- गणेश पाण्डेय
एक वीर ने उन्हें तब घूरा
जब वे सच की तरह कुछ बोल रहे थे ।
एक वीर ने उन्हें तब टोका
जब वे किसी की चमचम खाए जा रहे थे ।
एक वीर ने उन्हें तब फटकारा
जब वे किसी मोढ़े की परिक्रमा कर रहे थे ।
असल में
एक वीर ने दम कर रखा था
उनकी उस अक्षुण्ण नाक में
जिसे तख़्ते-ताउस की हर गंध
एक जैसी प्यारी थी ।
एक दिन वे एकजुट हुए
क्योंकि एकता का पुष्ट वैचारिक आधार उनके सामने था ।
पाठ्यक्रम समिति की उस बैठक में
लिया उन्होंने निर्णय
कि ‘सच्ची वीरता’ को
जीवन से निकाल दिया जाय ।
सच्ची वीरता’ = अध्यापक पूर्ण सिंह का महत्त्वपूर्ण निबंध ।
( दूसरे संग्रह ‘जल में’ से )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें