मंगलवार, 14 जनवरी 2020

प्रधानमंत्री की कुर्सी तथा अन्य कविताएं

- गणेश पाण्डेय

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प्रधानमंत्री की कुर्सी
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भावी प्रधानमंत्री जी ने कहा है
ठीक ही कहा है बहुत ठीक कहा है
पक्का चौबीस कैरेट कहा है
कि वर्तमान प्रधानमंत्री के पास
छात्रों के सवालों का जवाब नहीं है

भावी प्रधानमंत्री जी से
विनम्र प्रार्थना है कि आप आज ही
बल्कि अभी इसी वक्त छात्रों को
कुछ घंटे ट्यूशन पढ़ा दीजिए 
सेमेस्टर इम्तहान जल्द होने हैं
फेल होने से बच जाएंगे

अलबत्ता भावी प्रधानमंत्री जी
पहले अपनी तमाम जेबों में
यहां तक कि चोरजेबों में 
और गिरेबां वगैरह में
जुबान को उलट-पलट कर
और घर के पुस्तकालय में भी 
देख लीजिए
हर किताब में माथापच्ची करके
सही जवाब ढ़ूंढ लीजिए

गरीबी हटाने की
कितनी जोरदार कोशिश हुई
गरीबी टस से मस नहीं हुई
जमींदारी उन्मूलन हुआ
फाइवस्टार फार्म हाउस बने
राजनीति में जमींदारी घुस आई
व्यापार में जमींदारी घुस आई
सभी दलों की जमींदारी
छात्र राजनीति में घुस आई
और बची-खुची जमींदारी
साहित्य में घुस आई


राजाओं का प्रिवीपर्स बंद हुआ
खादी पहनने वाले नये राजाओं
और राजघरानों का उदय हुआ
अपना समाजवाद बेचारा सालों से
लोकतंत्र के किसी कोने-अंतरे में
लावारिस और मरियल कुत्ते की तरह
दुबका हुआ दम तोड़ रहा है

पिछले राज में भी
मनुष्येतर प्राणी ही हलवा खा रहे थे
इस राज में भी एक से बढ़कर एक
उसी तरह के जीव-जन्तु खा रहे हैं
कुछ तो रोज-रोज
एक बार में पूरा देश खा जा रहे हैं
यह देश भी कोई देश है 
जनता का देश नहीं है
राजनेताओं की ऐशगाह है
ऐसे में
हम जो जनता हैं कहां जाएं
जिनके हिस्से में सिर्फ घास-फूस है

भावी प्रधानमंत्री जी
इन सवालों का जवाब हो
तो जरूर दीजिए
उन्हीं छात्रों युवाओं को दीजिए
जिन्हें आप जैसे तमाम राजनेता
आग में झोंक कर उस पर
अपनी मिस्सी रोटी सेंकते रहे हैं

पता नहीं अभी
कितने हजार साल तक
प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए
भावी और मौजूदा प्रधानमंत्रियों की
लगाई आग में हमारे बच्चे
ऐसे ही जलते रहेंगे।

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आधा सच
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जब
आधा सच ही
बोलना है

और
बोलना ही है

तो
बायीं कुर्सी पर
बैठकर बोलूं

चाहे
दायीं कुर्सी पर
बैठकर बोलू़ं

क्या फर्क पड़ता है
जब आधा ही सच
बोलना है।

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गिरना तय है
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पूरब
दीवार है

पश्चिम
दीवार है

उत्तर
कुर्सियां हैं
तीन टांग की

दक्षिण
स्टूल है
ढ़ाई टांग की

गिरना तय है
तो डरना क्यों

कहीं भी
बैठ जाओ

और ऐसे बैठो
कि बैठ जाओ

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मीडिया में विचार की कमी है
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दिल्ली की मीडिया में
विचार ही नहीं आचार की भी
बहुत कमी है

दिल्ली की मीडिया
असल में देश की मीडिया है
और बदनाम इतनी है कि पूछिए मत

कोई इसे गोदी मीडिया कहता है
कोई इसे सोती मीडिया कहता है
कोई इसे दल्ला मीडिया कहता है
कोई इसे बुद्धू मीडिया कहता है
कोई कुछ कहता है कोई कुछ

दिल्ली की मीडिया
इतनी होशियार है कि पूछिए मत
शेर हो या चूहा उठाने के लिए
एक ही क्रेन का इस्तेमाल करती है
चम्मच और बेलचे में फर्क नहीं करती

उसके लिए हिन्दी का
लेखक दो कौड़ी का है
हिंदी की हीरोइनें
और अंग्रेजी की लेखिकाएं पूजनीय
दिल्ली की मीडिया के लिए
विश्वविद्यालय सिर्फ जेएनयू है
बाकी देशभर के विश्वविद्यालय
थूथूथू हैं।



   




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