बुधवार, 18 नवंबर 2020

दीया

- गणेश पाण्डेय

पहला दीया
उनके लिए जो देख नहीं पाते
दूसरा उनके लिए जो दीया को दीया कह नहीं पाते
तीसरा उनके लिए जो दीया की कोई बात सुन नहीं पाते

एक दीया हिंदी के उन भयभीत दोस्तों के नाम 
जिन्होंने मुझे चींटी की मुंडी के बराबर दोस्ती के लायक़ नहीं समझा

हिंदी के उन दुश्मनों के नाम भी कुछ दीये ठीक उनकी अक़्ल के पिछवाड़े
जिन्होंने हमेशा चूहे की पीठ पर बैठकर शेर की पूँछ मरोड़ने की ज़िद की

ये दीये उन तमाम अदेख दोस्तों की नम आँखों के नाम 
इस वर्ष हारी-बीमारी और हादसों में छोड़ गये जिनके प्रिय और बुज़ुर्गवार
चाहे मारे गये मोर्चे पर जिनके बेटे
पति और पिता और गाँव के गौरव

पृथ्वी की समूची मिट्टी और आँसुओं से बने ये दीये
क्यों नहीं मिटा पाते हैं, सदियों से बढ़ता ही जाता अँधेरे का डर

एक थरथराती हुई स्त्री के जीवन में 
क्यों नहीं ला पाते हैं जरा-सा रोशनी
ये दीये क्यों नहीं जला पाते हैं 
हत्यारों का मुँह उनके हाथ 
और लपलपाती हुई जीभ

ये दीये उम्मीद के सही, हार के नहीं
ये दीये बारूद के न सही, प्यार के सही
ये दीये क्रांति के न सही, प्रतीक सही
दोस्तो फिर भी जलाता रहूँगा 
ऐसे ही ये दीये कविता के दोस्त सही
इनकी लौ में है पलभर में 
हमारी आत्मा को जगाने की शक्ति 

देखो अरण्य के समीप 
ग़रीब-गुरबा की बस्ती में जलते दीये
कैसे काटता है एक नौजवान टाँगे से जलौनी लकड़ी
कैसे इनकी रोशनी में डालती है एक माँ बच्चे के मुख में कौर

कैसे कनखियों से देखती है एक युवा स्त्री 
अपने पति के शरीर की मछलियों को उसकी वज्र जैसी छाती

पैसे की मार से 
दुखी लोगों के लिए कुछ दीये
उस बाप की ड्योढ़ी पर एक दीया 
जिसे बेटियों की फीस की चिंता है

जलायें न जलायें 
चाहे बड़े शौक से भाड़ में जायें
उन आलोचकों के लिए भी कविता के छोटी जाति के कुम्हारों के बनाये कुछ दीये
जिनके घर मुफ़्त पहुँचायी गयी हैं गाड़ियों में भरकर बिजली की विदेशी झालरें

विश्वविद्यालयों, अकादमियों, संस्थानों, अख़बारों, पत्रिकाओं, प्रकाशकों 
और हिन्दी के बाक़ी दफ़्तरों में 
एक-एक दीया ज़बरदस्त

हिन्दी की उन्नति के नाम पर 
उसकी किडनी बेचकर मलाई काटने वाले 
हज़ारों हरामज़ादों के लिए भी

हिन्दी के जालसाज़ों के छल में 
फँसे हुए बच्चों के लिखने की मेज पर
जीवनभर जलने वाला कविता का 
यह दीया ख़ास

हिन्दी बोलने वाले 
विपन्न बच्चों के लिए उम्मीद का एक दीया
इस साल वे भी बने कलक्टर चाहे कमाएं दो पैसा

हिन्दी बोलने वाले बच्चे पैदा करने वाली माँ के बिना चप्पल के पैरों के पास
मेरी, तेरी, उसकी, सबकी गुज़र गयी 
माँ की ज़िदा याद के पैरों के पास
चाँदी की पायल की जगह 
एक ग़रीब कवि की ओर से 
मिट्टी का यह दीया।


      




   


                                                                   - गणेश पाण्डेय

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