खेल में क्यों डाला जहाँ भेड़िए रहते हैं
आईपीएस बनाते तो एनकाउंटर कर सकती थीं
ओलंपिक मेडल का क्या करें एक दिन चमका 
पीएम-सीएम ने एक दिन पूछा फिर नहीं पूछा
सोना-चाँदी लाने वाली बेटियाँ सड़क पर क्यों हैं
बुझ गये मेडल को हाथ में लेकर रोये जा रही थीं
पीएम से कह दे ताऊ ऐसे मेडल से क्या फ़ायदा
कोई बाहुबली किसी भी मेडल को क़ानून को
बेटियों की इज़्ज़त को कुचल सकता है।


सपने में बाबा
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सपने में जंतर-मंतर पर
चश्मावाले एक बाबा आये लाठी लिए
बोले लड़कियो डटी रहो क्रूर सत्ता से लड़ना ही
तुम्हारी सबसे बड़ी जीत है अहिंसा की जीत है
तुम्हारे साहस की जीत है सबकी नैतिक जीत है
देश की जीत है आधी आबादी की पूरी जीत है
किसी क्रूर सत्ता के सामने खड़ा होने की हिम्मत 
न करना उससे न लड़ना सबसे बड़ी हार है।


सपने में हरी पत्तियाँ
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सपने में एक नीम के पेड़ के नीचे सुस्ता रहा था
छाया की सीमा से सटे बाहर एक वनस्पति दिखी
उसमें नन्ही कोमल और हरी चार पत्तियाँ दिखीं
उनके ऊपर प्रचंड सूर्य का अति भीषण ताप था
मैंने कहा बेटियो बूढ़ा हूँ फिर भी थोड़ी देर तुम्हें
अपनी दोनों हथेलियाँ बढ़ाकर पूरा ढाँप सकता हूँ
पत्तियों ने शीश नवाकर आभार जताते हुए कहा
ठीक है ताऊ हम कुम्हलाएंगी नहीं आशीष का छाता
हमें कभी हमारे संघर्ष से डिगने नहीं देगा सामने
उत्पाती सूर्य हो बलात्कारी हो चाहे क्रूर सत्ता हो।


सपने में कविता
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सपने में जंतर-मंतर पर जब अप्रैल-मई में देश की
पहलवान बेटियाँ चालीस डिग्री में धरना दे रहीं थीं
हिंदी के कुछ कवि फ़रवरी पर कविता लिख रहे थे
संपादक अपने समय की गर्म हवाओं की कविता नहीं 
उतान हो-होकर फ़रवरी की कविता छापे जा रहे थे
हिन्दी के आलोचकों की मति इतनी मारी गयी थी
कि वे ख़ुद को आचार्य शुक्ल तो समझ ही रहे थे
अप्रैल-मई को फ़रवरी और आज की हिन्दी कविता को 
अंग्रेज़ी का उपनिवेश समझ रहे थे
पाठक तो ख़ैर कुछ समझ ही नहीं रहे थे।


सपने में हे राम 
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सपने में जब हे राम आये तो मैंने उनसे कहा 
धरती पर कभी आपके नाम पर लोकतंत्र को 
नया किया गया तो कभी संसद की इमारत 
बदलकर तो कभी धरनारत बेटियों को
घसीट-घसीटकर बसों में ठूँस ठूँसकर 
उनके तम्बू-कनात उखाड़कर 
इस तरह एक अच्छे-ख़ासे लोकतंत्र को 
नया करने के नाम पर दुनिया में बार-बार 
ज़लील किया गया।


कृपालु सरकार 
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सपने भगवान आये तो उन्होंने कहा
तुम्हारे देश में एक नयी इमारत बनायी गयी है
जिसे लोकतंत्र का ताजमहल कह सकते हो
फ़र्क़ इतना है कि इस ताजमहल को
देश से दगा करने वालों माफ़ियाओं और
स्त्रियों के साथ यौन-दुर्व्यवहार करने वालों के
लिए ख़ासतौर से बनाया गया है निश्चय ही 
बहुत कृपालु और न्यायप्रिय सरकार होगी।


सपने में शाहजहाँ
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सपने में ये लो मैं शाहजहाँ बन गया था
अपनी बेग़म सियासत जान के लिए मुल्क में
दिनरात जहाज से दौड़ता ही रहता था 
मुल्क की बेहतरी के लिए क्या काम करता था
दो रुपये का पेट्रोल दो हज़ार में बेचता था
अपने दरबार में छँटे हुए बदकार माफियाओं को
ख़ासतौर से रखता था जिससे लगे कि किसी
नयी सदी के बादशाह सलामत का दरबार है।


विचित्र देश 
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सपने में एक दिन विचित्र देश में चला गया
वहाँ कोई देवेन्द्र कुमार नाम के सच्चे कवि थे
बेचारे किसी को प्रोफ़ेसर नहीं बना सकते थे 
सो उनका आलोचक प्रोफ़ेसर बनाने वाले
फिसड्डी कवि पर पोथे पर पोथा लिखने लगा
बहुत ख़राब जगह थी नाम-इनाम की जल्दी में
सारे लेखक नंग-धड़ंग मंच पर चढ़ जाते थे
बेटियों के साथ दुर्व्यवहार होता था कविगण 
ग़ुस्सा नहीं होते थे जुलूस नहीं निकालते थे
कवयित्रियाँ बड़े मन से स्वेटर बुनतीं रहतीं थीं।


काग़ज़ की तलवार 
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सपने में कबीर आये कोंचकर कहा ओये
तू सपने में भी कैसे जागता रहता है और 
बाक़ी कवि जागते हुए सो कैसे रहे हैं मैंने कहा
जी इसमें नयी बात नहीं वे अक्सर यही करते हैं
नयी बात यह कि वे राष्ट्रवाद के पत्थर को
पुरस्कारवाद की काग़ज़ की तलवार से
काटना चाह रहे हैं कबीर ने माथा पकड़ लिया
बोले अहमक़ो क्या ग़ज़ब करते हो काश 
तुम सब सही रास्ते से पैदा हुए होते।


सपने में नया ताजमहल 
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आगे सपने में देखा कि बेग़म सियासत जान 
मरणासन्न थीं और मैं उनके लिए नये ज़माने का
ताजमहल बनवाना चाहता था बनवाया भी ख़ूब 
और हैरानी की बात यह कि मैंने कारीगरों के
हाथ नहीं कटवाये यह मेरी आखिरी भूल थी
नया ताजमहल पहले से शानदार था फ़र्क़ यह 
कि वहाँ सब जा सकते थे यहाँ सिर्फ़ बदकार
साहिर लुधियानवी जैसे तमाम लोग हरग़िज 
न जा सकते थे और न यह कह सकते थे कि 
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़।


चमड़ा
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सपने में बहुत उदास था
राजनीति और साहित्य के भविष्य को लेकर 
बहुत निराश था सुबक-सुबककर रो रहा था
देश में बेटियों के साथ कुछ भी हो जा रहा था
नये-नये बाबा हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए 
जन्म लेते ही जा रहे थे और हिन्दी के लेखक 
ससुरे पुरस्कार का चमड़ा खा रहे थे।


पुरस्कारवालियाँ
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सपने में मैं हिन्दी की पुरस्कारवालियों को 
जगह-जगह कोनें-अतरे में इस-उस अख़बार में
ढूँढ रहा था कि पहलवान बेटियों के पक्ष में
उनका कोई बयान दिखे पुरस्कार लौटाती दिखें
ऐसा कुछ नहीं दिखा वे निश्चय ही किसी जगह 
बैठकर अतिगंभीर स्त्री-विमर्श में तल्लीन होंगी
देश में क्या हो रहा है उन्हें पता ही नहीं होगा।


ख़ूब लड़ीं मर्दानी
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सपने में देखा कि वे लड़कियाँ
जो लड़ाई में सबसे आगे थीं लोहे की देवी थीं
भले वह प्रधानमंत्री-गृहमंत्री की बेटी नहीं थीं
लेकिन देश की बेटी वही थीं वही थीं वही थीं
देश बेचारा एक कोने में खड़ा सुबक रहा था
लोकतंत्र और क़ानून को कुछ हत्यारों ने मुर्गा 
बनाया हुआ था आधा जिबह भी हो चुका था
जितना बड़ा राजनेता उतना ही मुँह काला था
लड़कियाँ डरी नहीं अंत तक ख़ूब लड़ीं मर्दानी
दुष्कर्मी की छाती को चीर डालना चाहती थीं।


तानाशाही
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सपने में लोहिया आये थे ख़फ़ा हो रहे थे
बोले ओह लोकतंत्र का क्या से क्या हो गया है
मैंने कहा जी-जी जापानी बुख़ार पहले हुआ था
अब रोना इस बात का है कि कोरोना हो गया है
सरकार कहती है कि हमारा सांसद आग मूतेगा
जनता की बेटी की छाती छुएगा पेट छुएगा और 
बेटियाँ धरना-प्रदर्शन कुछ नहीं कर सकती हैं 
सरकार कहती है अंधे क़ानून पर भरोसा करो
सत्तानुकूलित पुलिस पर भरोसा करो मुझे
रोता देख वे भी तानाशाही है कहकर रोने लगे।











8 टिप्‍पणियां:

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  2. विद्रूप समय की विडंबनाओं को उजागर करती बहुत धारदार और मारक कविताएं हैं। एक आंतरिक प्रतिरोधी लय और सिलसिला इन्हें एक-दूसरे से जोड़कर और भी असरदार बनाते हैं।

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  3. ये अद्भुत कविताएं हैं सभी! इतने सपने, इतनी कविताएं! यह बेजोड़ शृंखला है, इस अर्थ में भी कि ये सभी स्वतंत्र कविताएं होते हुए भी आपस में गहरी गुंथी हैं, सरोकारों की दृष्टि से. ये कविताएं अपने क्रूर, अनैतिक और बेईमान समकाल का ईमानदारी और निर्भयता के साथ साक्ष्य ही प्रस्तुत नहीं करती हैं,बल्कि उस पर गहरी चोट भी करती हैं. यह एक कवि का बेहद महत्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक हस्तक्षेप है, जो इस बुरे वक़्त में एकदम विरल भी है!
    आपने तालाब में कोई कंकड़-वंकड़ ही नहीं फैंका है, कई बड़े-बड़े पत्थर फैंक दिए हैं!
    सपनों पर केंद्रित इस बेजोड़ शृंखला के लिए आपको मुबारकबाद, दिल से!
    आप स्वस्थ-प्रसन्न रहें, ये शुभकामनाएं!
    - मोहन श्रोत्रिय

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  4. खटकने, कविता की कमी आदि की बात तो बाद में हो सकती , पहले तो यही कि ये एकदम नए तेवर की कविताएं हैं । राजनीतिक पार्टीवाद से प्रेरित रोजमर्रा की ढेर सी बेअसर पोस्टों के बीच यह एक ईमानदार, अनुभव गम्य, भरा-पूरा राजनीतिक स्टेटमेंट है जो सत्ता के एक-एक तंत्र मंत्र को खोलता है और हवा-हवाई नहीं ठोस जमीन पर खड़े होकर यथार्थ को स्वप्न में और स्वप्न को हकीकत में बदल पेश करता है । यह संकीर्ण पार्टीबाज राजनीतिक मंतव्यों की भीड़ में एक कवि का वक्तव्य है । इस नए पथ पर बढ़ने के लिए शुभकामनाएं ।
    - कर्ण सिंह चौहान

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  5. जबरदस्त और मारक क्षमता से भरपूर कविताएं ।

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  6. बहुत जबरदस्त, शानदार

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  7. काग़ज़ की तलवार
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    सपने में कबीर आये कोंचकर कहा ओये
    तू सपने में भी कैसे जागता रहता है और
    बाक़ी कवि जागते हुए सो कैसे रहे हैं मैंने कहा
    जी इसमें नयी बात नहीं वे अक्सर यही करते हैं
    नयी बात यह कि वे राष्ट्रवाद के पत्थर को
    पुरस्कारवाद की काग़ज़ की तलवार से
    काटना चाह रहे हैं कबीर ने माथा पकड़ लिया
    बोले अहमक़ो क्या ग़ज़ब करते हो काश
    तुम सब सही रास्ते से पैदा हुए होते।

    बहुत बारीक कविता, जबरदस्त।

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