शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

दोस्त सीरीज

- गणेश पाण्डेय

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दोस्त 1/
अच्छी कीमत
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जैसे
सबके पास होते हैं
मेरे पास भी कुछ दोस्त थे

मैं उन्हें खोना नहीं चाहता था
ये तो मेरे दुश्मन थे जिन्होंने
उन्हें चुटकी में खरीद लिया

ऐसा नहीं है
कि मेरे दोस्त बिकना नहीं चाहते थे
बस उन्हें अच्छी कीमत का इंतजार था।

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दोस्त 2/
बिकना
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सब
बिक जाते हैं

साथी दोस्त रिश्तेदार
कौन नहीं बिकता है आज
सब बिक जाते हैं

कोई बड़ा ओहदा हो
चाहे टेंट में खूब अशर्फियां
कौन नहीं बिक जाता है
सब बिक जाते हैं

माफ करें
मैं उन पागलों की बात नहीं करता
जो बिकने के लिए पैदा ही नहीं होते
फटीचर हैं कमबख्त

वर्ना कौन
बिकने के लिए पैदा नहीं होता
सब बिक जाते हैं।

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दोस्त 3/
पतंगबाज
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मेरे कुछ दोस्तों को
दिल्ली की हवा लग गयी है
वे कई साल उन्हीं हवाओं में रहे
कभी दाएं कभी बाएं डगमगाकर
संभाला है उन्होंने खुद को

उनके लिए साहित्य
शुद्ध शुभ-लाभ का जरिया है
नाम-इनाम की लंबी पतंग उड़ाना
उन्होंने उन्हीं हवाओं में सीखा है

दूसरे की पतंग काटना
और अपनी चढ़ाते चले जाना
अपनी तो अपनी
किसी मामूली उम्मीद में
दूसरे की पतंग दिनरात उड़ाना
यह सब उन्हें दिल्ली ने सिखाया है

दिल्ली की हवाओं ने उन्हें
एक मजबूत लेखक की जगह
शातिर पतंगबाज बना दिया है

आजकल
मेरे कुछ पतंगबाज दोस्त
अकादमी अध्यक्ष की
भैंस की सींग पर बैठकर
कुछ पीठ पर लेटकर
कुछ पूंछ पकड़कर
पतंग उड़ा रहे हैं।

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दोस्त 4/
कुछ दोस्त तो होने ही चाहिए
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एक आदमी के पास
कुछ दोस्त तो होने ही चाहिए
चाय पर साथ देने के लिए क्यों न हो

एक आदमी के पास
कुछ दोस्त तो होने ही चाहिए
कोई गम भूलने के लिए क्यों न हों

एक आदमी के पास
कुछ दोस्त तो होने ही चाहिए
किसी की बुराई करने के लिए क्यों न हों

एक आदमी के पास
कुछ दोस्त तो होने ही चाहिए
धोखा खाने के लिए ही क्यों न हों।

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दोस्त 5/
जब आप विद्रोह करते हैं
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जब आप 
साहित्य में विद्रोह करते हैं
तो अपने सभी ढिलपुक दोस्त
एक-एक करके खो देते हैं

ऐसे दोस्त
फोन पर भी कम मिलते हैं
करो तो बाथरूम चले जाते हैं
भूले-भटके मिल भी जाएं
तो खुलकर नहीं मिलते
जैसे मैला हो गया हो 
मन

ऐसे डरते हैं 
ऐसे दोस्त लोग डान से
जैसे उनके मोबाइल में 
जुबान के नीचे कान के अन्दर
बालों में बनियान के नीचे
छिपे हों असंख्य जासूस

कहीं दिख जाएं
सड़क पर औचक ऐसे दोस्त
तो साफ बचके निकल जाते हैं
जैसे उपग्रह से कोई देख न ले
और फैल न जाए हवाओं में
कोई बात।

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दोस्त 6/
बागी बनना खून में नहीं है
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आप कवि हैं
और किसी कवि से 
पक्की दोस्ती चाहते हैं
तो उससे खराब कविताएं लिखिए
खराब नहीं लिख सकते तो 
अच्छी कविताएं छिपाकर रखिए
छिपा नहीं सकते तो उसके 
कोप के लिए तैयार रहिए

किसी आलोचक से
दोस्ती चाहते हैं तो औसत लिखिए
कोई किताब उससे पूछे बिना
मत छपवाइए
एक डग भी उससे आगे मत बढ़ाइए
किताब छपवाइए तो ध्यान रहे
ब्लर्ब उसी से लिखवाइए
ताकि वह कह सके कि उसने
अमुक कवि को पैदा किया है

दोस्ती-फोस्ती कुछ नहीं चाहते
और बागी बनना खून में नहीं है
सिर्फ सिर छिपाने की जगह चाहिए
चाहे कविता पाठ और लोकार्पण
पुरस्कार वगैरह साहित्य का उद्देश्य है
तो प्रलेस जलेस जसम-फसम 
किसी में चुपके से शामिल हो जाइए।

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दोस्त 7/
दोस्ती में नुक्स
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दोस्ती करके देख ली
दोस्ती जीकर देख ली

दोस्ती में कच्चा-पक्का होता है
दुश्मनी में जो होता है पक्का होता है

दुश्मनी में लड़ना है तो लड़ना है
दुश्मनी में हमेशा चौकन्ना रहना होता है

दोस्ती में नुक्स यह है
बिना आंख मूंदे हो नहीं सकती है

थक गया हूं दोस्ती का बोझ ढोते-ढोते
छोड़कर चले जाएं मुझे मेरे ऐसे दोस्त

ऐसी दोस्ती से
हजार गुना अच्छी है दुश्मनी।





मंगलवार, 7 अगस्त 2018

भारत माता की बेटियां

- गणेश पाण्डेय

कुशीनगर में
बुद्ध चिरनिद्रा में थे
और पावा नगर में महावीर
उन्हें किसी ने जगाकर बताया नहीं
कि मुजफ्फरपुर से देवरिया तक
और देवरिया से न जाने कहां-कहां तक
पहुंच गये हैं स्त्री-अस्मिता-भक्षी

बुद्ध को 
किसी ने नहीं बताया
कि ढ़ाई हजार साल बाद
गणतंत्र किन हाथों में आ गया है

जागेंगे बुद्ध
जागेंगे महावीर
तो क्या पूछेंगे नहीं 
कि यह कैसी आजादी है
आखिर यह कैसा विकास है
क्या यही है कल्याणकारी राज्य

सभ्यता 
और मनुष्यता में
छिड़ गयी है खूनी जंग
संस्कृति के निकल आए हैं नुकीले दांत
राजनीति के नाखून बहुत लंबे हो गये हैं
कांक्रीट और लोहे से बनी बस्ती
और हिंस्र पशुओं के जंगल में 
कम फर्क रह गया है

हर जगह 
बेखौफ विचरण कर रहा है
बूढ़े और जवान गिद्धों का झुंड
एक-एक को चुन-चुन कर खा रहा है
बालिका गृह की नवदेवियों की देह
और उनकी जीवित आत्मा

ये बेटियां
क्या भारत माता की बेटियां नहीं हैं
कोई दुर्गा है कोई लक्ष्मी कोई सरस्वती
कोई नूर कोई मरियम कोई मलका
अब और क्या प्रमाण चाहिए
इनके वुजूद का
आखिर सरकारें क्यों मान लेती हैं
इन्हें जीते जी मुर्दा 
कोई भी आए
नोच खाए

ऐसी
सरकारें 
जो बेटियों की लाज नहीं बचा सकतीं
खुद लाज से मर क्यों नहीं जातीं।