-गणेश पाण्डेय
ओ गायिका !
क्यों गाती हो
इतना अच्छा
कि सुनने वाला
आना चाहे
तुम्हारे बेहद करीब
बस जाना चाहे
तुम्हारे देश में
और हो जाना चाहे
मुसलमान
ओ गायिका !
तुम्हीं क्यों नहीं
आ जाना चाहती
अपने चाहने वाले के पास
कह क्यों नहीं देती
अपने जनरल से
कोई बुलाता है तुम्हें
देने के लिए
अपने दिल का हिन्दुस्तान
कैसा है तुम्हारा जनरल
मचलता है जिसका दिल
जमीन के एक टुकड़े लिए
कह दो
अपने जनरल से
तुम्हारे कंठ में वास है
एक देवी का
जिसके पास है
धरती का नायाब जादू
न कोई गोला-बारूद
न कोई छल-बल
न कोई घृणा
बिना किसी खून-खराबे के
जब चाहे जीत ले दुनिया
कश्मीर में क्या रखा है
क्या रखा है
ऐसे जिद्दी जनरल में
जो बंदूक को
खुदा समझता है
और अपनी वर्दी को
ईश्वर की पोशाक
उसे छोड़ कर
आ क्यों नहीं जाती
धरती के इस स्वर्ग में
देखो तो
कितना मचलता है
तुम्हें चाहने वाले का दिल
तुम्हारी एक आवाज पर
कैसे निकल पड़ता है
हथेली पर लेकर
अपना दिल
आओ
और लो संभालो
अपना हिन्दुस्तान।
(‘‘परिणीता’’ से)
ओ गायिका !
क्यों गाती हो
इतना अच्छा
कि सुनने वाला
आना चाहे
तुम्हारे बेहद करीब
बस जाना चाहे
तुम्हारे देश में
और हो जाना चाहे
मुसलमान
ओ गायिका !
तुम्हीं क्यों नहीं
आ जाना चाहती
अपने चाहने वाले के पास
कह क्यों नहीं देती
अपने जनरल से
कोई बुलाता है तुम्हें
देने के लिए
अपने दिल का हिन्दुस्तान
कैसा है तुम्हारा जनरल
मचलता है जिसका दिल
जमीन के एक टुकड़े लिए
कह दो
अपने जनरल से
तुम्हारे कंठ में वास है
एक देवी का
जिसके पास है
धरती का नायाब जादू
न कोई गोला-बारूद
न कोई छल-बल
न कोई घृणा
बिना किसी खून-खराबे के
जब चाहे जीत ले दुनिया
कश्मीर में क्या रखा है
क्या रखा है
ऐसे जिद्दी जनरल में
जो बंदूक को
खुदा समझता है
और अपनी वर्दी को
ईश्वर की पोशाक
उसे छोड़ कर
आ क्यों नहीं जाती
धरती के इस स्वर्ग में
देखो तो
कितना मचलता है
तुम्हें चाहने वाले का दिल
तुम्हारी एक आवाज पर
कैसे निकल पड़ता है
हथेली पर लेकर
अपना दिल
आओ
और लो संभालो
अपना हिन्दुस्तान।
(‘‘परिणीता’’ से)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें