tag:blogger.com,1999:blog-6243664497420021389.post7359432852970650143..comments2024-02-08T14:09:55.960+05:30Comments on Ganesh Pandey : गणेश पाण्डेय: साहित्य के इस राज्य में Ganesh Pandey http://www.blogger.com/profile/05090936293629861528noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-6243664497420021389.post-24284932441916220612016-12-13T17:32:58.598+05:302016-12-13T17:32:58.598+05:30अद्भुत तेवर की कविता है।एक आह्वान अपने दौर के कविय...अद्भुत तेवर की कविता है।एक आह्वान अपने दौर के कवियों,साहित्यकारों के लिए।एक गहरा व्यंग्य और दर्द है इन कविताओं में गणेश पाण्डेय जी को इस कविता के लिए बधाई!rajkishor rajanhttps://www.blogger.com/profile/17452107810318083196noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6243664497420021389.post-57950434588388146482016-11-05T15:15:55.969+05:302016-11-05T15:15:55.969+05:30बेहद अर्थपूर्ण कविता है। विडम्बना को सामने लाती है...बेहद अर्थपूर्ण कविता है। विडम्बना को सामने लाती है। आज के लेखकीय व्यक्तित्व के दोहरेपन पर ऐसा तंज शायद ही देखने को मिले। कविता का शिल्प अद्भुत रूप से सुगठित है। Vaicharik Kalamkaarhttps://www.blogger.com/profile/08327535911389475673noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6243664497420021389.post-41481650648259663292016-11-05T15:01:52.429+05:302016-11-05T15:01:52.429+05:30इस कविता में अद्भुत धार और तंज है। आज के साहित्य-स...इस कविता में अद्भुत धार और तंज है। आज के साहित्य-समय से मुठभेड़ करती इसकी लयात्मकता इसे बेहद महत्वपूर्ण और पठनीय बनाती है। योगेंद्र कृष्णा Yogendra Krishnahttps://www.blogger.com/profile/17366269677319716325noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6243664497420021389.post-59308029784313848382016-11-05T09:57:07.570+05:302016-11-05T09:57:07.570+05:30बहुत दिनों बाद एक वरिष्ठ कवि की एक बेहतरीन कविता प...बहुत दिनों बाद एक वरिष्ठ कवि की एक बेहतरीन कविता पढ़ने को मिली। पूरी कविता कथात्मक शैली का अन्यतम नमूना है। कवि गणेश पांडे जी ने कविता *साहित्य के इस राज्य में * में जिस तेवर और भंगिमा में कविता में विद्या-कला और साहित्य के ऐश्वर्य और वैभव-विलास का चित्र उकेरा है , उससे हमें रीतिकालीन कवियों की दशा-दिशा को भलीभांति समझने में मदद मिल सकती है। दिनानुदिन उत्तर-आधुनिक होते समय में कमोवेश परिदृश्य वही है । अधिकतर लेखक एक पैर के अर्थात लंगड़े हो चुके हैं । आलोचक भी मानसिक रूप से अपंग- दिव्यांग ।<br /> कविता के पहले अर्धांश में लाक्षणिक शैली में साहित्य के जीवन-जगत की मार्मिक अभिव्यंजना हुई है , जबकि उत्तरांश में लेख़क, आलोचक और लेखकीय संगठनो की माकूल छवि रची गई है।कविता अपने लय और संगति में जितनी अनूठी और धारदार है , उतनी ही अपनी प्रभावान्विति में सक्षम । समाज और साहित्य की यथास्थिति का प्रतिबिम्बन यहाँ पूरी जीवंतता और बेबाकी से हुआ है , जो जितनी सत्य है ,उतनी ही व्यंग्यात्मक । जितनी अमिधात्मक है , उतनी ही लक्षणायुक्त भी।कविता में आज के आलोचकीय परिदृश्य का भी बहुत सधे हुए अंदाज में कविताई हुई है। इस विषय पर लेख की जगह कविता एक निपुण कवि ही लिख सकता है। कथात्मक शिल्प में जब विष्णु खरे और अशोक वाजपेयी जैसे कवि कविता करते हैं तो उनके लद्धड़ , बोझिल गद्य से पाठक ऊब जाता है। खरे जी की कविता *ABANDONED * और वाजपेयी जी कविता *शब्द रस प्रिया * को पढ़ लीजिए । वहाँ न ध्वन्यात्मकता है, न लय , न प्रगीतात्मकता। कविता में हर हाल में कवितापन हो, इसका नमूना है यह कविता जो उन कविताओं से बहुत बेहतर और बहुपठनीय है। यहाँ शब्दों की *जगलरी* नहीं, उसका आलोक है। साहित्य के युगीन अंतर्विरोधों का भावलोक है, उसकी हो रही दुर्दशा का सच्चा प्रदर्श है। गणेश पांडे जी को इस महत्वपूर्ण कविता के लिए अनेकश:बधाईयाँ।Sushil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/09252023096933113190noreply@blogger.com