शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

लोकतांत्रिक गालियां तथा अन्य कविताएं

- गणेश पाण्डेय
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लोकतांत्रिक गालियां
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कुछ लोग
ऐसा क्यों चाहते हैं
कि मैं सिर्फ भाजपा को गालियां दूं
मैं क्यों सिर्फ भाजपा को गालियां दूं

और बाकी पार्टियों के गले में
बड़े वाले गेंदे का बड़ा-सा हार पहनाऊं
क्यों भाई क्यों बाकी पार्टियां कैसे
अच्छी हैं दूध से धुली हैं

मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकता
मुझे जहां-जहां छेद दिखेगा
टांग अड़ाऊंगा फटकारूंगा
बेहतरी की बात करूंगा

हां भाजपा में मुंहफटे हैं
तो तुम्हारी पसंद की पार्टियों में
क्या-क्या फटे नहीं हैं

मैं भी चाहता हूं
कि ऐसा लोकतंत्र हो
जहां योग्यता और प्रतिभा का
सम्मान हो ईमान की पूजा हो

कोई दूजा तो हो
जिससे बड़ी उम्मीद तो हो
जब तक ऐसा नहीं होता
मैं सबको गालियां दूंगा

हालांकि गालियों के मामले में
भाजपा को बहुत बड़ा नुकसान होगा
उसके हिस्से में एक गाली जाएगी
तो विपक्ष के हिस्से में 
इसको उसको-उसको मिलाकर
कुल दस जाएंगी

मेरा भी क्या कम घाटा है
कि आखिर एक तरफ गाली वाली 
एक गोली चलाऊं
और दूसरी तरफ गाली की 
दस गोलियां चलाऊं
लोकतंत्र भी बेचारा तन्हा
खड़ा-खड़ा क्या सोचता होगा
इस बर्बादी पर।

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बुरे लोग सत्ता में इसलिए आते हैं
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बुरे लोग
सत्ता में इसलिए नहीं आते हैं
कि वे बुरे हैं

बुरे लोग
सत्ता में इसलिए आ जाते हैं
कि अच्छे लोगों में बुराई आ जाती है।

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अच्छाई का मुरझा जाना
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बुराई 
कई तरह की होती है

कुछ पाने की उम्मीद में
बोलने की जगह चुप रहना बुराई है

अच्छाई को जहां खिलने की जरूरत हो
सहसा उसका मुरझा जाना बुराई है

जोखिम उठाने के साहस का 
कम होते जाना आज बड़ी बुराई है

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जब लोकतंत्र कमजोर हो जाता है
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जब राजनेता
कमजोर होने लगते हैं
तो उनकी जगह दूसरे लोग आ जाते हैं
गुंडे आ जाते हैं कातिल आ जाते हैं
धर्माचार्य आ जाते हैं सौदागर आ जाते हैं

जब लोकतंत्र
कमजोर हो जाता है
तो अखबारों और चैनलों पर
डरपोक लालची बेवकूफ
पत्रकार आ जाते हैं
गली के गुंडे भी पत्रकार बन जाते हैं

और फिर पत्रकार लोग भी लोकतंत्र को 
नोचने-खसोटने के काम में लग जाते हैं।

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लेखक नाम का प्राणी
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ये लेखक नाम का प्राणी भी
साला कितना बड़ा बेईमान है

खुद लाख मौकों का 
फायदा उठाए तो सब ठीक है

दूसरा वैसा कुछ एक बार कर ले
तो बेईमान है फासिस्ट है

अरे भाई पहले साहित्य का
एक घोषणा-पत्र तो जारी कर लो

कब कहां किसका पत्तल चाटना है
किस मंच पर जाना है इनाम लेना है

किसे राजनेता को कब तक गाली देना है
किस राजनेता का कब पैर पकड़ लेना है।

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कबीर का कुत्ता
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बहुत कम पढ़ना हुआ 
सिर्फ कबीर को थोड़ा-बहुत पढ़ा 
ढाई आखर से कभी आगे नहीं बढ़ पाया

इसीलिए अपने समय में कभी सिर्फ
दाएं बाजू की गंदगी को नहीं देखा
कभी एकतरफा जुलूस नहीं निकाला

ठोंक-पीट कर किसी तरह
बाएं बाजू की टूटी-फूटी हड्डियों पर भी
थोड़ा-बहुत कच्चा प्लास्टर लगाया

इससे ज्यादा भला 
कबीर का कोई कुत्ता क्या कर पाता 
अलबत्ता कबीर होते तो चैले से दागते।

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रामराज्य
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रामराज्य
न हिंदू राज्य हो सकता है
न मुसलमान राज्य हो सकता है

रामराज्य
न मौलवियों का राज्य हो सकता है
न धर्माचार्यों का राज्य हो सकता है

रामराज्य
न आज किसी राजा का राज्य हो सकता है
न किसी राजघराने का राज्य हो सकता है

रामराज्य
सभी नागरिकों का
सभी नागरिकों के लिए
एक आदर्श राज्य हो सकता है

रामराज्य 
सिर्फ महाजनों के लिए नहीं
देश के सभी नागरिकों के लिए
स्वास्थ्य और मंगल का राज्य हो सकता है
समता और बंधुत्व का राज्य हो सकता है

रामराज्य पर
न कांग्रेस का पेटेंट हो सकता है
न भाजपा न सपा न बसपा न आप
न माकपा न भाकपा न अन्य पार्टियों का
सिर्फ भारत की जनता का पेटेंट हो सकता है

जनता का रामराज्य 
गांधी का रामराज्य हो सकता है
और गांधी का रामराज्य ही सच्चा 
अच्छा और टिकाऊ रामराज्य हो सकता है।

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उन्नत लोकतंत्र का स्वप्न
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कितना अच्छा होता
सारे जहां से अच्छे भारत में
शहर-शहर कस्बा-कस्बा गांव-गांव
नागरिकता अस्पताल होता

सारे बच्चे 
और सभी प्राणियों के बच्चे
वहीं पैदा होते और तुरत
जन्म प्रमाण-पत्र की जगह
सीधे नागरिकता प्रमाण-पत्र लेकर
घर चाहे जंगल में जाते

कहीं और कोई जांच-पड़ताल नहीं
पुरखों के कागज की झंझट नहीं
हर पैदाइश आनलाइन होती
सब कुछ बहुत सरल होता

ऐसी मशीनें पैदा कर ली गयी होतीं
कि खून की एक बूंद से कुल-गोत्र
हिंदू-मुसलमान की पहचान होती

धर्म इतना उन्नत हो गया होता
कि मनुष्येतर प्राणियों में भी
हिंसक विभाजन हो गया होता
हिंदू की मुंडेर पर हिंदू चिड़िया बैठती
और मुसलमान की छत पर 
मुसलमान चिड़िया

मुसलमान बच्चे
मुसलमान गाय का दूध पीते
हिंदू बच्चे हिंदू गाय का

क्या पता तब तक हमारा लोकतंत्र 
पृथ्वी का सबसे उन्नत लोकतंत्र बन जाता
भारतीय सभ्यता सूर्य और चंद्रमा पर
घर बना चुकी होती
और भारत में मनुष्येतर प्राणियों को भी
मताधिकार मिल चुका होता।



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