सोमवार, 28 सितंबर 2020

खलनायक

- गणेश पाण्डेय

प्रिय छेदी
इस देश को तुम्हारे जैसे
खलनायकों की ज़रूरत है

हालाँकि यूपी के
सुल्ताना डाकू की कहानी में
काफ़ी कुछ झोल है
लेकिन तुम्हारी कहानी तो
जीती-जागती हक़ीक़त है
तुम कोई लुटेरे नहीं हो
कि लूट के माल से भलाई करो
पसीना बहाते हो नक़ली हीरो से
मार खाते हो फिर पैसा कमाते हो

तुम भी चाहते तो एक कानी-कौड़ी
ग़रीब-गुरबा और ज़रूरतमंद पर 
अपने ही मुल्क़ में 
सबसे परेशानहाल
लोगों पर ख़र्च नहीं करते
सदी का महाखलनायक बनकर
अपनी आरामगाह में मुँह छिपाकर
सो रहे होते अपनी रातों की नींद
और दिन का सुकून बर्बाद नहीं करते

मैं तुम्हारे बारे में
और कुछ नहीं जानता
सिवाय इसके कि फ़र्श से अर्श पर
पहुँचने की कहानी तुम्हारी है
इस कहानी में ख़ास बात यह 
कि एक खलनायक की देह में
किसी हातिमताई की रूह 
आ जाती है और खलनायक से 
नायकों जैसे काम कराती है

एक खलनायक की सख़्त देह में
एक-एक हिस्से से तड़प उठती है
अपने लोगों के लिए झुक जाती है
आँखें डबडब हो जाती हैं

हाथ आगे बढ़ जाते हैं
पैर उसी ओर चल पड़ते हैं
जिधर लोग सिर्फ़ अपने पैरों पर
खड़े हैं बैठे हैं बच्चों को लाद रखा है
पत्नी सटकर खड़ी है 
टूटी-फूटी चीज़ों की पोटली
पैरों के सुख-दुख पूछ रही है

प्रिय छेदी
छेदी सिंह तुमने शेर की तरह
छलांग लगाई है आसमान में
किसी फ़िल्मी चमत्कार की तरह
रेल के डिब्बों में बसों में जहाज से
अपने देशवासियों को भेज रहे हो
मुश्किलों की सबसे लंबी घड़ी में
अपने घर

छेदी मैं नहीं जानता
कि तुमने सबसे कमज़ोर और उपेक्षित
लोगों में किसे देखा भारतमाता को देखा
कि अपनी माता और पिता 
और बीवी-बच्चों को देखा
कुछ तो तुमने अलग देखा
जो तुम्हारे समुदाय के लोगों ने नहीं देखा
तुम भी चाहते तो प्रधानमंत्री कोष में
कुछ करोड़ डालकर चैन की नींद सोते
तुमने अपनी नींदें क्यों ख़राब कीं
अपने बच्चों का वक़्त और प्यार
दूसरों के बच्चों को क्यों दिया

छेदी तुम्हारा पर्दे का नाम है
हालाँकि जीवन में तुमने आसमान में
छेद करने जैसा बड़ा काम किया है
पर्दे से जो कमाया मज़बूर लोगों पर
लुटाया सुल्ताना डाकू की तरह
हातिमताई जैसा कारनामा किया

तुमने अपने देश 
और अपनी मिट्टी के कर्ज़ का
मूलधन ही नहीं सूद भी लौटाया
मैं नहीं जानता कि तुम्हारे नाम में
यह सूद क्यों लगा हुआ है 
और तुम्हारा नाम सोनू जैसा 
बहुत प्यारा और घरेलू क्यों है

मैं मुंबई में 
लंबे समय से रहने वाले
हिंदी के कवियों की तरह रहता
तो कब को कोरोना पर अपनी
लंबी कविताओं के साथ तुम पर भी 
एक लंबी कविता लिख चुका होता
सोनू सूद

हिंदी में
फ़िल्मी हीरोइनों पर 
कविता लिखने का रिवाज़ है
मधुबाला से लेकर वहीदा रहमान तक
और वहीदा से माधुरी तक पर रीझकर
लिखते हुए कवियों और कथाकारों ने
अपनी क़लमें तोड़ दीं
ये पर्दे की चमक-दमक पर मुग्ध थे
मैं हिंदी के पर्दे और आसमान का नहीं
ज़मीन का आदमी हूँ मेरे बच्चे

जानते हो
छेदी नहीं-नहीं सोनू नहीं-नहीं दोनों
हिंदी में फ़िल्म वालों को सितारा कहते हैं
लेकिन सितारे 
सिर्फ़ आकाश पर नहीं होते
धरती पर भी होते हैं मिट्टी में लोटते हैं
लोकल ट्रेन में सफ़र करते हैं
अपनी लोकल आत्मा को
कभी नहीं बदलते हैं 

सितारों की दुनियाँ विचित्र है
पर्दे का खलनायक जीवन में
नायक हो सकता है
और नायक खलनायक
आए दिन ख़ुलासे होते हैं
मासूम और सुंदर नायिकाएं 
खलनायिका निकलती हैं
और अर्थपूर्ण फ़िल्म बनाने वाले चरित्रहीन
जब तक इनका सच सामने नहीं आता
इनका नायकत्व और महानायकत्व
चेहरे पर मेकअप की तरह सजा रहता है

सोनू 
चाहे पर्दे पर ऐसे ही आजीवन 
बड़े से बड़ा खलनायक बने रहना
जीवन में चाहे जितनी मुश्किल आए
चाहे जितने कमज़ोर क्षण आएं
अपने खलनायक को पर्दे से बाहर
न निकलने देना नहीं तो मेरी यह कविता
बहुत रोएगी इसके शब्द टूट-फूट जाएंगे
ऐसे ही जीवन में नायक बने रहना

जो सितारे
पैदा धरती पर होते हैं
और रहते हैं आसमानों में
ज़मीन के लोग उन्हें कभी भी
अपना नहीं समझते हैं
उनके बीवी-बच्चों को कभी इस तरह
दिल से दुआएं नहीं देते हैं
प्यार नहीं करते हैं

हाँ 
क्रिकेट के कुछ
भगवान की तरह
फ़िल्मों के भी कुछ 
नौटंकी भगवान होते हैं
ये अपनी मिट्टी अपने देश के कर्ज़ का
न मूलधन चुका पाते हैं न सूद
सब तुम्हारी तरह कहाँ हो पाते हैं
सोनू सूद।







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