सोमवार, 28 अक्तूबर 2019

सिद्धांत सीखा प्रयोग छोड़ दिया तथा अन्य कविताएं

- गणेश पाण्डेय
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सिद्धांत सीखा प्रयोग छोड़ दिया
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नयी सदी में
एक काम हमने बहुत अच्छा किया
भारतेंदु से लेकर आचार्य शुक्ल तक
और आचार्य शुक्ल से लेकर छोटे सुकुल तक
इससे पहले ऐसा कमाल हिंदी में नहीं कर पाए थे
हमने
अपने समय की सभी विद्याओं और ज्ञान की
शाखा-प्रशाखा और बाहर की शाखाओं में भी
मनोयोगपूर्वक प्रवेश किया कोई कोना छूटा नहीं
अलबत्ता आधा सीखा आधा छोड़ दिया
सिद्धांत सीखा और प्रयोग छोड़ दिया

असल में हम
हिंदी के बहुत व्यस्त लेखक थे
जगह-जगह जाना था हर तरफ जाना था
कहीं स्वतंत्रता और समता पर भाषण देना था
कहीं निराला और मुक्तिबोध को आदर्श बताना था
एक ही दिन में तीन मठाधीशों और चार उपमठाधीशों का
पैर दबाना था चंपी करना था गिलास में रसरंजन डालना था
और उसके बाद नाचने-गाने का प्रोग्राम अलग से करना था
थककर चूर होने के बाद हमारे पास
सिद्धांतों से जुड़े प्रयोग के लिए समय कहां था
सो हमने छोड़ दिया

असल में
हम हिंदी के नयी सदी के लेखक थे
हिंदी के पुरानी सदी के लेखकों की तरह पागल नहीं थे
कि हर चुनौती हर आदर्श के लिए दीवार पर माथा पटकते
लहूलूहान होते अपने समय के अंधेरे में गुम हो जाते
कि कोई आएगा हमें झाड़ से निकालकर
झाड़-पोंछकर खड़ा करेगा सबको बताएगा हमारे बारे में
एक ऐसे समय में जब हम अपने बाप को नहीं पहचानते
आने वाले वक्त के लेखकों पर कैसे भरोसा कर सकते थे

हमसे जो बन पड़ा हमने किया
हम हिंदी के लेखक थे कोई स्वतं़त्रता सेनानी नहीं
हम हिंदी के मामूली आदमी थे कोई देवता नहीं
हम अपनी सदी के लोग थे हमें पिछली सदी से क्या
हम हिंदी की दुक्की थे
तिग्गी थे चौका थे छक्का थे
गुलाम थे बहुत हुआ तो बेगम थे
हम हिंदी के बादशाह कैसे हो सकते थे
हम हिंदी के भगत सिंह नहीं थे
हम हिंदी के महात्मा गांधी नहीं थे
हम भला सत्य के प्रयोग कैसे कर सकते थे
हम बीच के लोग थे हमने बीच का रास्ता चुना
आधा सीखा आधा छोड़ दिया
सिद्धांत सीखा प्रयोग छोड़ किया।

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आज का भारत
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आज का भारत
बहुत मजबूत भारत है
बहुत कामयाब भारत है
पाकिस्तान को खूब डरा सकता है
हजार बार उसकी हेकड़ी निकाल सकता है

लेकिन आज का महाभारत
इस महादेश की गरीबी बेरोजगारी
और भ्रष्टाचार को हरगिज डरा नहीं सकता है
डराना तो दूर उसे चांटा भी नहीं दिखा सकता है

आज का भारत
अलबत्ता दावे बड़े बड़े कर सकता है
राजनीति में ऊटपटांग फैसले ले सकता है
संन्यासी को राजपाट और नागरिक को
भूख से मरने के काम में लगा सकता है
अपने अपने विषय के फिसड्डियों को
बड़े बड़े पद पर बैठा सकता है
और प्रतिभाओं को अहर्निश
घास छीलने के काम में लगा सकता है
सच तो यह कि कुलपतियों का
अधोवस्त्र धुलने वालों को
कुलपति बना सकता है

आज का भारत
झूठे का चेहरा चमका सकता है
सच्चे को हद से ज्यादा परेशान कर सकता है
अपराधियों के मुकदमें वापस ले सकता है
और निरपराध नागरिक को शक की बुनियाद पर
मरने के लिए छोड़ सकता है

आज का भारत
कल के भारत में
अपने राजनेताओं के लिए कम
और हिन्दी के खूंख्वार
इनामखोरों की बुजदिली के लिए
ज्यादा याद किया जा सकता है।

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बेहतरीन कवियों की लिस्ट
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हिन्दी के आज के
बेहतरीन कवियों की लिस्ट जारी हुई है
जिन्होंने जारी की है यह लिस्ट
भले जन हैं सामाजिक कार्यकर्ता हैं
बहुत आदरणीय हैं
शायद साहित्य के प्रति ईमानदार भी हैं

वाकई बहुत से बहुत भले हैं
बहुत से बहुत ज्यादा विचारवान हैं
देश और दुनिया की क्रूर सत्ताओं को
उखाड़ फेंकने का स्वप्न नित देखते हैं
पूंजीवाद के नाश के लिए सदैव सोचते हैं
जन को हित के लिए संघर्ष से जोड़ते हैं
ऐसे व्यक्ति के लिए सम्मान स्वाभाविक है

आज आंख खुली
उनकी हिन्दी के एक से एक बेहतरीन
कवियों की लिस्ट देखकर
साहित्य के प्रति यह अनुराग
कविता के प्रति यह प्रेम
कवियों के संसार की यह समझ उत्तम है
वाकई क्रांति इसी रास्ते से आएगी

जो कवि साहित्य में अपने आचरण से
जितना लज्जित करेगा उतना बेहतरीन होगा
जो कवि पुरस्कार के लिए जितना रोएगा
भ्रष्ट अकादमी की जितनी परिक्रमा करेगा
और अपनी कविता में जितना तीन-पांच करेगा
जो कवि साहित्य की सत्ता की पालकी ढोएगा
नित मठाधीशों के सामने उठक बैठक करेगा
जो कवि भीतर से जितना काला होगा
और खूब सुंदर क्रांतिकारी कविताएं लिखेगा
वह कवि उतना ही बेहतरीन होगा
धन्य है यह काव्य-विवेक

हे विचार के भले मानुष
हे परिवर्तन के वाहक
मुझ पर आपकी कृपा दृष्टि बनी रहे
मुझे अपनी बेहतरीन कवियों की सूची से
सौ कोस दूर रखिएगा
निश्चय ही मैं अपने समय का
सबसे खराब कवि हूं
मैंने बाकायदा खराब कविताएं लिखीं हैं
मैं साहित्य में विध्वंस चाहता हूं
साहित्य की भ्रष्ट सत्ताओं को
उखाड़ फेंकने का स्वप्न देखता हूं
मैं हिन्दी का पागल हूं
सिर्फ राजनेताओं की ही नहीं
लेखकों की भी पूंछ उठाकर देखता हूं
उनकी रचनाओं को ऊपर से नहीं
उसमें घुसकर देखता हूं
एक-एक छेद देखता हूं।

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अकेले कबीर
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कबीर
अपने समय के
पंडितों के बीच
कैसे रहे होंगे

कबीर को
उनके समय में
कितने लेखकों ने
पसंद किया होगा

कबीर
अपने समय में
कितना अकेला
रहे होंगे

कबीर
अपनी कविता में
पानी की जगह
आग क्यों लिखते रहे

कबीर
आज होते तो पंडितों से
इनाम ले रहे होते
या उन्हें लुकाठी से
दाग रहे होते

बड़ा सवाल यह
हिन्दी के इनामी डाकू
कबीर के साथ आज
कर क्या रहे होते!

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तुम्हारा नाम
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लेखको
तुम सब चाहे जितना
नाच लो तान तोड़ लो

अपने समय के
न कबीर कहे जाओगे
न प्रेमचंद न मुक्तिबोध

चाहे जितना
अनुवाद करा लो
खुद पर किताब छपवा लो

अपने समय के
हिन्दी के कीट-पतंग भी
समझे जाओगे संदेह है

शायद ही कोई
तुम्हारा नाम उस तरह ले
जैसे मैं नाम लेता हूं

खुशी-खुशी
गुमनामी में जीने वाले
देवेंद्र कुमार बंगाली का।

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प्रकाश किसको प्रकाशित करता है
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खुश रहो
बेकार की चीजों
और लोगों में मत उलझो

आगे बढ़ो
बढ़ते ही जाओ पीछे नीचे
और दाएं बाएं मत देखो

प्रकाश का धर्म निभाओ
प्रकाश का स्वभाव अग्रगामी होता है
बस सामने देखो

एक गुरु ने
अपने प्रिय शिष्य को सीख देते हुए
बहुत आशीष दिया

शिष्य की मति मारी गयी थी
अंधकार के ढेर पर बेठे बैठे
गुरु से जिज्ञासावश पूछ लिया

हे गुरुश्रेष्ठ प्रकाश
किसको प्रकाशित करता है
प्रकाश को या अंधकार को

गुरु ने दुखी होकर कहा
जाओ बच्चा साहित्य में अब
तुम्हारा कुच्छ नहीं हो सकता।

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कहां कमी रह गयी
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ओह
इतने विश्वविद्यालय
और इतने महाविद्यालय

और
इतने सुयोग्य आचार्य
इतने सह आचार्य

असंख्य दीये
हर साल जलाए गये
भव्य दीक्षांत समारोह हुए

फिर भी
समाज में अंधेरा
और अंधविश्वास छंटा नहीं

आखिर
कहां कमी रह गयी
उस पर चोट क्यों नहीं हुई।

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आचरण की पाठशाला
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ज्ञान के बड़े बड़े
विश्वविद्यालय बने

ऐसे ही तमाम
महाविद्यालय बने

ऐसे ही ज्ञान के
असंख्य छोटे विद्यालय बने

कोई बता सकता है
इनसे कितने मनुष्य बने

क्यों क्यों क्यों ये ज्ञान के
चमकीले खंडहर बने

ओह आचरण की पाठशाला
आखिर ये क्यों नहीं बने।

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साहित्य के सत्य की खोज
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यश की कामना
क्या मानवता के हित में है

यश की कामना
क्या समाज के हित में है

यश की कामना
क्या देश के हित में है

यश की कामना
क्या न्याय के हित में है

यश की कामना
क्या साहित्य के हित में है

अपने समय में यशस्वी होने से
क्या कृतियां कालजयी हो जाती हैं

यशस्वी न होने से लेखक
क्या दस्तखत करना भूल जाता है

गुमनाम रहने से कोई लेखक
क्या गोबर गणेश हो जाता है

क्या यश सत्य है
क्या अपने समय के यशस्वी सत्य हैं

क्या यश की भूख सत्य है
या कृति के लिए की गयी मौन साधना

यश के चंद्रयान पर बैठकर चंद्रमा पर
विक्रम की तरह हार्ड लैंडिंग करने वाले

यशस्वी लेखक धरती के लेखकों को
क्या बता सकते हैं साहित्य का सत्य।








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