मंगलवार, 19 नवंबर 2019

ओ ईश्वर पार्ट टू

- गणेश पाण्डेय

ओ ईश्वर
सविनय निवेदन है
पहले भी एक बार
बाबरी मस्जिद ढ़हने के आसपास
सविनय विनयपत्रिका भेज चुका हूं

हे परमपिता
आपने मुझ पर अहेतुक कृपा की है
भारत वर्ष में एक टुकड़ा कृषियोग्य
ईमान की भूमि देकर

हे पालनहार हे जगन्नियंता
मैं जैसे ही हल लेकर खेत जोतने निकलता हूं
मेरे पीछे-पीछे लगे लाल हरे केसरिया रंग के सांड़
मेरी आत्मा के दो सुंदर और पुष्ट बैलों को दौड़ाकर
अपनी झुंड के सीगों से लहूलुहान कर देते हैं

हे अन्नदाता
मैं क्या करूंगा इस कृषियोग्य भूमि का
जिसके भाग्य में अनंतकाल तक बंजर रहना लिखा है
ईमान के इस टुकड़े को आप वापस ले जाएं नहीं तो
इसे कुएं में फेंक दूंगा आग लगा दूंगा
अजायबघर में रख दूंगा

हे सच्चिदानंद
मुझे स्वर्ग नहीं चाहिए मैं भी नर्क में जीना चाहता हूं प्रभु
जैसे जीते हैं सब बेईमानी की लहलहाती फसलों के बीच
मैं भी अपने बच्चों को खुशहाल देखना चाहता हूं
कम से कम सात पुश्तों के लिए इंतजाम करना चाहता हूं

हे नाथ
आपने बेईमानी की कई एकड़ कृषिभूमि
हिन्दी के हरामजादों को देकर किसी को
वाइसचांसलर तो किसी को मंत्री-वंत्री बनाया
आप ही बताइए खुलकर बताइए
हिंदी का ईमान लेकर मुझे क्या मिला घंटा

हे सर्वशक्तिमान
ईमान वालों के साथ न्याय नहीं कर सकते
तो उन्हें ईमान का प्लाट-व्लाट देते ही क्यों हैं
प्रेम करने वाले अपने भक्तों को आप इतना दुख देते हैं
और आपका नाम बेचने वालों को राजपाट

हे बाबा
गोरखनाथ
आप शिवावतार भी हैं और हिन्दी के कवि भी
आपकी छाया में मेरा घर है एक किलोमीटर पर
आपने कभी जानने की कोशिश क्यों नहीं की
कि कविता का ईमान ढोनेवाला कोई मजदूर भूखा क्यों है
और आपकी खिचड़ी हिन्दी के कैसे-कैसे लोगों में
बांट दी जाती है

ओ अंतर्यामी
अब इस उम्र में मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए
न सोना-चांदी न राजपाट और न यश का छत्र
मेरे जीवन में खुराफात की जड़ इस ईमान को
बस जल्द से जल्द वापस ले लीजिए

हे विधाता
मेरे दिमाग से ईमान को फौरन निकालकर
उसकी जगह धर्म का गोबर भर दीजिए चाहे
हिन्दी की पुरस्कार की टट्टी भर दीजिए
चाहे राजनीति की हरामजदगी भर दीजिए

ओ ईश्वर
बस बस बस बहुत हुआ देख लिया ले जाओ
अपना यह टूटा-फूटा ईमान का खिलौना
बहुत खेल लिया बहुत हार लिया बहुत रो लिया
अगले जन्म में मुझे भी चलता-पुर्जा आदमी बनाना
ईमान का चलता-फिरता पुतला नहीं।



                                                                     

1 टिप्पणी:

  1. एक ईमानदार कवि अथवा मनुष्य के भीतर यह अपने स्वभाविकता में मौजूद रहता है कि वह अपने आसपास घट रहे घटनाओं से हताश - निराश और परेशान होए । ये हताशा , निराशा अथवा बेचैनियां उन्हें क‌ई- क‌ई बार आत्मघाती भी बना देती है । परन्तु एक सजग कवि अथवा कलाकार उसके दबावों को अस्त्र की तरह इस्तेमाल भी करना बखूबी जानता है । यह गणेश पाण्डेय के यहां प्रचुरता में है । वे इन कमजोरियों से ऊपर आते हैं और मारक क्षमता के साथ उपस्थिति दर्ज कराते हैं । हिंदी पट्टी की बेईमानी सर्वविदित है । पर गणेश पाण्डेय सा भेदक कोई कोई ही होगा

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